मध्यप्रदेश में स्वीटिया की खेती प्रारंभ
मुरैना , सोमवार, 14 मई 2012 (15:13 IST)
मध्यप्रदेश में मुरैना जिले के अंबाह विकासखंड के हिंगावली गांव में प्रायोगिक तौर पर अमेरिका के स्टीविया नामक पौधे की खेती शुरू की गई है, जिसे शकर के विकल्प के तौर पर मधुमेह के रोगियों के लिए काफी लाभदायक माना जाता है।आयुर्वेदिक पौधे के रूप में स्टीविया पौधे की खासियत यह है कि यह शकर से कई गुना मीठा होने के बावजूद मधुमेह के रोगियों के लिए जहर नहीं, बल्कि वरदान माना जाता है। ऐसा इसलिए माना जाता है, क्योंकि इसमें शकर की तरह चर्बी और कैलोरी नहीं होती है। इसकी मीठी पत्तियां मधुमेह से पीड़ित रोगियों को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं। हिंगावली गांव के किसान शिवदत्त शर्मा ने एक बीघा रकबे में स्टीविया की खेती प्रारंभ की है और इस अंचल में यह पहली बार किया जा रहा है। मूलतः दक्षिण अमेरिकी इलाके में पाए जाने वाला स्टीविया का पौधा भारत में मीठी पत्ती के नाम से ही जाना जाता है। शर्मा बताते हैं कि स्टीविया की खेती के बारे में उन्हें लगभग दो वर्ष पहले एक पत्रिका के माध्यम से जानकारी हासिल हुई थी। महाराष्ट्र, गुजरात और कुछ अन्य राज्यों में इसकी खेती होती है। महाराष्ट्र से उन्होंने इस पौधे के बारे में अन्य जानकारियां हासिल कीं। उन्होंने बताया कि लगभग आठ महीने पहले लगाई गई स्टीविया की खेती अब पूरी तरह पक चुकी है। माना जाता है कि चीनी से कई गुना मीठा होने वाला स्टीविया इंसुलिन बनाने में भी मददगार साबित होता है। उन्होंने बताया कि फसल के अच्छे परिणाम मिलने पर रकबा बढ़ाया जा सकता है। इसकी खेती पर अभी लगभग तीस हजार रुपए का खर्च आया है। पौधे से पांच वर्ष तक फसल को (पत्तियां) लिया जा सकता है। पांच वर्ष बाद इसकी पत्तियों की मिठास कम होने के कारण दोबारा पौधों का रोपण करना पड़ता है।उन्होंने बताया कि पहले वर्ष इससे लगभग सत्तर हजार रुपए की आय होने की संभावना है। उन्होंने कहा कि पत्तियों को दिल्ली, जयपुर और अन्य शहरों में आसानी से बेचा जा सकता है। आंचलिक कृषि अनुसंधान केन्द्र के वैज्ञानिक डॉ. जेएस यादव का कहना है कि स्टीविया की पत्तियां काफी मीठी होती हैं और इनका उपयोग संभवतः मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है। (वार्ता)