अमेरिका में ओबामा प्रशासन और संसद के बीच देश की आर्थिक सेहत दुरुस्त रखने के लिए आखिरी समय हुई रस्साकशी की कीमत दुनिया की इस सबसे बड़ी आर्थिक ताकत को अपनी साख गंवाकर चुकानी पड़ी। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की साख गिरने का वैश्विक अर्थव्यवस्था का दूरगामी असर पड़ सकता है। कोई आश्चर्य की बात नहीं कि दुनिया को 'एक और आर्थिक मंदी' का सामना करना पड़ जाए।
अंतरराष्ट्रीय साख निर्धारक संस्था स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) ने 95 साल में पहली बार अमेरिका की ऋण साख के स्तर को ट्रिपल-ए से घटाकर डबल-ए+ कर दिया। इससे पहले एजेंसी ने अमेरिका को विश्व में सबसे सुरक्षित रेटिंग दे रखी थी। अमेरिका ने जहां इस पर तीखी प्रतिक्रिया जताई है, वहीं भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं समेत दुनिया के कई देशों ने इस पर गभीर चिंता व्यक्त की है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को एंसएंडपी की ओर से देश की ऋण साख घटाए जाने की खबर शुक्रवार देर शाम ही दे दी गई थी, जब वे छुट्टियां बिताने कैंप डेविड रवाना हो रहे थे।
अमेरिका नाराज : इस बीच अमेरिकी प्रशासन ने रेटिंग पर नाराजगी जाहिर करते हुए कड़े शब्दों में कहा कि उसकी आर्थिक सेहत का गलत आकलन किया गया है। साख निर्धारण के दौरान सरकारी खर्चों को 2000 अरब डॉलर अधिक आंका गया है, जो बहुत बड़ी चूक है। अमेरिकी केन्द्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने कहा कि इस रेटिंग से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमारी प्रतिभूतियों पर कोई असर नहीं पड़ने वाला क्योंकि कई बड़ी रेटिंग एजेंसियों की नजर में हम अभी दुनिया की सबसे बड़ी आथिर्धक ताकत है।
फेडरल रिजर्व ने कहा कि अमेरिकी प्रतिभूतियों के लेन-देन या उन पर दिए जाने वाले ब्याज पर इसे रेटिंग का कोई असर नहीं आने वाला। एसएंडपी की ओर से साख घटाने की यह खबर ऐसे समय आई है, जब अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सुधरने की गति काफी धीमी पड़ चुकी है। रोजगार आंकड़ों में बेहद मामूली सुधार है और देश के शेयर बाजार 14 महीने की भारी गिरावट पर बंद हुए हैं।
वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर : रेटिंग घटाने से अमेरिका सदमे में है और विशेषज्ञों का मानना है कि इसका वैश्विक वित्तीय प्रणाली पर असर होगा। अमेरिका की रेटिंग गिरने का असर उन देशों पर भी निश्चित तौर होगा, जिनके अमेरिका से आर्थिक और व्यापारिक संबंध है। जानकारों का मानना है कि यदि अमेरिका आर्थिक मंदी की चपेट में आता है तो इसका असर निश्चित ही समूचे यूरोप समेत भारत एवं अन्य देशों पर होगा। एसएंडपी ने कहा है कि यदि आगे भी यही हाल रहा तो वह अमेरिकी ऋण साख को अगले 12 से 18 महीनों में और घटा सकता है।
भारत की सतर्क प्रतिक्रिया : भारत ने अमेरिकी हालात पर सतर्क प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि यह चिंता का विषय जरूर है, लेकिन इससे अमेरिकी प्रतिभूतियों की सरकारी खरीद पर कोई असर नहीं पड़ेगा। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि अमेरिका के हालात गंभीर है पर इसका भारतीय अर्थव्यवस्था पर कितना असर होगा यह कहना जल्दबाजी होगी।
प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख सी. रंगराजन ने कहा कि यह जरूर है कि अमेरिकी प्रशासन राजकोषीय घाटे से निबटने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं कर पा रहा है। रंगराजन ने कहा कि अमेरिका को वित्तीय समायोजन के लिए कड़ी योजना पेश करनी चाहिए और हाल में कर्ज सीमा बढ़ाया जाना पर्याप्त नहीं है।
एशिया के 300 हजार अरब डॉलर फंसे : भारत और चीन समेत कई एशियाई देशों का करीब 300 हजार अरब डॉलर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में फंसा हुआ है। अकेले भारत ने 41 हजार अरब डॉलर की अमरीकी प्रतिभूतियां खरीद रखी हैं। (एजेंसियां/वेबदुनिया)