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अनसुलझे सवाल छोड़ गया विश्व कप

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नई दिल्ली (वार्ता) , सोमवार, 4 जून 2007 (07:08 IST)
विश्व कप ऑस्ट्रेलिया की लगातार तीसरी खिताबी जीत के साथ समाप्त हो गया है, लेकिन यह अपने पीछे कई ऐसे अनसुलझे सवाल छोड़ गया है, जिन पर अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद (आईसीसी) को गंभीरतापूर्वक विचार करना होगा।

विश्व कप के लम्बे कार्यक्रम पर टूर्नामेंट शुरु होने से सवाल उठाए जा रहे थे, लेकिन अब टूर्नामेंट के बेहद लम्बा होने के कारण रोमांचविहिन साबित होने से इसके पूरे प्रारूप की कड़ी आलोचना होने लगी है। आईसीसी के सामने यह माँग उठने लगी है कि वह विश्व कप के स्वरूप को छोटा करे, ताकि इसका रोमांच बरकरार रह सके।

विश्व कप के चंद मैचों को छोड़ दिया जाए तो टूर्नामेंट के अधिकतर मैच एकतरफा साबित हुए। इन मैचों को देखकर यह लग ही नहीं रहा था कि यह विश्व कप स्तर का टूर्नामेंट है।

विश्व कप के लम्बे प्रारप के साथ-साथ यह सवाल भी उठ रहा है कि आईसीसी ने अपने प्रायोजकों और प्रसारकों के हितों के हितों को ध्यान में रखते हुए विश्व कप को इतना लम्बा खींचा।

आईसीसी की इस बात के लिए भी आलोचना हो रही है कि उसने अपने दो प्रमुख टूर्नामेंटों चैम्पियंस ट्रॉफी और विश्व कप को मात्र छह महीने के अंतराल के अंदर आयोजित करा दिया। एक मिनी विश्व कप और दूसरा विश्व कप, ऐसे में खिलाड़ियों को खुद को व्यवस्थित करने और अपनी तैयारियों के लिए समय कहाँ से मिलेगा।

विश्व कप के दौरान कई टीमों के मैचों के बीच पाँच से आठ-नौ दिन का लम्बा फासला भी था जिससे खिलाडियों की लय पर असर पड़ा। इस बात को कई खिलाडियों ने भी स्वीकार किया कि उनके लिए अपने मैचों का इंतजार करना काफी भारी काम साबित हुआ।

विश्व कप के लम्बा होने की वजह से इसमें लगातार शिथिलता आती रही और स्तर का अभाव दिखता रहा। विश्र्व कप के कार्यक्रम में एकरूपता नहीं थी कभी किसी टीम को दो-दो दिन के अंतराल में मैच खेलने पड़े तो कभी उसी टीम के अगले मैच का फासला नौ दिन के अंतराल का हो गया। वेस्टइंडीज ने सुपर आठ में अपने शुरुआती चार मैच काफी जल्दी-जल्दी खेले, लेकिन अगले मैच के लिए उसे नौ दिन का इंतजार करना पड़ा।

तमाम आलोचनाओं के बावजूद उम्मीद की जा रही थी कि ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के बीच विश्व कप का फाइनल रोमांचक की चरम सीमाओं को छुएगा, लेकिन वर्षा के कारण ओवरों में कटौती, खराब रोशनी के बावजूद श्रीलंकाई बल्लेबाजों का खेलना और अम्पायरों के अविवेकपूर्ण फैसले ने फाइनल का मजा किरकिरा कर दिया।

आईसीसी को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि विश्व कप का फाइनल तो कम से कम 50-50 ओवर का हो। जब आयोजकों के पास आरक्षित दिन मौजूद था और खेल को अगले दिन जारी रखने का प्रावधान है तो एक पारी में 50 ओवर पूरे कराए जा सकते थे, लेकिन वर्षा के कारण फाइनल विलम्ब से शुर हुआ और ओवरों की संख्या घटाकर 38-38 कर दी गई, जबकि ऑस्ट्रेलियाई पारी में 50 ओवर पूरे कराकर श्रीलंकाई पारी को अगले दिन भी ले जाया जा सकता था।

श्रीलंकाई पारी में आखिरी 10-15 ओवरों में तो बल्लेबाज खराब रोशनी में बल्लेबाजी करते रहे। अम्पायरों ने जब 33 वें ओवर के बाद खराब रोशनी के कारण खेल रोका और संशोधित लक्ष्य के कारण श्रीलंका को मिले 36 ओवरों में से शेष तीन ओवर अगले दिन कराने का फैसला किया तो वास्तव में यह फैसला चौंकाने वाला और अविवेकपूर्ण था रोशनी पहले भी खराब थी और यही फैसला 12-15 ओवर पहले भी किया जा सकता था अम्पायर यदि ऐसा फैसला करते तो फाइनल का रोमांच बना रहता।

फाइनल का एकमात्र रोमांचक पहलू एडम गिलक्रिस्ट की तूफानी बल्लेबाजी थी। इसे छोड़ दिया जाए तो फाइनल में भी स्तर का अभाव था। फाइनल में यदि पूरे 50 ओवर का खेल होता तो निश्चित रूप से इसका रोमांच बना रहता, लेकिन आईसीसी ने इस पर ध्यान देना जरूरी नहीं समझा और अपने लिए आलोचनाओं का पिटारा खोल दिया।

आईसीसी को अब अगले कई दिनों तक इन अनसुलझे सवालों के जवाब देने होंगे और भविष्य में बेहतर टूर्नामेंट के लिए इनके हल ढूंढने होंगे ताकि विश्व कप का स्तर और रोमांच बना रह सके।

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