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क्रिकेट के 'शहंशाह' का फैसला

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नई दिल्ली (भाषा) , सोमवार, 4 जून 2007 (03:10 IST)
नौवाँ विश्व कप क्रिकेट टूर्नामेंट अपनी आखिरी पायदान पर पहुँच चुका है और शनिवार को इस बात का फैसला हो जाएगा कि क्रिकेट का शहंशाह ऑस्ट्रेलिया है या फिर श्रीलंका।

बारबडोस में खेले जाने वाले इस फाइनल में विश्व कप विजेता कौन बनेगा, यह तो खेल शुरु होने के बाद पता चलेगा, लेकिन आँकड़ों के आइने में देखा जाए तो पिछला चैंपियन ऑस्ट्रेलिया अनुभव को छोड़कर बाकी हर क्षेत्र में अपने प्रतिद्वंद्वी श्रीलंका से मीलों आगे है।

इन दोनों टीमों के बीच अब तक कुल 63 एकदिवसीय मैच खेले जा चुके हैं, जिनमें 42 में ऑस्ट्रेलिया और 19 में श्रीलंका जीता है। यदि पिछले दस मैच की बात की जाए तो श्रीलंका ने केवल तीन जीते हैं और सात गँवाए हैं।

ये दोनों टीमें नौवीं बार तटस्थ स्थान पर आमने सामने होंगी और रिकॉर्ड कहता है कि अब तक श्रीलंका केवल एक बार ऑस्ट्रेलिया को तटस्थ स्थान पर हरा पाया है। हालाँकि ऑस्ट्रेलियाई टीम को यह जीत बहुत महँगी पड़ी थी। यह 1996 का विश्व कप फाइनल था, जो लाहौर में खेला गया और जिसमें श्रीलंका सात विकेट से जीता था।

श्रीलंका के कप्तान माहेला जयवर्द्धने आँकड़ों से जरूर कुछ सबक ले सकते हैं क्योंकि जब भी उनकी टीम ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ टॉस जीतकर पहले क्षेत्ररक्षण का फैसला किया, तब उनका रिकॉर्ड अपेक्षाकृत बेहतर रहा। ऐसे 18 मैच में 7 में श्रीलंका जबकि 10 में ऑस्ट्रेलिया जीता।

यदि जयवर्द्धने टॉस जीतते हैं और पहले बल्लेबाजी का फैसला करते हैं तो उन्हें इस आँकड़े को भी देख लेना चाहिए कि इस तरह के 17 मैच में 14 बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। ऑस्ट्रेलिया के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो उसने जिन 22 मैच में टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी की, उसमें से 14 में वह जीता और सात में हारा जबकि जिन छह मैच में उसने पहले क्षेत्ररक्षण का फैसला किया उनमें चार में उसे जीत मिली।

वैसे श्रीलंका टास के मामले में भाग्यशाली रहा और उसके कप्तानों ने 35 बार टॉस जीते, लेकिन इनमें केवल दस मैच में ही वे अपनी टीम को जिता पाए। दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया ने जिन 28 मैच में टॉस जीते, उनमें से 18 में उसे विजय भी मिली। यदि बारबडोस में होने वाले फाइनल में दोनों टीमों के संभावित 11 खिलाड़ियों के रिकॉर्ड पर गौर किया जाए तो फिर श्रीलंका का पलड़ा कुछ भारी दिखता हैं।

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