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विश्व कप में चेले पड़े गुरुओं पर भारी

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नई दिल्ली , रविवार, 3 जून 2007 (21:29 IST)
नौवाँ विश्व कप क्रिकेट टूर्नामेंट अब अपने अंतिम पड़ाव पर है। इस टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा उलटफेर अगर किसी ने किया है तो वह है नौसीखिया क्रिकेट टीमें, जिन्हें दरअसल बुलाया तो गया था दिग्गजों से क्रिकेट सीखने के लिए, लेकिन चेले गुरूओं पर ही भारी पड़े और बड़ी-बड़ी टीमों को विश्व कप से चलता कर गए।

विश्व कप शुरू होने से पहले यह माना जा रहा था कि बाजी किसी के भी हाथ लग सकती है और जो टीम जिस दिन बेहतर खेलेगी विजयी होगी, लेकिन इन नौसीखियों ने शुरुआती मारकाट में ही एशिया की दो दिग्गज टीमों भारत और पाकिस्तान को ऐसा तगड़ा झटका दिया कि उनसे न कराहते बना न सहलाते।

क्रिकेट के इन बालकों की उछलकूद से आज हालत यह हो चुकी है कि 16 टीमों के विकेट के बीच पसीने से तरबतर दौड़ते बल्लेबाजों अपनी सारी जान लगाकर गेंद फेंकते गेंदबाजों और हर हाल में गेंद को सीमा रेखा से पार जाने से रोकने में लगे क्षेत्ररक्षको को डेढ़ महीने की मशक्कत के बाद एक बार फिर समझ में आने लगा है कि ऑस्ट्रेलिया विश्व क्रिकेट का सिरमौर है और उसे चुनौती नहीं दी जा सकती।

विश्व कप की शुरुआत के समय हालात ऐसे कतई नहीं थे। भारतीय टीम के जाँबाज खिलाड़ी नई यूनीफॉर्म में सज धजकर रैंप पर चहलकदमी करने के बाद जब वेस्टइंडीज रवाना हुए थे तो पूरे देश को उन पर गर्व हो आया था। इस बार सिर्फ सहवाग की माँ ने ही आँखों में आँसू भरकर पुत्र को कप लाने का आशीर्वाद नहीं दिया था, बल्कि पूरा एक अरब हिंदुस्तानी अचानक 'ब्लू बिलियन' हो गया था। कहा गया कि लड़ेगा तो जीतेगा पर उन्हें क्या पता था कि यह बेचारा तो लड़ेगा ही नहीं जीतना तो बहुत दूर की बात है।

भारत और पाकिस्तान के विश्व कप से बाहर होने के बाद यह चर्चा जोरों पर है कि नई नवेली टीमों को विश्व कप जैसी स्पर्धाओं में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान बिशन सिंह बेदी का मानना है कि इन नौसीखियों को विश्व कप जैसी प्रतिष्ठित स्पर्धा में शामिल करने से इसका स्तर कम होता है।

अब सवाल यह पैदा होता है कि अगर यह टीमें सारी मजबूत टीमों से हारकर अपने अपने घर चली जातीं तो क्या इनका विश्व कप में खेलना जायज ठहराया जा सकता था, लेकिन इन्होंने चूँकि कुछ मैचों में अपने से कहीं तगड़ी टीमों को हरा दिया, इसलिए इनके विश्व कप में खेलने पर ही सवाल उठाए जाने लगे हैं।

यह पहला मौका नहीं है जब विश्व कप में हलकी टीमें अपने से कहीं भारी टीमों पर भारी पड़ीं। 1983 में भारत ने विश्व कप जीता था, लेकिन जिम्बॉब्वे के खिलाफ मैच में अगर कपिल देव ने पारी न संभाली होती तो बड़े उलटफेर की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।

हर विश्व कप में इन नौसीखिया टीमों को एकाध सफलता मिलती रही है। 2003 में केन्या ने श्रीलंका को हराया था और सबको चकित करते हुए सेमीफाइनल में जगह बना ली थी। बांग्लादेश, कनाडा और जिम्बॉब्वे भी विश्व कप में जीत का स्वाद चख चुके हैं, लेकिन इस बार इनके झटके भारत और पाकिस्तान जैसी विश्व कप की दावेदार मानी जा रही टीमों को ही ले डूबे। भारत जहाँ बांग्लादेश से शर्मनाक हार के बाद पहले ही दौर से बाहर हो गया वहीं पड़ोसी पाकिस्तान भी आयरलैंड से हारकर घर वापसी का इंतजाम कर बैठा।

यहाँ खास तौर से बांग्लादेश का जिक्र करना प्रासंगिक होगा। बांग्लादेश ने 1999 के विश्व कप में पाकिस्तान को हराकर तहलका मचा दिया था। 2003 में बांग्लादेश से बड़े उलटफेर की उम्मीद थी, लेकिन वह कनाडा के हाथों हार गया, लेकिन इस बार बांग्लादेश के प्रदर्शन ने यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान के खिलाफ उसकी जीत तुक्का नहीं तीर थी।

बांग्लादेश ने इस बार भारत के अलावा दक्षिण अफ्रीका को भी हराया। हालाँकि दक्षिण अफ्रीका की हार से उसके विश्व कप में आगे बढ़ने के रास्ते बंद नहीं हुए, लेकिन बांग्लादेश की जीत ने उसकी टीम के लिए कई नए रास्ते खोल दिए। टीम के प्रदर्शन से उत्साहित बांग्लादेश क्रिकेट बोर्ड ने टीम के प्रायोजन के लिए खुली बोली माँगने का फैसला किया है।

अभी तक बांग्लादेश की सबसे बड़ी मोबाइल फोन कंपनी ग्रामीण फोन देश की क्रिकेट टीम की प्रायोजक है और इसके लिए उसके साथ चार करोड़ टका का अनुबंध है लेकिन बोर्ड को उम्मीद है कि खुली बोली में यह रकम दोगुनी से भी ज्यादा हो सकती है।

आयरलैंड की भी यही हालत है। टीम के जबर्दस्त प्रदर्शन ने उसके लिए प्रायोजकों की लाइन लगा दी है। आइरिश क्रिकेट यूनियन को उम्मीद है कि बैंक ऑफ आयरलैंड के साथ उनका 4 लाख डॉलर का करार सितंबर में खत्म होने के बाद उनकी टीम को बहुत शानदार प्रायोजन प्रस्ताव मिलेंगे।

इनके अलावा कनाडा, हॉलैंड, स्काटलैंड, जिम्बॉब्वे, केन्या और बरमुडा जैसी टीमों के दिन भी बदलने वाले हैं। केन्या तो 2003 के विश्व कप के सेमीफाइनल में खेलकर अपने जलवे दिखा ही चुका है।

इन छोटे छोटे जहर बुझे तीरों का दंश झेल चुकी टीमें और उनके समर्थक भले ही इन्हें कोसते न थकें, लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि इन नौसीखिया टीमों के प्रदर्शन से विश्व कप के सारे समीकरण बदल गए। इससे विश्व के प्रसारण अधिकार खरीदने वाले चैनलों को भले ही करोड़ों डॉलर का नुकसान हुआ हो क्रिकेट का तो भला ही हुआ है।

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