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सिर्फ सेक्स सिंबल नहीं हैं चीयरलीडर्स...

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, बुधवार, 11 अप्रैल 2012 (11:08 IST)
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भारत में खेल के मैदान पर चीयरलीडर सेक्स सिंबल से ज्यादा कुछ नहीं समझी जातीं जिनका काम सिर्फ सुंदर और सेक्सी दिखना मान लिया गया है, लेकिन वास्तव में यह कड़ी मेहनत वाला जोखिमभरा गेम है जहां सिर्फ सुंदरता काम नहीं आती है।

चार सेकंड में बर्लिन की जूलिया लांग चीयरलीडरों के पांच मीटर ऊंचे पिरामिड पर चढ़ जाती है, जैसे इससे आसान काम कुछ और हो ही नहीं। सधा सीधा शरीर, दोनों हाथ कमर पर और झूलती हैं सिर्फ करीने से गुंथी चोटियां। उसके बाद वह उल्टा चक्कर लगाकर पीछे की ओर गिर जाती है, सधे पांवों से। आज उसने न तो मिनी स्कर्ट पहना है और न ही खुली पेट दिखाता छोटा टॉप। 20 वर्षीया जूलिया कहती है, "वह हमारी ड्रेस है सिर्फ शो के लिए। " आज ट्रेनिंग हो रही है गर्मियों में होने वाले यूरोप चैंपियनशिप के लिए।

खेल की कोई ऐसी विधा नहीं है जिसके बारे में इतने पूर्वाग्रह हों। चीयरलीडरों को सेक्सी बेवकूफ या फुदकने वाली चिड़िया कहा जाता है। उनका काम है बास्केटबॉल, फुटबॉल या क्रिकेट के खेलों के दौरान इंटरवल के दौरान अपने नखरों और नजाकत से दर्शकों का मनोरंजन करना जिन्होंने मैच के लिए काफी पैसा खर्च कर टिकट खरीदा होता है। सचमुच कुछ दल अपनी कोरियोग्राफी में सेक्स अपील पर ज्यादा ध्यान देते हैं, तो दूसरों के लिए मैदान के किनारे होने वाला खेल ही कड़े मुकाबले का गेम बन गया है।

खिलाड़ियों का जोश बढ़ाने के लिए अमेरिकी विश्वविद्यालयों में शुरू हुए खेल के बारे में ट्रेनर नताली ग्रांट बताती हैं, "चीयरलीडिंग एक्रोबेटिक, जिम्नास्टिक और डांस का मिश्रण है। " 31 वर्षीया नताली का चीयरलीडर ग्रुप बर्लिन लेजेंड इस समय चीयरलीडिंग का जर्मन चैंपियन है और 2011 में उसने हांगकांग में विश्व चैंपियनशिप में कांसे का पदक जीता है। नताली कहती हैं, "चीयरलीडर की छवि अमेरिकी हाइ स्कूल वाले फिल्मों की देन है।

स्वाभाविक रूप से असली जिंदगी में भी लड़कियां कभी कभी फुटबॉल खिलाड़ी से प्यार कर बैठती है, लेकिन उसका खेल से कुछ लेना देना नहीं है। " नताली खेल के आयोजनों को सेक्स अपील देने की भूमिका के पूर्वाग्रहों को नकारती हैं और कहती है, "चीयरलीडिंग खेल की ऐसी विधा है जो तकलीफ देती है। हमारे शरीर पर नीले निशान होते हैं, नाकों से खून निकलता है। हम कोई कठपुतलियां नहीं हैं। "

ट्रेनिंग के दौरान छलांग मारते समय या पिरामिड बनाते समय लड़कियां गिर जाती हैं तो कभी नाक तो कभी हट्टी टूट जाती है। नताली ग्रांट ने खुद 24 वर्ष की आयु में सक्रिय चीयरलीडिंग को विदा कह दिया था। खेल की सख्ती उनके वश की बात नहीं रह गई थी। "अब और नहीं हो रहा था, और जब तकलीफ बहुत बढ़ जाए तो फिर संन्यास ले लेना चाहिए। " उनकी टीम में 16 से 27 साल की लड़कियां हैं।

यह खेल हंसी उड़ाने के विपरीत लड़कियों से बहुत ज्यादा की मांग करता है, यह बात खेल के मैदान पर वार्मिंग अप के दौरान ही पता चल जाती है। वहां चीयरलीडरों को मुलायम चटाइयों पर जिम्नास्टिक का अभ्यास करते छलांग लगाते देखा जा सकता है। दस सालों से चीयरलीडिंग कर रही जूलिया लांग कहती हैं, "यह बहुत ही कठिन काम है। पिरामिड के ऊपर चढ़ने पर सारी मांशपेशियां तनाव में होती हैं। "

जर्मनी में चीयरलीडरों की 200 से ज्यादा संस्थाएं हैं। जर्मन चीयरलीडर संघ की अध्यक्ष आने उरशिंगर कहती हैं, "यह खेल अमेरिकी फुटबॉल के साथ 1980 के दशक में जर्मनी आया। " मजेदार बात यह है कि इसकी शुरुआत महिलाओं ने नहीं बल्कि पुरुषों ने की। 19वीं सदी के अंत में यूनीवर्सिटी के छात्रों ने अपनी टीमों का जोश बढ़ाने के लिए माइक्रोफोन का सहारा लिया। बाद में अच्छा दिखने के लिए लड़कियों को भी इसमें शामिल कर लिया गया।

विश्व चैंपियनशिप में चीयरलीडरों को दो हिस्सों में प्रदर्शन करना होता है। आइस स्केटिंग की तरह ही एक हिस्सा अनिवार्य होता है और दूसरा आपकी मर्जी का। लेकिन चीयरलीडिंग संगठनों में मेल नहीं है। दो महासंघ हैं, दो चैंपियनशिप होती है और दोहरे चैंपियन भी हैं। भले ही लोगों का ध्यान न जाता हो, शुरुआत की तरह आज भी पुरुष चीयरलीडर भी होते हैं। उरशिंगर के अनुसार उनकी तादाद करीब 10 फीसदी है।

ट्रेनर ग्रांट कहती है, "उनका पेट नंगा नहीं होता, मेकअप नहीं होता और न ही कोई तामझाम। " तगड़े होने के कारण वे पिरामिड में नीचे होते हैं, उनके ऊपर महिलाएं होती हैं जो पांच मीटर की ऊंचाई पर अपने करतब दिखाती हैं। नताली ग्रांट कहती हैं कि चीयरलीडरों को सेक्सी तो होना चाहिए लेकिन आक्रामक नहीं होना चाहिए। इसे एक साथ मिलाना अपने आप में एक कला है।

एमजे/एनआर (डीपीए)

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