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'अजेय' सिंधिया की रिकॉर्ड जीत

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ग्वालियर , शनिवार, 25 अप्रैल 2009 (11:23 IST)
-राकेश पाठक
सन 1999 में फिर मध्यावधि चुनाव की नौबत आ गई। मात्र 3 साल की अवधि में यह दूसरा मध्यावधि चुनाव था। इस चुनाव में स्व. माधवराव सिंधिया करीब दो दशक बाद गुना लौटे और रिकॉर्ड नवीं बार जीत दर्ज कराई। सन 99 में 13 महीने चलकर वाजपेयी सरकार गिर गई। संसद में विश्वास प्रस्ताव सिर्फ एक वोट से हारकर वाजपेयी सरकार जाती रही।

सितंबर-अक्टूबर 99 में मध्यावधि चुनाव हुए। अपना सियासी सफर गुना से शुरू करने वाले माधवराव सिंधिया एक बार फिर गुना से मैदान में थे। परंपरागत क्षेत्र गुना पहुँचे सिंधिया को वहाँ की जनता ने सिर आँखों पर बिठा लिया। विकास कार्यों की बदौलत विकास के मसीहा की उनकी छवि लोगों के सिर चढ़कर बोल रही थी।

भाजपा ने देशराज सिंह को उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे सिंधिया के समक्ष कमजोर प्रत्याशी साबित हुए। चुनाव-प्रचार से लेकर परिणाम तक सिंधिया ने जो बढ़त बनाई, वो उनके करिश्मे को साबित करने वाली थी। वे करीब ढाई लाख वोटों से जीते। शिवपुरी जिले की चारों विधानसभा सीटों पर उनकी बढ़त 141000 से ज्यादा रही। गुना जिले की चार विधान सभा सीटों पर भी उन्हें रिकॉर्ड वोट मिले। यह स्व. सिंधिया की लगातार रिकॉर्ड नवीं जीत थी।

ग्वालियर में भाजपा ने जयभान सिंह पवैया को फिर मैदान में उतारा। उनके मुकाबले कांग्रेस ने चंद्रमोहन नागौरी को टिकट दिया। नागौरी सन 1980 में लश्कर पूर्व में विधानसभा चुनाव हार चुके थे, लेकिन स्व. माधवराव सिंधिया का उन्हें भरपूर विश्वास प्राप्त था। नागौरी न केवल श्री सिंधिया के डमी प्रत्याशी के रूप में फार्म भरा करते थे, बल्कि श्री सिंधिया के चुनाव अभियानों के संचालक भी रहते थे। पवैया ने यह चुनाव 83000 वोटों से जीता।

ग्वालियर संसदीय सीट इस जीत के साथ करीब डे़ढ़ दशक बाद एक बार फिर भाजपा की झोली में आई। उधर मुरैना और भिण्ड सीटों पर भाजपा ने एक बार फिर अपना कब्जा बरकरार रखा। मुरैना में भाजपा के अशोक अर्गल करीब 50,000 वोटों से जीते।

कांग्रेस के गोपालदास और बसपा के प्रीतम प्रसाद तीसरे स्थान पर रहे। भिण्ड सीट पर भाजपा के डॉ. रामलखन सिंह और कांग्रेस के सत्यदेव कटारे के बीच काँटे का मुकाबला हुआ। डॉ. रामलखन सिंह ने मामूली अंतर से जीत दर्ज कराई।

...तो सिंधिया प्रधानमंत्री होते :
लगातार नौ बार लोकसभा चुनाव जीतकर माधवराव सिंधिया ने रिकॉर्ड कायम किया। वे लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के उपनेता बनाए गए। यह वह दौर था, जब श्री सिंधिया कांग्रेस की सर्वेसर्वा श्रीमती सोनिया गाँधी के सबसे विश्वसनीय सहयोगी बन चुके थे तभी 30 सितंबर 2001 को एक विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया।

कांग्रेस के सर्वोच्च सत्ता गलियारों में आज भी यह माना जाता है कि यदि सिंधिया जीवित होते तो 2004 में गठित यूपीए सरकार का नेतृत्व श्रीमती सोनिया गाँधी श्री माधवराव सिंधिया को ही सौंपती। श्रीमती गाँधी ने पिछले कुछ एक अवसरों पर सिंधिया के प्रति अपने गहन विश्वास को जताया भी है।

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