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आधी से ज्यादा राशि नहीं हो पाएगी इस्तेमाल

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रांची से विष्णु राजगढ़िया
झारखंड में विकास योजनाएँ और उनसे संबंधित फाइलें साल भर तक बेहद धीमी गति से चलती हैं। मार्च आते-आते इसमें तेजी आती है और किसी तरह विकास राशि को सरेंडर होने से रोकने की कोशिश की जाती है। इसके बावजूद विकास राशि का बड़ा हिस्सा हर साल सरेंडर करने की नौबत आती है। इस बार मार्च के प्रारंभ में आचार संहिता लागू होने से राज्य की विकास राशि का बड़ा हिस्सा सरेंडर करने की नौबत आ गई है। इसके कारण कईं योजनाओं को स्वीकृति और कार्यों के आदेश निर्गत करने का काम रुक गया है।

झारखंड में योजना मद के 9000 करोड़ रुपए के प्रावधान के बावजूद आचार संहिता लागू होने तक राज्य में लगभग 3700 करोड़ की राशि ही खर्च हो सकी है। इस बार आचार संहिता की चपेट में आने के कारण योजना मद की पचास प्रतिशत से भी ज्यादा राशि सरेंडर होने की संभावना है। इससे विकास कार्य बाधित हो रहे हैं सो अलग।

आचार संहिता का असर उन योजनाओं पर नहीं पड़ा है जो पूर्व में स्वीकृति पाकर चल रही हों या जिनके लिए आदेश निर्गत हो चुके हों। लेकिन जनहित से जुड़ी कईं योजनाओं के बाधित होने से लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। गिरिडीह जिले के बिरनी क्षेत्र में पेयजल आपूर्ति की लगभग चार करोड़ की योजना के लिए टेंडर हो चुका था और अंतिम मुकाम पर पहुंचकर कार्यादेश निर्गत नहीं किया जा सका।

बगोदर विधानसभा क्षेत्र से भाकपा माले विधायक विनोद सिंह के अनुसार जहां जनहित के बड़े मामले हों और जो पहले से चली आ रही प्रक्रिया का अंग हों, ऐसे कामों को बाधित नहीं करने के संबंध में एक सर्वसम्मति बनाने की कोशिश की जा सकती है ताकि आचार संहिता की मूल भावना बनी रहे और कोई विवाद भी उत्पन्न नहीं हो।

आचार संहिता के कारण प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना तथा पेयजल आपूर्ति संबंधी कई योजनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ा है। राज्य की हर पंचायत में विधायक योजना के तहत पांच-पांच चापाकल लगाने का टेंडर हुआ था। टेंडर संबंधी प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद कार्यादेश निर्गत नहीं हो सका। रांची के भाजपा विधायक चंद्रेश्वर प्रसाद सिंह के अनुसार अगर पहले से स्वीकृत योजना हो और उसके शिलान्यास या उद्घाटन के नाम पर कोई सस्ती लोकप्रियता की राजनीति नहीं की जा रही हो तो जनहित में किए जा रहे किसी भी कार्य का विपक्ष द्वारा स्वागत ही किया जाएगा।

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