Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

त्याग ही प्रेम की सबसे बड़ी ताकत

मानसी

हमें फॉलो करें त्याग ही प्रेम की सबसे बड़ी ताकत
, सोमवार, 25 जुलाई 2011 (16:19 IST)
ND
हेलो दोस्तो! किसी भी रिश्ते में त्याग यानी कुर्बानी का अपना ही मजा है। यह भावना रिश्ते की हर कड़ी पर भारी पड़ती है। रिश्तों में कुर्बानी एक ऐसी लहर के समान है जो नकारात्मक सोच की छोटी-बड़ी सभी घास-फूस को बहा ले जाती है।

त्याग की छन्नी में नफरत, बदला, प्रतिस्पर्द्धा, एकाधिकार, नियंत्रण, स्वामित्व जैसे कंकड़-पत्थर अपने आप छन जाते हैं। बस बच जाता है तो केवल विशुद्ध प्रेम। ऐसे रिश्ते में कोई आकांक्षा नहीं होती बल्कि सामने वाले को खुश-संतुष्ट देखकर तृप्ति होती है।

प्यार में ऐसी त्याग की भावना एक अमृत के समान है जो आपको मुश्किल में नया जीवनदान देता है। हर कठिन परिस्थिति से पार उतरने का रास्ता बताता है। आपके पास थोड़ा होते हुए भी परिपूर्णता का अहसास दिलाता है। आपके पास कुछ नहीं होते हुए भी आप दया मांगने वाले की नहीं बल्कि दया करने वालों की श्रेणी में आ जाते हैं।

विशुद्ध मन से यूं कहें कि मन की गहराई से निकली ऐसी भावना से त्याग करके आपको कुछ खोने का नहीं बल्कि पाने का अहसास होता है। इस अहसास की वजह होती है सामने वाले के मन में धीरे-धीरे आपके लिए सम्मानजनक स्थान बनना। और वह सम्मानजनक अहसास छीन-झपट कर लिए तमाम रिश्तों से ऊपर है।

अक्सर यह प्रश्न उठता है कि त्याग करने के लिए पात्र भी वैसा होना चाहिए। जिसे प्यार करें यदि उसके लिए त्याग, बलिदान की भावना न जागे तो वह प्रेम ही नहीं है या यूं कहें कि वह अपरिपक्व है। प्रेम जितना गहरा होता जाता है त्याग की भावना भी उतनी प्रबल होती जाती है। जब माता-पिता बच्चों को मन से प्रेम करते हैं तो वे अपने हिस्से का न जाने कितना सुख त्यागते हैं।

यह कुर्बानी कुछ पाने की आशा में नहीं की जाती है बल्कि उसे सुखी और खुद से बेहतर देखने की चाहत में की जाती है। बच्चों के लिए यह भावना कुदरती होती है पर जहां सच्चा प्यार का अहसास जगा हो वहां भी बहुत हद तक त्याग का स्वरूप वैसा ही हो जाता है।

जब प्रेम के रिश्ते में इस प्रकार की भावना जाग जाती है तो फिर वहां छोटे-बड़े कलह की गुंजाइश नहीं रह जाती है। दोनों ओर भरोसे की भावना अपनी चरम बिंदु पर पहुंच जाती है। हां, त्याग की भावना का यह मतलब भी नहीं है कि सामने वाले ने कभी आपसे प्रेम शब्द का इस्तेमाल न किया हो या किसी भी रूप में प्रेम का इजहार न किया हो फिर भी आप उसे अपनी जान की कुर्बानी की धमकी दें। इस प्रकार का प्राण त्याग देने से कोई बलिदान की भावना नहीं उजागर होती है बल्कि यूं लगता है, किसी के प्यार में न पड़ने की उसे सजा दी जा रही है।

एक पत्र के अनुसार वह व्यक्ति मानता है कि उस लड़की ने कभी अपनी जुबान से प्रेम शब्द नहीं कहा और न ही कभी वैसा अपनापन दिखाया फिर भी वह उसे प्रेम करता है और उसके लिए जान देना चाहता है। इस पत्र के जवाब में जो लव-मंत्र लिखा गया था उसे पढ़कर एक सज्जन को बहुत दुख पहुंचा।

उनका कहना है कि जरूर उस लड़की ने उसे किसी न किसी रूप में जाल में फंसाया होगा और कोई बेहतर मिल जाने के कारण उसे छोड़ दिया होगा। पर प्रतिक्रिया वाले श्रीमान जी, उस प्राण देने वाले का खुद का इकरारनामा मौजूद है कि वह लड़की किसी अन्य से प्रेम नहीं करती है, उसे केवल अपने परिवार से लगाव हैऐसे में यदि पत्र लिखने वाले को यह सलाह दी गई कि उसके जान देने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ेगा तो इसमें बुरा क्या है।

कड़े शब्दों पर आपकी आपत्ति बेकार है क्योंकि कई बार कड़वे शब्दों से मनुष्य भावनाओं के लिजलिजे दलदल से निकलकर हकीकत को पहचानने की कोशिश करता है। यह कहना कि बिना प्रेम जताए कोई सामने वाले से इतना प्रेम नहीं कर सकता है। यह सच है कि यह तर्कसंगत नहीं है पर अनेक पत्र ऐसे आते हैं जिसमें यह कबूल किया जाता कि बिना मिले, बात किए लड़का या लड़की किसी को केवल देखकर बहुत प्यार करता है और उसके बिना रह नहीं सकता है।

दरअसल, किसी चीज या व्यक्ति को पा लेने की इच्छा मन में पालकर आप उसके पीछे पड़ जाएं। उसके साथ भावनात्मक जबर्दस्ती करें। त्याग, बलिदान की तलवार चलाएं। यह प्यार नहीं है। त्याग से सामने वाले को पसोपेश में डालने और दुखी करने से त्याग की गरिमा जाती रहती है। त्याग से साथी की मुश्किलें आसान होनी चाहिए और त्याग करने वाले को उससे गर्व महसूस होना चाहिए। ऐसा त्याग दो व्यक्तियों के बीच एक अनाम बंधन जोड़ता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi