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भाट ले रहे हैं आधुनिक तकनीक का सहारा

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बड़वानी (वार्ता) , शुक्रवार, 23 जनवरी 2009 (13:36 IST)
कभी अपने आश्रयदाता शासकों के प्रशस्ति गान से और वंशावलियों के इतिहास की लोगों को जानकारी देकर अपनी आजीविका चलाने वाले भाट समुदाय के लिए अब दो जून की रोटी का जुगाड़ करना भी मुश्किल हो रहा है और वे अपनी इस कला को सहेजने के लिए आधुनिक तकनीक कम्प्यूटर के इस्तेमाल की योजना बना रहे हैं ताकि उनकी रोजी-रोटी चलती रहे।

मध्यप्रदेश के पश्चिम निमाड़ में भाट यानी चारण समुदाय विभिन्न जातियों और उपजातियों के लोगों के वंशावली का ब्योरा रखने के अलावा आदिवासी समुदाय की उपजातियों के पुरखों का पीढ़ी दर पीढ़ी इतिहास भी अपने पास रखते हैं। जब वे अपनी विशिष्ट शैली में आदिवासियों की वंशावली का गायन करते हैं तो संबंधित व्यक्ति का कौतूहल जाग उठता है और वह रोमांचित हो जाता है।

भाटों का ताल्लुक मूल रूप से राजस्थान से है, जहाँ से वे देश के विभिन्न हिस्सों में फैल गए। उनकी स्तुतिगान संबंधी परम्परा का रामायण काल में भी उल्लेख मिलता है। छुनछुन नाम भाट शेषनाग के चारण थे। शेषनाग ने प्रसन्न होकर उन्हें उपहारस्वरूप मणि प्रदान की थी।

धार नगरी के राजा भोज के वंशज जयदेव पँवार के राज्य में महिला भाट कंकालन की काफी प्रसिद्धि थी। छत्रपति शिवाजी के समकालीन गंगा भाट ने भी काफी लोकप्रियता अर्जित की थी।


पृथ्वीराज चौहान के दरबार में चारण चंदबरदाई को राजकवि का दर्जा हासिल था। चंदबरदाई के बारे में एक रोचक किंवदंति है कि भारत पर हमला करने के बाद मोहम्मद गोरी जब पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर गोर ले गया और यातनाएँ देने के बाद उनकी दोनों आँखें फोड़वा दीं तब उन्होंने शब्दभेदी बाण की कला के प्रदर्शन के बहाने उन्हें छुड़ाने की तरकीब भिड़ाई थी।

पृथ्वीराज चौहान की इस कला का कायल होने पर मोहम्मद गोरी और उपस्थित दरबारी जब हर्षध्वनि करने लगे तभी चंदबरदाई ने मौका देखकर गोरी के सिंहासन की स्थिति का दोहे के रूप में संकेत करते हुए कहा-चार बाँस, चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण तेहि ऊपर सुल्तान है, मत चूके चौहान। पृथ्वीराज चौहान के लिए इतना संकेत पर्याप्त था। उन्होंने तुरन्त बाण छोड़कर सुल्तान को ढेर कर दिया। दुश्मनों के हाथ नहीं लगने देने के लिए चंदबरदाई ने पहले पृथ्वीराज को मारा और फिर आत्महत्या कर ली और इस तरह राजपूती आन-बान की रक्षा की।

राजस्थान के विभिन्न भागों से यहाँ आए भाट वीरेन्द्रसिंह, विजयसिंह, लालचंद, तेजराम ठाकुर आदि आदिवासी समुदाय के विभिन्न गोत्रों के लोगों को उनकी वंशवालियों की जानकारी दे रहे हैं। आदिवासी समुदाय के विभिन्न गोत्रों के लोगों ने बताया कि भाट समुदाय की 12 उपजातियों में से चंडीसा, केदारा और बागौरा ही पोथी के जरिये लोगों को उनके वंश का परिचय देकर अपनी रोजी-रोटी कमा रही हैं।

भाटों को दो भागों में बाँटा गया है-ब्रह्म भाट और बही भाट। राजस्थान में इन्हें रावजी, पावडिया बही भाटव और बडवाजी, मालवा में ठाकुर वा, निमाड में रावजी और भाट, होशंगाबाद में जागाजी महाराज, उत्तरप्रदेश में मटियाजी, पंजाब और हरियाणा में कनिसर और रानी मंगा तथा गुजरात में बारोठ भी कहा जाता है।

उन्होंने बताया कि विभिन्न समुदायों के अलग-अलग गोत्रों के अलग-अलग कुल भाट होते हैं। यहाँ तक कि भाटों के भी अपने भाट होते हैं। ये भाट अपनी पोथियों या बहियों में विभिन्न समुदायों के वंशवृक्ष, निवास स्थान, परम्परा, खेत, खेत की दिशा, मकान, जमीन, कुएँ, बावड़ी आदि छोटी से छोटी लेकिन महत्वपूर्ण जानकारियाँ रखे हुए हैं।

आदिवासी समुदाय के विभिन्न गोत्रों जैसे सोलंकी. डाबर. जाधव. जमरा. सास्ते. खरते. चौहान आदि के बारे में उक्त जानकारियों के अलावा उनकी परम्परा और त्योहार जैसे इंदल, छाक, भगोरिया, नुक्ता, पाटला आदि के बारे में भी उनके पास रिकॉर्ड है। एक भाट ज्यादातर एक ही कुल या गाँव के इतिहास के बारे में जानकारी रखता है।

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