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'कमल' पर शिकंजा कसता लहूलुहान 'पंजा'

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- राजेश सिरोठिया
हालाँकि गोंगपा की चुनौती इस बार कांग्रेस के साथ भाजपा को भी डरा रही है, जिसने 2003 में कांग्रेस का इलाके के आदिवासी अंचल से लगभग सूपड़ा साफ कर दिया था। गोंगपा ने तीन सीटें लेकर सभी को चौंकाया था। भाजपा की झोली में 35 सीटें आईं थीं, तो आठ जिलों में फैली 45 सीटों में से कांग्रेस के हिस्से में फकत छः सीटें रह गईं। एक सीट जनता दल यू के खाते में आई, लेकिन अब हालात बिलकुल अलहदा हैं। गोंगपा कांग्रेस ही नहीं, भाजपा के लिए भी भस्मासुर बनती दिख रही है।

भाजपा की चुनौतियों का यहाँ एक आयाम पूर्व केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल भी है। पटेल के कारण भारतीय जनशक्ति जबलपुर, नरसिंहपुर और सिवनी की कई सीटों पर भाजपा के भगवे के लिए खतरा बन गई है। परिसीमन के कारण इस इलाके की सात सीटें कम हुई हैं। इसकी वजह से कांग्रेस में टिकटों के लिए खासी मारामारी है। भाजपा के लिए कांग्रेस की गुटबाजी ही थोड़ी-बहुत आस दिला रही है।

कटनी जिले की बड़वारा सीट जनता दल यू के कब्जे में थी, लेकिन अब यह आदिवासियों के लिए आरक्षित हो चुकी है। इसका सीधा फायदा कांग्रेस को होता दिख रहा है। पूर्व मंत्री कौशल्या गोटिया और जीवनलाल गोटिया इस क्षेत्र से कांग्रेस टिकट की दौड़ में हैं तो भाजपा के सामने चंद्रप्रतापसिंह गोविंदसिंह का विकल्प हैं। वैसे सही मायने में भाजपा यहाँ कांग्रेस से पिछड़ी है, तो उसकी सबसे बड़ी वजह प्रत्याशी का संकट है।

कांग्रेस को बढ़त : विजय-राघौगढ़ क्षेत्र में भी कांग्रेस को खासी बढ़त है, तो उसकी वजह पूर्व मंत्री सत्येंद्र पाठक के पुत्र संजय पाठक की उम्मीदवारी है। धन और बाहुबल उनकी संभावनाओं को उजला कर रहा है। इस क्षेत्र से मौजूदा भाजपा विधायक धु्रवप्रतापसिंह के समर्थन में आई गिरावट की बड़ी वजह जनता दल यू विधायक सरोज बच्चन नायक की उम्मीदवारी है। फिर भाजपा में बिखराव भी है।

कटनी शहर की सीट मुड़वारा में भाजपा को बढ़त तो है, लेकिन शहर की मौजूदा विधायक अलका जैन से भाजपाइयों का अलगाव बढ़ा है। यहाँ से भाजपा के श्रेष्ठ प्रत्याशी के बतौर सुकीर्ति जैन का नाम उभरा है, तो कांग्रेस से पूर्व विधायक डॉ. एपी सिंह और सुनील मिश्र का नाम प्रभावी दावेदारों में है।

टिकट की मारामारी : जबलपुर जिले की बहोरीबंद सीट पर कांग्रेसी विधायक निशीथ पटेल की बढ़त बरकरार है। भाजपा के पास उनके मुकाबले के लिए प्रभात पांडे का नाम श्रेष्ठ विकल्प के रूप में है, लेकिन सिहौरा सीट आरक्षित हो जाने के कारण विधायक दिलीप दुबे भी यहाँ से टिकट की कवायद में भिड़े हैं। पाटन सीट पर भी मौजूदा कांग्रेसी विधायक सोबरनसिंह बाबूजी को भाजपा पर बढ़त हासिल है, तो इसकी सबसे बड़ी वजह भारतीय जनशक्ति के कारण भाजपा के मतों में हुआ बिखराव है। कांग्रेस में टिकट को लेकर भारी मारामारी है। सेहत के कारण बाबूजी की विवशता को देखते हुए कांग्रेस में दावेदारों की भीड़ लग गई है। तारा पटेल, सेवरा मंडी अध्यक्ष नीलेश, पूर्व विधायक नित्यनिरंजन खम्परिया, नीतिश पटेल, विष्णु शंकर पटेल, हरपालसिंह आदि की लंबी फेहरिस्त है।

भाजपा कमजोर : बरगी सीट आदिवासी की बजाए अब सामान्य हो गई है। इसलिए मौजूदा भाजपा विधायक अनूपसिंह मरावी का टिकट खतरे में पड़ चुका है। सर्वे में कांग्रेस ने भाजश के कारण भाजपा पर मामूली बढ़त हासिल कर ली है। भाजपा से यहाँ भोजराजसिंह का नाम उभरा है, तो प्रतिभासिंह व नारायण चौधरी की भी दावेदारी है। इलाके में 11 फीसदी राजपूत और 14 फीसदी लोधी मतदाता हैं। जाहिर है टिकट के मुद्दे पर भाजपा में गुटबाजी मुखर होने के आसार हैं।

उमा भारती और प्रहलाद पटेल के असर वाले इस इलाके में भाजश से जागेंद्रसिंह का नाम उभरा है। इलाके में 18 फीसदी गौंड आदिवासी भी हैं, जो कांग्रेस और गोंगपा में बँटे हैं। बरगी सीट का मुकाबला बेहद दिलचस्प है, क्योंकि कांग्रेस में भी टिकट को लेकर भारी टकराव है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित जबलपुर पूर्व की सीट पर भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री अंचल सोनकर की बढ़त कायम है, तो उसकी वजह इलाके में बढ़ता बसपा का असर है। कांग्रेस से यदि लखन घनघोरिया को टिकट मिलता है, तो यहाँ काँटे की टक्कर देखने को मिलेगी।

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