Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

जहाँ देखा दम वहाँ खिसके हम

Advertiesment
हमें फॉलो करें चुनाव 2008
- प्रमोद शर्मा
चुनाव के दौरान मौका देखकर एक दल से दूसरे दल में जाने वाले दलबदलू नेता हमेशा से पार्टियों के लिए संकट खड़ा करते रहे हैं। उनका सीधा मकसद होता है कि 'यदि हम न खा पाए तो दोना लुढ़का जरूर देंगे।' इतिहास गवाह है चुनावी चौसर में दलबदलुओं ने अनेक बार परिणामों को प्रभावित किया है। कांग्रेस पार्टी में अन्य दलों से ज्यादा ही संकट रहा है।

चुनाव के दौरान विद्रोह करने वाले नेताओं की फेहरिस्त यहाँ काफी लंबी है। ऐसे नेताओं के कारण पार्टी को अनेक बार नुकसान भी उठाना पड़ा है। वर्ष 2003 के चुनाव में ही पार्टी से विद्रोह कर चुनाव लड़ने वाले नेताओं के कारण करीब दो दर्जन सीटों पर हार का मुँह देखना पड़ा था। हालाँकि ऐसे 8 बागी चुनाव जीतकर सदन में पहुँचने में कामयाब हो गए थे। दूसरी ओर भाजपा में विद्रोह हुआ था। ऐसे दो विद्रोही नेता चुनावी समर में भी थे, किन्तु उन्हें पराजय ही हाथ लगी और वे भाजपा को नुकसान भी नहीं पहुँचा पाए। चुनाव के दौरान टिकट की मारकाट को लेकर लोग पाला बदलने को तैयार हो जाते हैं।

पार्टियों के कर्ताधर्ता भी जीत की संभावना वाले नेताओं को टिकट का चारा डालकर अपनी पार्टी में मिलाने के लिए प्रयास करते रहते हैं। इन दिनों चूँकि टिकट के लिए चयन का दौर चल रहा है और टिकट चाहने वाले नेता भी अपने आकाओं को मनाने-रिझाने में मशगूल हैं। इसके साथ ही कुछ नेता विकल्प के तौर पर अन्य दलों से भी संपर्क बनाए हुए हैं। उनका सीधा मकसद टिकट पाना होता है।

2003 के चुनाव का परिदृश्य : इस चुनाव में सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को उठाना पड़ा था। पार्टी से बगावत कर चुनाव मैदान में उतरे 8 उम्मीदवार जीतकर सदन में पहुँच गए थे। विद्रोह कर जीतने वालों में हर्षसिंह रामपुर बघेलान, केके सिंह गोपदबनास, वंशमणिप्रसाद वर्मा सिंगरौली, हरिवल्लभ शुक्ला पोहरी, कमलापत आर्य भांडेर, हामिद काजी बुरहानपुर, अर्जुन पलिया पिपरिया तथा दिलीपसिंह गुर्जर खाचरौद शामिल हैं। इनके कारण रामपुर बघेलान, गोपदबनास, भांडेर तथा खाचरौद में तो कांग्रेस उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई थी।

जबकि पिपरिया में उसका उम्मीदवार तीसरे क्रम पर था। बागियों के कारण कांग्रेस को कई सीटों पर पराजय झेलनी पड़ी। कटनी के मुड़वारा क्षेत्र में कांग्रेस 11 हजार वोटों से हारी जबकि पार्टी से बागी हुए सुनील मिश्रा ने ही 22 हजार से ज्यादा वोट लिए थे। इस प्रकार पार्टी प्रत्याशी की हार में उनकी भूमिका अहम रही। दमोह की हटा सीट पर पुष्पेन्द्र हजारी बागी होकर सपा से मैदान में उतरे, इसके कारण पूर्व मंत्री राजा पटैरिया तीसरे नंबर पर रहे। निवास में पूर्व मंत्री दयालसिंह तुमराची ने गोंगपा का दामन थाम कर चुनावी वैतरणी पार करनी चाही। उनका मकसद तो पूरा नहीं हुआ, अलबत्ता उनके कारण कांग्रेस की लुटिया जरूर डूब गई।

इसी प्रकार टीकमगढ़ में भी बागी हुए यादवेन्द्रसिंह के कारण कांग्रेस प्रत्याशी को जमानत से हाथ धोना पड़ा था। बालाघाट के लांजी में विद्रोही एनपी श्रीवास्तव ने कांग्रेस प्रत्याशी भगवत भाऊ नगपुरे की जमानत जब्त करवा दी। नरसिंहगढ़ में कांग्रेस से रूठे राज्यवर्धनसिंह ने 21 हजार से ज्यादा मत झटक लिए। यहाँ कांग्रेस प्रत्याशी को 27 हजार से अधिक वोटों से हारना पड़ा।

बैतूल में बागी हुए अशोक साँवले सपा की साइकल पर सवार थे। वे 11 हजार वोट ले गए। यहाँ कांग्रेस प्रत्याशी विनोद डागा को करीब साढ़े छः हजार वोटों से पराजय का मुँह देखना पड़ा। देवरी में बागी सुनील जैन निर्दलीय रूप से मैदान में उतरे और 21 हजार से ज्यादा वोट लेकर कांग्रेस प्रत्याशी की हार में अहम रोल अदा किया। नागौद विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस 12 हजार वोटों से चुनाव हारी। यहाँ पार्टी से नाराज होकर चुनाव में उतरे रामप्रताप ने इतने ही वोट झटक लिए थे।

हालाँकि बुधनी में चौहानसिंह चौहान, बड़वानी में उमरावसिंह, खरगोन में करुणा दांगी को मतदाताओं ने कोई महत्व नहीं दिया। कुक्षी में प्रतापसिंह और लहार में रमाशंकर भी बागी के रूप में चुनाव मैदान में थे। उन्होंने अच्छे वोट लिए, किन्तु वे कांगे्रस के अधिकृत प्रत्याशियों क्रमशः जमनादेवी और गोविंदसिंह को जीतने से नहीं रोक पाए।

भाजपा के बागी रहे बेअसर : अनुशासन का राग अलापने वाले भगवा दल में भी 2003 में बागियों के तेवर देखने लायक थे। यह बात अलहदा है कि इन बागियों को मतदाताओं का कोई सहयोग नहीं मिला और पार्टी पर कोई खास असर नहीं रहा। रौन विधानसभा क्षेत्र से पार्टी से नाराज होकर राजेन्द्रसिंह सपा के टिकट पर मैदान में थे।

वे दूसरे क्रम पर रहे, किन्तु यह सीट भाजपा ने ही जीती। इसी प्रकार मुरैना से सेवाराम गुप्ता ने टिकट न मिलने से पाला बदला और सपा का दामन थाम लिया। वे न तो भाजपा की जीत रोक सके और न ही अपनी जमानत ही बचा पाए। कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे कैप्टन जयपालसिंह ने पिछले चुनाव में राकांपा छोड़कर जदयू के निशान पर पवई से किस्मत आजमाई, किन्तु उनकी जमानत जब्त हो गई। इसी प्रकार बसपा के बुद्धसेन पटेल ने सपा से चुरहट से तथा गणेशबारी ने समानता दल से चित्रकूट से चुनाव लड़ा, लेकिन उनकी भी जमानत जब्त हो गई।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi