Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

।। धर्म, संयम, तप ।।

हमें फॉलो करें ।। धर्म, संयम, तप ।।
धर्म के बारे में महावीर स्वामी के उपदेश-

धम्मो मंगल-मुक्किट्ठं अहिंसा संजमो तवो।
देवा वि तं नमंसंति जस्स धम्मे सया मणो
धर्म सबसे उत्तम मंगल है। अहिंसा, संयम और तप ही धर्म है। महावीरजी कहते हैं जो धर्मात्मा है, जिसके मन में सदा धर्म रहता है, उसे देवता भी नमस्कार करते हैं।

पाणे य नाइवाएज्ज अदिन्नं पि य नायए।
साइयं न मुसं बूया एस धम्मे वुसीमओ॥
महावीरजी का मानना था छोटे-बड़े किसी प्राणी को न मारना, बिना दी हुई चीज न लेना, विश्वासघात रूपी असत्य व्यवहार न करना, यही है आत्मनिग्रही लोगों का धर्म। साधु लोग इसी धर्म का पालन करते हैं।

समया सव्व भूएसु सत्तुमित्तेसु वा जगे।
पाणाइवायविरई जावज्जीवाए दुक्करं
चाहे शत्रु हो या मित्र, वैरी हो या मीत सभी जीवों पर, सभी प्राणियों पर समभाव रखना, सभी को अपने जैसे समझने को ही महावीरजी ने अहिंसा कहा है। जीवनभर किसी भी प्राणी को मन, वचन और काया से न सताना, किसी की हिंसा न करना सचमुच बहुत कठिन है।

संयम :
संयम के बारे में महावीर स्वामी के उपदेश-

तमाहु लोए पडिबुद्ध जीवी।
सो जीयइ संजम जीविएण
इस लोक में सदा जागने वाला वही है, जो संयमी जीवन बिताता है।

तहेव हिंसं अलियं चोज्जं अबम्भसेवणं।
इच्छाकामं च लोभं च संजओ परिवज्जए
महावीरजी कहते हैं जो पुरुष संयमी हो उसे इन चीजों को छोड़ना पड़ता है- हिंसा, झूठ, चोरी, व्यभिचार, भोग की लिप्सा और लोभ।

तप :
तप के बारे में महावीर स्वामी के उपदेश-

तवो य दुविहो वुत्तो बाहिरब्भन्तरो तहा।
बाहिरो छव्विहो वुत्तो एवमब्भन्तरो तवो
तप दो तरह का होता है- 1. बाहरी और 2. भीतरी। बाहरी तप 6 तरह का है, भीतरी तप भी 6 तरह का ही होता है।

अणसणमूणोयरिया भिक्खायरिया य रसपरिच्चाओ।
कायकिलेसो संलीणया य बज्झो तवो होई
अनशन, ऊनोदरिका, भिक्षाचरी, रसपरित्याग, कायक्लेश और संलीनता बाहरी तप हैं।

पायच्छित्तं विणओ वेयावच्चं तहेव सज्झाओ।
झाणं उस्सग्गो वि य अब्भिंतरो तवो होई
प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्य- देव, गुरु और धर्म की सेवा, स्वाध्याय, ध्यान और व्युत्सर्ग- आत्मभाव में रमना भीतरी तप हैं।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi