Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

॥ ब्रह्मचर्य ॥

हमें फॉलो करें ॥ ब्रह्मचर्य ॥
ब्रह्मचर्य के बारे में महावीर स्वामी के उपदेश-

बंभचेर-उत्तमतव-नियम-नाण-दंसण-चरित्त-सम्मत-विणयमूलं
ब्रह्मचर्य उत्तम तपस्या, नियम, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, संयम और विनय की जड़ है।

तवेसु वा उत्तम बंभचेरं
महावीर स्वामी कहते हैं कि तपस्या में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ तपस्या है।

इत्थिओ जे न सेवन्ति, आइमोक्खा हु ते जणा
जो पुरुष स्त्रियों से संबंध नहीं रखते, वे मोक्ष मार्ग की ओर बढ़ते हैं।

ब्रह्मचर्य की रक्षा के दस उपाय :
महावीर स्वामी ने ब्रह्मचर्य की रक्षा के दस उपाय भी सुझाए हैं-

जं विवित्तमणाइन्नं रहियं थीजणेण य।
बम्भचेरस्स रक्खट्ठा आलयं तु निसेवए
(1) ब्रह्मचारी ऐसी जगह रहे, जहाँ एकान्त हो, बस्ती कम हो, जहाँ पर स्त्रियाँ न रहती हों।

मणपल्हायजणणी का मरागविवड्ढणी।
बम्भचेररओ भिक्खू थीकहं तु विवज्जए
(2) ब्रह्मचारी को स्त्रियों संबंधी ऐसी सारी बातें छोड़ देनी चाहिए, जो चित्त में आनंद पैदा करती हों और विषय वासना को बढ़ाती हों।

समं च संथवं थीहिं संकहं च अभिक्खणं।
बम्भचेररओ भिक्खू निच्चसो परिवज्जए
(3) ब्रह्मचारी ऐसे सभी प्रसंग टाले, जिनमें स्त्रियों से परिचय होता हो और बार-बार बातचीत करने का मौका आता हो।

अंगपच्चंगसंठाणं चारुल्लवियपेहियं।
बम्भचेररओ थीणं चक्खुगिज्झं विवज्जए
(4) ब्रह्मचारी स्त्रियों के अंगों को, उनके हावभावों और कटाक्षों को न देखे।

कूइयं रुइयं गीयं हसियं थणियकन्दियं।
बम्भचेररओ थीणं सोयगेज्झं विवज्जए
(5) ब्रह्मचारी न तो स्त्रियों का कूजना सुने, न रोना, न गाना सुने, न हँसना, न सीत्कार करना सुने, न क्रंदन करना।

हासं किड्डं रइं दप्पं सदृसा वित्तासियाणि य।
बम्भचेररओ थीणं नानुचिन्ते कयाटू वि
(6) ब्रह्मचारी ने पिछले जीवन में स्त्रियों के साथ जो भोग भोगे हों, जो हँसी-मसखरी की हो, ताश-चौपड़ खेली हो, उनके शरीर का स्पर्श किया हो, उनके मानमर्दन के लिए गर्व किया हो, उनके साथ जो विनोद आदि किया हो, उसका मन में विचार तक न करे।

पणीयं भत्तपाणं तु खिप्पं मयविवड्ढणं।
बम्भचेररओ भिक्खू निच्चसो परिवज्जए
(7) ब्रह्मचारी को रसीली चिकनी चीजों- घी, दूध, दही, तेल, गुड़, मिठाई आदि को सदा के लिए छोड़ देना चाहिए। ऐसे भोजन से विषय वासना को शीघ्र उत्तेजना मिलती है।

रसा पगामं न निसेवियव्वा पायं रसा दित्तिकरा नराणं।
दित्तं च कामा समभिद्दवन्ति, दुमं जहा साउफल व मक्खी
ब्रह्मचारी को दूध, दही, घी आदि चिकने, खट्टे, मीठे, चरपरे आदि रसों वाले स्वादिष्ट पदार्थों का सेवना नहीं करना चाहिए। इनसे वीर्य की वृद्धि होती है, उत्तेजना होती है। जैसे दल के दल पक्षी स्वादिष्ट फलों वाले वृक्ष की ओर दौड़ते जाते हैं, उसी तरह वीर्य वाले पुरुष को कामवासना सताने लगती है।

धम्मलद्धं मियं काले जत्तत्थं पणिहाणव।
नाइमत्तं तु भुंजेज्जा बम्भचेररओ सया
(8) ब्रह्मचारी को वही भोजन करना चाहिए जो धर्म से मिला हो। उसे परिमित भोजन करना चाहिए। समय पर करना चाहिए। संयम के निर्वाह के लिए जितना जरूरी हो, उतना ही करना चाहिए। न कम न ज्यादा।

विभूसं परिवजेज्जा सरीरपरिमण्डण।
बम्भचेररओ भिक्खू सिगारत्थं न धारए
(9) ब्रह्मचारी को शरीर के श्रृंगार के लिए न तो गहने पहनने चाहिए और न शोभा या सजावट के लिए और कोई मान करना चाहिए।

सद्दे रूवे य गंधे य रसे फासे तहेव य।
पंचविहे कामगुणे निच्चसो परिवज्जए
(10) ब्रह्मचारी को शब्द, रूप, गंध, रस और स्पर्श- इन पाँच तरह के कामगुणों को सदा के लिए छोड़ देना चाहिए। जो शब्द, जो रूप, जो गंध, जो रस और जो स्पर्श मन में कामवासना भड़काते हैं, उन्हें बिलकुल त्याग दें।

जलकुंभे जहा उवज्जोई संवासं विसीएज्जा
आग के पास रहने से जैसे लाख का घड़ा पिघल जाता है, वैसे ही स्त्री के सहवास से विद्वान का मन भी विचलित हो जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi