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॥ शांति पाठ (शास्त्रोक्त विधि) ॥

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शांति पा
- जुगल किशो

शास्त्रोक्त विधि पूजा महोत्सव सुरपति चक्री करें।
हम सारिखे लघु पुरुष कैसे यथाविधि पूजा करें॥
धन क्रिया ज्ञान रहित न जानें रीति पूजन नाथ जी।
हम भक्ति वश तुम चरण आगे जोड़ लीने हाथ जी॥1॥

दुखहरण मंगल करण आशा भरन जिन पूजा सही।
यों चित्त में सरधान मेरे शक्ति है स्वयमेव ही॥
तुम सारिखे दातार पाए काज लघु जाचूँ कहा।
मुझ आप सम कर लेहु स्वामी यही इक वांछा महा॥2॥

संसार भीषण विपिन में वसुकर्म मिल आतापियो।
तिस दाह तें आकुलित चित है शांति थल कहुं ना लियो॥
तुम मिले शांतिस्वरूप शांति करण समरथ जगपती।
वसु कर्म मेरे शांत कर दो शांतिमय पंचम गती॥3॥

जबलौं नहीं शिव लहूँ तबलौं देहु यह धन पावना।
सतसंग शुद्धाचरण श्रुत-अभ्यास आतम भावना॥
तुम बिन अनंतानंत काल गयौ रुलत जगकाल में।
अब शरण आयो नाथ दुहु कर जोड़ नावत भाल में॥4॥

कर प्रमाण के मान तैं गगन नपै किहि मंत।
त्यौं तुम गुण वर्णन करत कदि पावै नहिं अंत॥

(यहाँ नौ बार णमोकार मंत्र जपना चाहिए।)

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