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नक्सली नेता कानू सान्याल का निधन

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सिलिगुड़ी/कोलकाता , मंगलवार, 23 मार्च 2010 (20:09 IST)
पश्चिम बंगाल में साठ के दशक में नक्सलवादी आंदोलन की शुरुआत करने वाले के प्रभावशाली नेता कानू सान्याल बुधवार को जलपाईगुड़ी जिले में अपने घर में मृत पाए गए।

पुलिस महानिरीक्षक (उत्तर बंगाल) केएल टम्टा ने बताया कि पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे 78 वर्षीय सान्याल सिलिगुड़‍ी से 25 किलोमीटर दूर सेफतुलाजोत गाँव में अपने कमरे में छत से झूलते पाए गए।

सान्याल ने चारू मजुमदार और जंगल संथाल के साथ मिलकर 25 मई 1967 में उत्तरी बंगाल के नक्सलबाड़ी के एक छोटे से गाँव से नक्सल आंदोलन की शुरुआत की घोषणा की थी और 1969 में कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्‍सवादी लेनिनवादी का गठन किया था।

इन तीनों नेताओं ने मिलकर साठ के दशक में जबर्दस्त नक्सल आंदोलन छेड़ा और देश के बुद्धिजीवी और युवा वर्ग का उन्हें भारी समर्थन मिला। लेकिन बाद में उनके नक्सलवादियों से मतभेद हो गए। 1977 में जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने नक्सलवादियों की सशस्त्र संघर्ष की नीति की खुलकर आलोचना की।

अपनी मृत्यु के समय वह नवगठित कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी लेनिनवादी) के महासचिव थे। यह पार्टी नक्सलवादियों के कई समूहों को लेकर बनाई गई थी।

एक समय नक्सलवादी आंदोलन के अगुवा रहे सान्याल बढ़ती उम्र से जुड़ी गुर्दे और प्रोस्टेट की बीमारी झेल रहे थे। 1932 में कुर्सियांग में जन्मे सान्याल अविवाहित थे।

सान्याल को सिलिगुडी अदालत में राजस्व विभाग में क्लर्क की नौकरी करते हुए कम्युनिस्ट पार्टी पर लगाए गए प्रतिबंध के विरोध में मुख्यमंत्री को काला झंडा दिखाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था। जलपाईगुडी जेल में उनकी मुलाकात कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन जिला सचिव चारू मजुमदार से हुई और वह कम्युनिस्ट पार्टी में विधिवत शामिल हो गए।

बाद में पार्टी विभाजन के समय मजुमदार के साथ वह माकपा में आ गए लेकिन जल्दी ही उनका माकपा की नीतियों से मोह भंग हो गया और मजुमदार संथाल के साथ उन्होंने नक्सलवादी आंदोलन के शुरुआत की घोषणा की।

सान्याल ने ब्लादीमीर लेनिन के जन्म दिवस पर कोलकाता के शहीद मीनार से 1969 मे भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्‍सवादी लेनिनवादी) की स्थापना की घोषणा की और भारत में सशस्त्र संघर्ष के जरिये क्रांति लाने का आह्वान किया।

सीपीआई एमएल ने हिंसा के जरिये सत्ता हथियाने और सर्वहारा वर्ग के दुश्मनों को मार डालने की नीति की खुलेआम घोषणा की। उन्होंने अपने संसाधन जुटाने के लिए बैंकों और सशस्त्रागारों को लूटा।

किसान विद्रोह के साथ शुरू हुए नक्सलवादी आंदोलन में फांसीदेवा पुलिस थाने के प्रभारी अमरेन्द्रनाथ पाइन की तीर धनुष से हत्या कर दी गई थी।

वर्ष 1972 में चारू मजूमदार की मृत्यु के बाद नक्सल आंदोलन में बिखराव आ गया। इस बीच जंगल संथाल की भी मौत हो गई। सान्याल ने अपनी रिहाई के बाद आर्गनाइजिंग कमेटी ऑफ कम्युनिस्ट रेवोल्यूशनरीज का गठन किया। बाद में उन्होंने ओसीसीआर का कम्युनिस्ट आर्गनाइजेशन आफ इंडिया मार्क्‍सिस्ट लेनिनिस्ट में विलय कर दिया। इसके बाद वह पुनर्गठित भाकपा एमएल के महासचिव बने।

उन्होंने माओवादियों की हिंसा की नीति की कड़ी आलोचना की और कहा कि हिंसा से कोई हल नहीं निकल सकता।

सान्याल ने सिंगूर और नंदीग्राम में राज्य सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण की भी आलोचना की थी और राज्य की वाममोर्चा सरकार को पूँजीवादी कहा था। मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने सान्याल के निधन पर दुख व्यक्त करते हुए इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। (भाषा)

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