Dharma Sangrah

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

नाबालिग की उम्र सीमा नहीं घटेगी-सुप्रीम कोर्ट

Advertiesment
हमें फॉलो करें सुप्रीम कोर्ट
नई दिल्‍ली , बुधवार, 17 जुलाई 2013 (14:54 IST)
FILE
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने किशोर माने जाने की आयु 18 साल से घटाकर 16 करने से इंकार करते हुए जघन्य अपराधों में लिप्त नाबालिगों को किशोर न्याय कानून के तहत संरक्षण से वंचित करने हेतु दायर याचिका बुधवार को खारिज कर दी।

प्रधान न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने दिल्ली में सामूहिक बलात्कार और हत्या की घटना के बाद दायर तमाम जनहित याचिकाएं खारिज करते हुए अपने फैसले में कहा कि किशोर न्याय कानून में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

न्यायाधीशों ने कहा कि हम कानून के प्रावधानों को सही ठहराते हैं। इस कानून में हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है।

राजधानी में पिछले साल 16 दिसंबर को चलती बस में एक छात्रा से बलात्कार और उसकी हत्या की वारदात में एक नाबालिग के कथित रूप से लिप्त होने का तथ्य सामने आने के बाद किशोर न्याय कानून में संशोधन के लिए जनहित याचिकाएं दायर की गई थीं।

इन याचिकाओं में कहा गया था कि बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों में शामिल नाबालिग बच्चों को किशोर न्याय कानून के तहत संरक्षण नहीं मिलना चाहिए। किशोर न्याय कानून में संशोधन के लिए दायर इस याचिका का दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग के पूर्व अध्यक्ष आमोद कंठ सहित अनेक लोगों ने विरोध किया था।

पिछले साल दिसंबर में हुई बलात्कार की सनसनीखेज वारदात में कथित रूप से 6 व्यक्ति शामिल थे। इनमें एक नाबालिग था जिसके खिलाफ किशोर न्याय बोर्ड में कार्यवाही चल रही थी। यह बोर्ड 25 जुलाई को अपना निर्णय सुनाएगा। इस वारदात की शिकार लड़की की बाद में 29 दिसंबर को सिंगापुर के अस्पताल में मृत्यु हो गई थी।

इन याचिकाओं में से एक में किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून 2000 में किशोर को परिभाषित करने वाले प्रावधान की वैधानिकता को चुनौती दी गई थी। यह प्रावधान कहता है कि 18 साल की आयु पूरी होने तक व्यक्ति नाबालिग माना जाएगा। याचिका में कहा गया था कि इस कानून की धाराएं 2 (के), 10 और 17 तर्कसंगत नहीं हैं और ये असंवैधानिक हैं।

याचिका में कहा गया था कि इस कानून में संशोधन की आवश्यकता है, क्योंकि इसमें किशोर की शारीरिक या मानसिक परिपक्वता का जिक्र नहीं है। एक अन्य याचिका में आपराधिक मनोवैज्ञानिक की नियुक्ति का अनुरोध किया था ताकि चिकित्सीय परीक्षण से यह निर्धारित हो सके कि कहीं आरोपी किशोर समाज के लिए खतरा तो नहीं होगा। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi