मुख्य सूचना आयुक्त ने शुक्रवार को केंद्रीय गृह मंत्रालय को नेताजी सुभाषचंद्र बोस के 1945 में कथित तौर पर लापता होने की जाँच में न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग द्वारा उपयोग किए गए सभी दस्तावेजों का खुलासा करने को कहा है।
मुख्य सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्ला ने हालाँकि इस मुद्दे से जुड़े अन्य मंत्रालयों, राज्य सरकारों और प्रधानमंत्री कार्यालय के दस्तावेजों को सार्वजनिक करने के मामले में अपना निर्णय सुरक्षित रखा। ये दस्तावेज मौजूदा समय में गृह मंत्रालय के पास हैं।
उन्होंने कहा कि सूचना अधिकार अधिनियम (आरटीआई एक्ट) के तहत उनका खुलासा करने का दारोमदार हालाँकि दस्तावेज रखने वालों पर है, जो मौजूदा समय में गृह मंत्रालय है न कि कोई अन्य मंत्रालय। उन्होंने कहा कि वह अपनी व्यवस्था देने से पहले अदालत के निर्णयों और इस बारे में कानूनी प्रावधानों को देखेंगे।
एक निजी फर्म में एक्जीक्यूटिव चंद्रचूड़ घोष द्वारा न्यायमूर्ति मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में सूचीबद्ध प्रपत्रों के खुलासे का आवेदन दाखिल किए जाने के 33 महीने बाद यह फैसला आया है।
गृह मंत्रालय पूर्व में सीआईसी के आदेशों के बावजूद दस्तावेजों का खुलासा करने के प्रति अनिच्छुक था। सीआईसी ने विलंब के लिए मंत्रालय के प्रतिनिधियों से सवाल भी किए थे।
मंत्रालय के अधिकारियों कहा था कि इन दस्तावेजों को भारतीय राष्ट्रीय संग्रहालय में तब्दील करने की प्रक्रिया जारी है, जबकि हबीबुल्ला ने चेतावनी दी कि यह अनिश्चितकाल तक नहीं चल सकता।
गृह मंत्रालय का प्रतिनिधित्व कर रहे संयुक्त सचिव लोकेश झा ने कहा कि दस्तावेज बहुत ज्यादा हैं और हमने 22 संदूकों में रखे हैं और इन दस्तावेजों में काफी मंत्रालय के हैं। उन्होंने कहा कि मंत्रालय को इससे जुड़े दस्तावेजों का खुलासा करने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन अन्य मंत्रालयों और पीएमओ के प्रपत्र उपलब्ध कराना संभव नहीं है क्योंकि वे अपने दस्तावेज वापस चाहते हैं।
गृह मंत्रालय ने अपील करने वाले से उन दस्तावेजों की सूची देने को कहा जो वह चाहता है और उसी के अनुरूप उनकी एक प्रति मुहैया कराई जा सकती है।
अपने सूचना के अधिकार का उपयोग करते हुए घोष ने 22 नवंबर, 2006 को यह आवेदन दाखिल किया था जिसमें मुखर्जी आयोग की रिपोर्ट में सूचीबद्ध दस्तावेजों की माँग की गई, लेकिन मंत्रालय ने यह कहते हुए छह महीने के समय की माँग की कि दस्तावेज बहुत ज्यादा हैं, लेकिन सीआईसी ने इस दलील को ठुकरा दिया।
घोष ने कहा कि मंत्रालय ने किसी न किसी बहाने का उल्लेख किया है। यह कहे बिना इनकार करने जैसा है। हर बार वे क्यों नए बहाने बना रहे हैं। सुभाष चंद्र बोस के 1945 मे लापता होने के विवादों की जाँच के लिए 1999 में एक सदस्यीय आयोग का गठन किया गया था।