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मंदिर की भव्यता देख दंग रह गया था गजनवी

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मथुरा (भाषा) , रविवार, 24 अगस्त 2008 (11:07 IST)
लीलाधर कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा में बने भव्य मंदिर को देखकर लुटेरा महमूद गजनवी भी आश्चर्यचकित रह गया था। उसके मीर मुंशी अल उत्वी ने अपनी पुस्तक तारीखे यामिनी में लिखा है कि गनजवी ने मंदिर की भव्यता देखकर कहा था कि इस मंदिर के बारे में शब्दों या चित्रों से बखान करना नामुमकिन है। उसका अनुमान था कि वैसा भव्य मंदिर बनाने में दस करोड़ दीनार खर्च करने होंगे और इसमें दो सौ साल लगेंगे।

पौराणिक कथाओं के अनुसार योगेश्वर श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन कंस के कारागार में हुआ था। कथाओं के अनुसार उनके प्रपौत्र व्रजनाभ ने ही सर्वप्रथम उनकी स्मृति में केशवदेव मंदिर की स्थापना की थी।

श्रीकृष्ण के इस भव्य एवं दिव्य मंदिर का इतिहास पिछले दो हजार साल में काफी उतार-चढ़ाव का रहा है। आतताइयों ने इसे कम से कम तीन बार नष्ट किया, लेकिन भक्तों की श्रद्धा एवं विश्वास में कोई कमी नहीं आई। आज भी हर साल भारी तादाद में कृष्ण उपासक यहाँ आकर अपने को धन्य महसूस करते हैं और 'जय कन्हैयालाल की' का उद्‍घोष करते हैं।

ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक प्रमाण की दृष्टि से सबसे पुराना शिलालेख महाक्षत्रप शोडास (ईसा पूर्व 80 से 57 तक) के समय का मिला है। ब्राह्मी लिपि के इस शिलालेख के अनुसार उसके राज्यकाल में वसु नामक एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्म स्थान पर एक मंदिर, तोरण द्वार और वेदी का निर्माण कराया था। काल के थपेड़ों ने मंदिर की स्थिति खराब बना दी। करीब 400 साल बाद गुप्त सम्राट विक्रमादित्य ने उसी स्थान पर भव्य मंदिर बनवाया। इसका वर्णन भारत यात्रा पर आए चीनी यात्रियों फाह्यान और ह्वेनसांग ने भी किया है।

बाद में मथुरा के राजा विजयपाल के कार्यकाल में एक श्रद्धालु ने मंदिर को नया जीवन प्रदान किया, लेकिन सिकंदर लोदी की बुरी नजर उस पर पड़ी और उसने मंदिर तुड़वा दिया। बाद में ओरछा नरेश वीरसिंह देव बुंदेला ने भव्य मंदिर बनवाया। उस समय के बादशाह जहाँगीर ने ही बुंदेला को पुनर्निर्माण की इजाजत दी थी।

फ्रांसीसी यात्री टैबरनियर 17वीं सदी में भारत आया था और उसने अपने वृत्तांतों में मंदिर की भव्यता का जिक्र किया है। इतालवी सैलानी मनूची के अनुसार केशवदेव मंदिर का स्वर्णाच्छादित शिखर इतना ऊँचा था कि दीपावली की रात उस पर जले दीपकों का प्रकाश 18 कोस दूर स्थित आगरा में भी दिखता था।

कई बार बने और टूटे इस मंदिर पर अंतिम प्रहार औरंगजेब ने किया। बहरहाल महामना मदनमोहन मालवीय और जुगलकिशोर बिड़ला के प्रयासों से 1951 में एक ट्रस्ट बनाकर 1953 में मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू किया गया। 1958 में कृष्ण जन्माष्टमी के दिन मंदिर का लोकार्पण हुआ। बाद में ट्रस्ट ने औषधालय, विश्रामगृह तथा भागवत भवन का भी निर्माण कराया।

मथुरा कृष्ण के जन्मदिन की तैयारी में जुट गई है और भक्त अपने आराध्य की आराधना के लिए कल देर रात तक जागरण, भजन-कीर्तन करेंगे, जो अन्य मंदिरों के साथ-साथ इस मंदिर में भी गूँजेगा।

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