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मोनिका के माता-पिता ने खोले थे कई राज

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नई दिल्ली (वेबदुनिया न्यूज) , गुरुवार, 24 जनवरी 2008 (16:44 IST)
भारतीय मीडिया में इन दिनों मोनिका बेदी खासी सु‍र्खियों में छायी हुई है। वजह फकत इतनी है कि उसे मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल की अदालत ने साक्ष्य के अभाव में जाली पासपोर्ट बनवाने के आरोप से बरी कर दिया है।

आज हरेक की दिलचस्पी मोनिका की निजी जिन्दगी को जानने की है। कौन है वह? उसके माता-पिता कौन हैं और वह कनाड़ा में अच्छी शिक्षा पाने के बाद अंडरवर्ल्ड की अंधी गलियों में कैसे पहुँची?

कहते हैं 'पीपुल्स मैमोरी इज वैरी शॉर्ट'। इस दौड़ती-भागती जिन्दगी में लोग बहुत जल्दी भूल जाते हैं कि चंद साल पहले कब-क्या हुआ था? मोनिका और अबू सलेम के साथ-साथ इस खूबसूरत हसीना के परिजनों के बारे में जानने के लिए हमें अतीत के पन्ने पलटने होंगे। 'स्टार टीवी' ने मोनिका के माता-पिता से विशेष बातचीत की थी, जिसमें उन्होंने कई राज खोले थे।

जेल की कोठरी में रोती थी : वह 2 दिसम्बर 2005 की कँपकंपा देने वाली सर्द रात थी। मोनिका बेदी फर्जी पासपोर्ट के मामले में पुर्तगाल से लाई गई थी। वह हैदराबाद की चंचलगुड़ा नामक जेल में 8 बाय 10 की कोठरी में रोती रहती थी और उस पल को कोसती थी कि आखिर उसने किस मनहूस घड़ी में सलेम का हाथ थामा था।

माता-पिता नार्वे में रहते हैं : किसी समय मोनिका और अबू ही आजाद पंछी की तरह हवा में उड़ते थे और दुनिया के तमाम ऐशो-आराम से बाबस्ता थे लेकिन तब दोनों ही जेल कोठरियों में अपने गुनाहों को याद कर रहे थे। सबसे ज्यादा तकलीफ तो मोनिका के माता-पिता को थी, नार्वे के ड्रमन नामक शहर में रहते थे।

डॉक्टर पिता ने शुरू किया कारोबार : मोनिका बेदी के पिता प्रेम कुमार बेदी पंजाब के रहने वाले थे और पेशे से डॉक्टर थे। वे 1975 में यूरोप के खूबसूरत देशों में से एक नार्वे आ गए और उन्होंने राजधानी ओस्लो से 90 किलोमीटर दूर ड्रमन को अपना ठिकाना बनाया। यहाँ उन्होंने कपड़ों का कारोबार शुरू किया। प्रेमकुमार की पत्नी शकुन्तला देवी अपने दो बच्चों मोनिका और बॉबी के साथ ड्रमन आ गई। उस वक्त मोनिका की उम्र केवल डेढ़ बरस थी।

घर का नाम निकी : वक्त गुजरता गया और मोनिका स्कूल जाने लायक हुई। उसे घर में प्यार से सब 'निकी' कहते थे। वह बेहद चंचल, शरारती, नटखट होने के साथ ही बहुत सुंदर थी। मोनिका का दाखिला फेहाईन नामक सबसे महँगे स्कूल में कराया गया और उसने यहाँ 10वीं तक की शिक्षा ग्रहण की। वह ड्रमन में स्नातक की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर लंदन चली गई। बाद में उसकी शिक्षा कनाडा में भी हुई।

ऊँची इमारतों को देख बुने बड़े सपने : पहाड़ियों से घिरा ड्रमन बहुत खूबसूरत शहर है और यहाँ की ऊँची-ऊँची इमारतों को देखकर इस हसीना ने बचपन से ही बड़ा बनने के सपने बुनना शुरू कर दिए थे। उसके पिता के अनुसार मोनिका फिल्मों में काम करना चाहती थी, यही कारण है कि उसका मन विदेश में नहीं लगा।

1996 में किया मुंबई का रुख : मोनिका अपने मामा का साथ पाकर 1996 में लंदन से मायावी नगरी मुंबई चली आई। यहाँ उसने छोटे-मोटे विज्ञापनों में काम भी किया। इसी बीच फिल्म निर्माता मुकेश दुग्गल से उसकी मुलाकात हुई, जिसने दुबई में एक शो के दौरान उसे अबू सलेम से मिलवाया था। कहा जाता है कि अबू और छोटा शकील में प्रतिद्वंद्विता के चलते शकील ने मुकेश की हत्या करवा दी और यहीं से अबू और मोनिका करीब आ गए।

वह अबू नहीं संजय है : मोनिका के पिता प्रेम कुमार ने बताया कि मेरी बेटी फिल्मों में काम करने लगी थी और जब उसने एक सीधे-साधे युवक को अपने दोस्त व मददगार के रूप में मिलवाया तो उस युवक ने अपना नाम संजय बताया। संजय मुझे पापा कहता था। मुझे नहीं मालूम था कि संजय का असली नाम अबू सलेम था और हमें नहीं मालूम था कि उसके तार अपराध जगत से जुड़े थे।

संजय उर्फ अबू सलेम से पहली मुलाकात : प्रेम कुमार ने यह भी कहा कि संजय उर्फ अबू सलेम से मेरी पहली मुलाकात पुर्तगाल में 2002 में हुई, जब मोनिका और वह फर्जी पासपोर्ट के आरोप में पकड़े गए थे। मैं पुर्तगाल गया और दोनों से मिला। अबू से मेरी मुलाकात 5-6 मिनट की रही। इस दौरान उसने हिन्दू रिवाज के अनुसार मेरे चरण-स्पर्श करते हुए कहा कि मैं बेकसूर हूँ।

मेरी बेटी मासूम है : मोनिका के पिता अपनी बेटी को बेगुनाह मानते हैं। उनका कहना था कि मेरी बेटी ने कभी भी किसी भी पासपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं किए। उसका एकमात्र असली पासपोर्ट मुंबई में 1999 में बना था, जो बाद में गुम हो गया। उन्होंने इसके लिए अबू सलेम की पहली पत्नी समीरा जुमानी को दोष देते हुए आरोप लगाया कि उसी ने अबू के करीब लाने के लिए मोनिका का असली पासपोर्ट गायब किया।

मोनिका-अबू की शादी नहीं हुई : प्रेमकुमार ने अबू सलेम के उस दावे को खारिज कर दिया कि उनकी बेटी की अबू से शादी हुई है। उन्होंने कहा कि अबू मुसलमान है और हम हिन्दू। आप कैसे सोच सकते हैं कि हम अपनी बेटी की शादी उससे करेंगे? यदि मोनिका शादी करती भी तो अपनी माँ को जरूर बताती।

पूरा नार्वे मेरी ईमानदारी का गवाह : प्रेम कुमार के अनुसार पूरा नार्वे जानता था कि 1975 के बाद मैं यहाँ आया और अपने कारोबार के सिवाय मेरा किसी दूसरे कार्यो में लेना देना नहीं रहा। मेरे घर से 2 किलोमीटर दूर मुख्य बाजार एंजिनी इलाके में मेरी 'यूरो टैक्सिल' नामक एक कपड़े की दुकान है। यहाँ मैं भारत और दूसरे देशों के कपड़ों को आयात करता हूँ। इसके अलावा दुकान में ही फिल्मों की सीडी का भी कारोबार है।

भाई बॉबी की शादी में खूब नाची थी वह : प्रेम कुमार ने कहा कि मेरे बेटे की शादी भारत में 1999 में हुई थी। इस शादी में शरीक होने के लिए मोनिका भी आई थी और काफी नाची थी। शादी के दौरान की तस्वीरें आज भी हमारे पास हैं। जब भी उसकी याद आती है तो तस्वीरों को सीने से लगाकर मन हल्का कर लेते हैं। फिलहाल तो हम काफी सदमे में हैं क्योंकि यकीन ही नहीं होता कि हमारी बेटी जिन्दगी के ऐसे मुकाम पर पहुँच जाएगी।

माँ शकुन्तला के आंसू नहीं थमते थे : दिसम्बर 2005 में जब मोनिका है‍दराबाद की जेल में बंद थी, तब सबसे ज्यादा आहत उसकी माँ शकुन्तला ही थी। तब उन्हें जैसे ही यह पता चलता कि कोई भारत से आया है और मोनिका से मिला है तो वे बुक्का फाड़कर रोने लगती थी। वे कहती थीं कि मोनिका बहुत मासूम है। मैं यही कहती रही कि वापस चल... वापस चल... लेकिन वह नहीं मानी और आज देखो वह सलाखों के पीछे है। माँ होने के नाते मैं ही जान सकती हूँ कि मेरे सीने में कितना दर्द छुपा हुआ है जो आज आँसू बनकर टपक रहा है।

बचपन में बहुत डरपोक थी : शकुन्तला कहती हैं कि मैंने मोनिका को पंजाब के छिब्बेवाल में जन्म दिया था। जब वह डेढ़ साल की थी, तब मैं ड्रमन आ गई थी इसके पिता के यहाँ आने के साल भर बाद (1976 में)। वह बचपन से बहुत शैतान थी और मुझे हर बात बताती थी। वह इतनी डरपोक किस्म की थी कि अकेले कहीं नहीं जाती। मैं हमेशा उसके साथ रहती थी।

बेटी की खातिर नौकरी छोड़ी : लंदन से जब वह मुंबई गई तो मुझे फोन करके कहा, तुम मेरे पास आ जाओ। मैं ड्रमन में नर्स थी और मैंने बेटी की खातिर नौकरी छोड़ दी। मुंबई, हैदराबाद, मद्रास जहाँ भी वह शूटिंग करने जाती मैं उसके साथ साये की तरह चिपकी रहती। मोनिका (निकी) को ड्राइविंग नहीं आती थी। यह भी मैंने ही उसे सिखाई। मोनिका की मुंबई में कोई दोस्त नहीं थी लिहाजा वह मुझसे ही अपनी हर बात शेयर करती थी। मुझे लगता है कि संजय उर्फ अबू सलेम की असलियत का उसे पता नहीं था। यदि पता भी चला होगा तो वह दुबई में, लेकिन उसने कभी मुझसे इसका जिक्र नहीं किया।

सीने से लगाने की तड़प : मैंने उसे डांस की तालीम दिलवाई। एक बार उसका फोन आया कि मुझे सलमान खान के साथ दो फिल्में मिल गई है। मुझे क्या पता था कि अबू सलेम ही उसे फिल्मों में मदद कर रहा है और बदले में बॉलीवुड की अंदरूनी जानकारियाँ हासिल कर रहा है। आज माँ होने के नाते मैं अपनी निकी से मिलने के लिए तड़प रही हूँ। पता नहीं वह दिन कब आएगा जब मैं उसे सीने से लगाऊँगी....

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