इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने दावा किया है कि नकली और मिलावटी दवाओं के जरिये कारोबार करने वाले मौत के सौदागरों का घातक व्यवसाय देश नौ राज्यों में में 7 हजार करोड़ रुपए से अधिक पहुँच गया है।
एसोसिएशन ने इसे रोकने के संबंध में वर्तमान कानून में संशोधन करने के लिए केंद्र द्वारा कोई कार्रवाई नहीं करने पर खेद व्यक्त किया है। एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. अजय कुमार ने बताया कि देश में नकली और मिलावटी दवाओं का कारोबार 7 हजार करोड़ रुपए से अधिक है।
उन्होंने कहा कि डब्ल्यूएचओ का कहना है कि भारत में नकली और मिलावटी दवाओं का व्यवसाय कुल दवाओं के कारोबार का करीब 35 प्रतिशत तक पहुँच गया है।
उन्होंने कहा कि मौत के सौदागरों का यह घातक व्यवसाय नए इलाकों में फैलना केंद्र सरकार और चिकित्सा पेशे से जुड़े लोगों के लिए गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है।
आज इस कारोबार ने उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, राजस्थान, प. बंगाल और महाराष्ट्र को पूरी तरह अपने चपेट में ले लिया है और हर साल नए इलाकों में फैलता जा रहा है।
डॉ. कुमार ने कहा कि उनका संगठन नकली और मिलावटी दवाओं को रोकने के वर्तमान कानून में संशोधन करने के लिए केंद्र को कई बार लिख चुका है, लेकिन कुछ नहीं हुआ। अब हमने मीडिया के माध्यम से इस मुद्दे को उठाना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस घातक व्यवसाय को वास्तव में रोकना चाहती है, तो उसे मादक पदार्थ नियंत्रण कानून की तरह एक सख्त कानून बनाना चाहिए।
डॉ. कुमार ने कहा कि इस कारोबार के बढ़ने का मुख्य कारण कानून प्रवर्तन एजेंसियों की खामियाँ, जाँच प्रयोगशालाओं का भारी अभाव और राजनीतिक इच्छा शक्ति की कमी होना है। यह हर साल तेजी से बढ़ता ही जा रहा है और नए-नए इलाकों को अपनी चपेट में ले रहा है।
डॉ. कुमार ने कहा कि अच्छी और गुणवत्ता दवाएँ आम उपभोक्ता को मिलने के प्रति सरकार कितनी चिंतित है इस बात का अंदाज इसी बात से लग जाता है कि पिछले कई सालों से दवाओं की जाँच के लिए देश के विभिन्न भागों में कुल 37 प्रयोगशालाएँ हैं, जिसमें से केवल 7 इस समय काम रही है, जबकि शेष किन्हीं कारणों से कार्य नहीं कर रही है। दुनिया में दवाओं के निर्माण में भारत का प्रमुख 10 देशों में आता है।