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रावण के गाँव में नहीं मनता दशहरा

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नई दिल्ली (भाषा) , रविवार, 14 अक्टूबर 2007 (13:22 IST)
देशभर में जहाँ दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गाँव नोएडा जिले के बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है। इस बार भी दशहरे के त्योहार को लेकर यहाँ के लोगों में कोई खास उत्साह नहीं है।

बिसरख गाँव के लोग न तो दशहरा मनाते हैं और न ही यहाँ रामलीला का मंचन होता है। इस गाँव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है।

पुरातत्व विभाग ने राम और रावण के अस्तित्व को भले ही नकार दिया हो, लेकिन नोएडा के शासकीय गजट में रावण के पैतृक गाँव बिसरख के साक्ष्य मौजूद नजर आते हैं।

गजट के अनुसार बिसरख रावण का पैतृक गाँव है और लंका का सम्राट बनने से पहले रावण का जीवन यहीं गुजरा था।
इस गाँव का नाम पहले विश्वेशरा था, जो रावण के पिता विश्वेशरा के नाम पर पड़ा। कालांतर में इसे बिसरख कहा जाने लगा।

पहले यह गाँव गाजियाबाद जिले में पड़ता था, लेकिन उत्तरप्रदेश में नए जिलों के सृजन के साथ यह गौतमबुद्धनगर(नोएडा) जिले में चला गया।

गाँव के लोगों का कहना है कि रावण का स्थान होने की वजह से वे दशहरा पर्व नहीं मनाते और यहाँ तक कि वे किसी अन्य जगह पर रावण के पुतले का दहन देखने से भी परहेज करते हैं।

कहा जाता है कि काफी समय पहले यह गाँव भूगर्भीय कारणों से ध्वस्त होकर एक टीले में तब्दील हो गया था। खुदाई करने पर आज भी यहाँ मिट्टी में दबे प्राचीन शिवलिंग निकलते हैं।

गाजियाबाद के प्रसिद्ध दूधेश्वरनाथ मंदिर का शिलालेख भी इस स्थान को रावण का क्षेत्र बताता है। शिलालेख पर यहाँ रावण द्वारा भगवान शिव की पूजा करने की बात लिखी हुई है।

कहा जाता है कि दूधेश्वरनाथ मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित हिंडन नदी पौराणिक काल की हरनंदी नदी है, जिसे कालांतर में हिंडन कहा जाने लगा।

मान्यता है कि रावण की शिवभक्ति के चलते यहाँ स्थित कैला और कैलाशनगर का नाम कैलाश पर्वत के नाम पर पड़ा है। बिसरख गाँव के लोगों का यह भी कहना है कि रावण की पटरानी मंदोदरी मेरठ की रहने वाली थी।

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