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लॉबिंग क्या है..?

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वॉलमार्ट द्वारा 2008 से अब तक भारत में निवेश के लिए बाजार पहुंच बढ़ाने समेत विभिन्न लॉबिंग गतिविधियों पर 2.5 करोड़ डॉलर (करीब 125 करोड़ रुपए) खर्च किए जाने की बात सामने आने के बाद भारतीय राजनीति में तूफान खड़ा हो गया है। हालांकि वॉलमार्ट ने इसका खंडन किया है।

अमेरिका में लॉबिंग आम बात है और इसके लिए वहां कानून भी है, लेकिन भारत में लॉबिंग जैसा कुछ भी नहीं होता। क्या भारत में भी लॉबिंग के लिए कानून बनना चाहिए? आखिर लॉबिंग है क्या?

दरअसल, किसी भी कंपनी द्वारा अपने पक्ष में पैरवी करवाने के लिए प्रभाव का इस्तेमाल करना लॉबिंग का हिस्सा है। अमेरिका में राजनीतिक लॉबिंग एक व्यवसाय है और इसके जरिए सरकारी नीतियों पर प्रभाव डालने का काम किया जाता है। चूंकि वहां इसे कानूनी मान्यता है, इसलिए वहां इस पर होने वाला खर्च भी जायज माना जाता है, जबकि भारत इस तरह के खर्च को 'घूस' या 'रिश्वत' कहा जा सकता है।

अमेरिका में जिन्हें लॉबिस्ट कहा जाता है, वे आमतौर पर या तो रिटायर राजनेता होते हैं या फिर हारे हुए राजनेता। एक जानकारी के मुताबिक वॉशिंगटन में करीब 20000 से 40000 लॉबिस्ट सक्रिय हैं। वहां कई कानूनों पर सीधे तौर पर लॉबिंग का ही प्रभाव रहा है।

लॉबिस्ट अपने पक्ष में काम करवाने अथवा पैरवी करवाने के लिए राजनीतिक मुहिमों को धन देकर सरकार पर दबाव डलवाने का काम भी करते हैं। लॉबिंग के जरिए ही कई निजी कंपनियां अपने पक्ष में लेख लिखवाती हैं या अखबारों के जरिए अपने पक्ष में माहौल तैयार करवाती हैं।

लॉबिस्ट अपने क्लाइंट के पक्ष में माहौल तैयार करने लिए सेमिनार और वर्कशॉप का आयोजन करते हैं। इसके पक्ष या विपक्ष में विरोध प्रदर्शन भी किए जाते हैं। अमेरिकी चुनाव में बडे़ पैमाने पर लॉबिंग की जाती है। हालांकि अमेरिकी चुनाव के लिए कोई विदेशी व्यक्ति चंदा नहीं दे सकता।

अमेरिका में कं‍पनियों को लॉबिंग की पूरी जानकारी सीनेट को देनी होती है, लेकिन भारत में लॉबिंग के लिए कोई कानून नहीं है। भारत में यदि इस प्रकार की कोई गतिविधि होती है कि उसे 'घूस' अथवा रिश्वत ही कहा जाएगा। भारत में इस तरह के काम के लिए नीरा राडिया का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, जिनका 2जी स्पेक्ट्रम मामले में खूब उछला था।

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