संसद पर हमले की पूरी कहानी...
, शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013 (08:55 IST)
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दिसंबर 2001 को जैश-ए-मोहम्मद के पांच आतंकवादियों ने संसद पर हमला किया था। उस दिन एक सफेद एंबेसडर कार में आए इन आतंकवादियों ने 45 मिनट में लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर को गोलियों से छलनी करके पूरे हिंदुस्तान को झकझोर दिया था यह पाकिस्तान की भारत के लोकतंत्र के मंदिर को नेस्तनाबूद करने की साजिद थी, लेकिन हमारे सुरक्षाकर्मियों ने अपनी जान की परवाह न करते हुए इन आतंकियों के मंसूबों पर पानी फेर दिया। जानिए संपूर्ण घटनाक्रम जानिए कैसे हुआ था हमला- तारीख 13 दिसंबर, सन 2001, स्थान- भारत का संसद भवन। लोकतंत्र का मंदिर जहां जनता द्वारा चुने सांसद भारत की नीति-नियमों का निर्माण करते हैं। आम दिनों में जब संसद भवन के परिसर कोई सफेद रंग की एंबेसेडर आती है तो कोई ध्यान नहीं देता, लेकिन उस दिन उस सफेद रंग की एंबेसेडर ने कोहराम मचा दिया। संसद भवन के परिसर में अचानक गृह मंत्रालय का कार पास लगी एक सफेद एंबेसेडर से आए 5 आतंकवादियों ने 45 मिनट तक लोकतंत्र के इस मंदिर पर गोलियों-बमों से थर्रा कर रख दिया था। आतंक के नापाक कदम उस दिन लोकतंत्र के मंदिर की दहलीज तक पहुंच गए थे। अचानक हुए हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। जांबाजी से किया मुकाबला : संसद परिसर के अंदर मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने अचानक हुए हमले का बड़ी ही वीरता से सामना किया। लोकतंत्र के इस मंदिर में कोई आंच न आए, इसलिए उन्होंने अपनी जान की बाजी लगा दी। सुरक्षाकर्मियों ने बड़ी ही वीरता से सभी आतंकियों को मार गिराया। आतंकियों का सामना करते हुए दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड शहीद हुए। 16 जवान इस दौरान मुठभेड़ में घायल हुए।
हमले के मास्टर माइंड को फांसी: संसद पर हमले की घिनौनी साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफजल गुरु को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया। संसद पर हमले की साजिश रचने के आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त 2005 को अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी। कोर्ट ने आदेश दिया था कि 20 अक्टूबर 2006 को अफजल को फांसी के तख्ते पर लटका दिया जाए। तीन अक्टूबर 2006 को अफजल की पत्नी तब्बसुम ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल कर दी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अफजल की दया याचिका खारिज कर दी और सरकार ने उसे फांसी देकर हमले में शहीद हुए बहादुरों को सही मायने में श्रद्धांजलि दी।मामला विचाराधीन : मुंबई हमले के आरोपी अजमल कसाब को फांसी पर लटकाए जाने के बाद अफजल गुरु को फांसी देने की मांग उठने लगी। राष्ट्रपति ने इस दया याचिका पर गृह मंत्रालय से राय मांगी। मंत्रालय ने इसे दिल्ली सरकार को भेज दिया जहां दिल्ली सरकार ने इसे खारिज करके गृह मंत्रालय को वापस भेजा। गृह मंत्रालय ने भी दया याचिका पर फैसला लेने में वक्त लगाया लेकिन मंत्रालय ने अपनी फाइल राष्ट्रपति के पास भेज दी है। फांसी पर अंतिम फैसला देश के राष्ट्रपति को ही लेना है।