Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

सिर्फ पति ही दे सकता है तलाक

हमें फॉलो करें सिर्फ पति ही दे सकता है तलाक
नई दिल्ली , बुधवार, 8 दिसंबर 2010 (14:22 IST)
FILE
दारूल उलूम देवबंद ने अपने नए फतवे में कहा है कि इस्लाम के मुताबिक केवल पति को ही तलाक देने का अधिकार है। पत्नी की ओर से दिया तलाक मान्य नहीं है।

इस्लाम विशेषज्ञों का मानना है कि यह फतवा सही है और इस्लाम के मुताबिक महिलाओं को ‘तलाक का अधिकार’ नहीं है, वैसे उन्हें पति से ‘अलग होने का अधिकार’ है।

देवबंद की वेबसाइट पर सामाजिक मामलों के तलाक संबंधी फतवों के सवाल क्रमांक 27580 में पूछा गया कि मेरी पत्नी ने मुझसे मायके जाने के बारे में पूछा तो मैंने उसे मना कर दिया। इस पर मेरी पत्नी बहुत नाराज हो गईं और गुस्से में मेरे पास आकर मुझसे तीन बार ‘तलाक’ कहा, लेकिन हम अब भी साथ रह रहे हैं। हमारी शादी जायज है या नहीं।

इस पर देवबंद ने जवाब दिया है कि इस्लाम के मुताबिक, केवल पति ही तलाक देने का हकदार है, पत्नी नहीं, इसलिए अगर आपकी पत्नी ने तीन बार ‘तलाक’ कहा है, तो भी आपका तलाक नहीं हुआ है। आपका निकाह अब भी कायम है।

गौरतलब है कि देवबंद ने पिछले दिनों अपने एक फतवे में कहा था कि पति अगर फोन पर भी अपनी पत्नी से तीन बार ‘तलाक’ कह दे और भले ही किसी वजह से वह पत्नी को सुनाई न दे, तो भी उनकी शादी टूट जाती है।

जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में इस्लामिक मामलों के जानकारी प्रो. अख्तारुल वासे बताते हैं कि महिलाओं को इस्लाम के मुताबिक ‘खुला’ दिया गया है, जिसके तहत उन्हें ‘अलग होने का अधिकार’ है, पर उन्हें ‘तलाक देने का अधिकार’ नहीं है।

प्रो. वासे बताते हैं कि यह फतवा इस्लाम के हिसाब से सही है। इस्लाम में तलाक का अधिकार केवल मर्द को है, जबकि महिला को ‘खुला’ दिया गया है, जो ‘अलग होने का अधिकार’ है।

उन्होंने बताया कि इसके तहत कोई महिला अगर शौहर से अलग होना चाहती है तो वह ‘खुला’ के तहत काजी को यह बता सकती है कि वह अपने शौहर के साथ नहीं रहना चाहती।

लेखिका तस्नीम राशिद का मानना है कि इस्लाम में लिखी बातों का विभिन्न मौलवियों द्वारा अपनी-अपनी तरह आकलन किया जाता है।

तस्नीम ने कहा कि इस्लाम धर्म को मानने वाले अलग-अलग पंथ होते हैं और ऐसे में जरूरी नहीं है कि एक मौलवी की बातों को सभी मानें। अलग-अलग मौलवी इस्लाम में कही बातों की अलग-अलग व्याख्या करते हैं, इसलिए इन बातों की हर व्यक्ति के लिए अलग परिभाषा है।

क्या दारूल उलूम देवबंद का यह फतवा महिला विरोधी है, इस सवाल के जवाब में मुस्लिम महिलाओं के कल्याण के लिए काम करने वाली समाजसेविका नुसरत अख्तर ने कहा कि मुस्लिम समाज इस बात को समझ चुका है कि फतवे सिर्फ परामर्श होते हैं और अलग-अलग परिस्थितियों के हिसाब से दिए जाते हैं।

नुसरत ने कहा कि समाज बदलने के साथ अब मुस्लिम समाज की भी कई महिलाएँ अपने पति से अलग होने के लिए कानून का सहारा ले रही हैं। (भाषा)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi