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बंदूकें शांत, सीमा का बंधन टूट गया...

-सुरेश एस डुग्गर

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हमें फॉलो करें चमलियाल सीमा चौकी
, शुक्रवार, 28 जून 2013 (09:00 IST)
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चमलियाल सीमा चौकी (जम्मू फ्रंटियर)। सच में यह अद्‍भुत नजारा था जब सीमा पर बंदूकें शांत होकर झुक गई थीं और दोनों देशों की सेनाएं ‘शक्कर’ व ‘शर्बत’ बांटने के पूर्व की औपचारिकताएं पूरी करने में जुट गई थीं और जीरो लाइन पर जैसे ही बीएसएफ के डीआईजी वीरेंद्रसिंह ने पाकिस्तान के चिनाब रेंजर के कमांडर ब्रिगेडियर वसीम को गले लगाया था यूं महसूस हुआ कि समय रुक गया।

समय रुकता हुआ नजर इसलिए आ रहा था ताकि इस ऐतिहासिक क्षण को कैमरों में कैद किया जा सके। इस नजारे के दर्शन गुरुवार जम्मू सीमा की इस सीमा चौकी पर हुए थे। नजारे को देख एक बुजुर्ग के मुंह से निकला था : ‘लगता है हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की बातचीत कामयाब होगी। यही संकेत हैं।’

जम्मू से करीब 45 किमी की दूरी पर रामगढ़ सेक्टर में एक बार फिर इस नजारे को देखने की खातिर हजारों की भीड़ जुटी थी। मेले की शक्ल ले चुके बाबा चमलियाल के मेले की तैयारी में लोग दो दिनों से जुटे हुए थे। विभिन्न प्रकार के स्टाल और झूले लगे हुए थे उस भारत-पाक सीमा पर जहां पाक सैनिक कुछ दिन पहले तनातनी का माहौल पैदा करने में लगे हुए थे। 65 सालों से मेला लगता है।

इतना ही नहीं, रामगढ़ सेक्टर के चमलियाल उप-सेक्टर में चमलियाल सीमा चौकी पर स्थित बाबा दिलीप सिंह मन्हास की समाधि के दशनार्थ पाकिस्तानी जनता भारतीय सीमा के भीतर भी आती रही है, लेकिन ये सब 1971 के भारत-पाक युद्ध तक ही चला था क्योंकि उसके बाद संबंध ऐसे खट्टे हुए कि आज तक खटास दूर नहीं हो सकी।

यह दरगाह चर्म रोगों से मुक्ति के लिए जानी जाती है जहां की मिट्टी तथा कुएं के पानी के लेप से चर्म रोगों से छुटकारा पाया जा सकता है। असल में यहां की मिट्टी तथा पानी में रासायनिक तत्व हैं और यही तत्व चर्म रोगों से मुक्ति दिलवाते हैं।

ऐसा भी नहीं है कि चर्म रोगों से मुक्ति पाने के लिए सिर्फ हिन्दुस्तानी जनता ही इस दरगाह पर मन्नत मांगती है बल्कि इस दरगाह की मान्यता पाकिस्तानियों में अधिक है। यह इससे भी स्पष्ट होता है कि सीमा के इस ओर जहां मेला मात्र एक दिन था और उसमें एक लाख के करीब लोग शामिल हुए थे, वही सीमा पार सियालकोट सेक्टर में सौदांवाली सीमा चौकी क्षेत्र में सात दिनों से यह मेला चल रहा था जिसमें हजारों के हिसाब से नहीं बल्कि लाखों की गिनती से श्रद्धालु आए थे।

इसी श्रद्धा का परिणाम था कि जब सुश्री बेनजीर भुट्टो पाकिस्तान की प्रधानमंत्री बनीं तो उन्होंने दरगाह क्षेत्र को पाकिस्तानियों को देने का भारत सरकार से आग्रह कर डाला और बदले में छम्ब का महत्वपूर्ण क्षेत्र देने की बात कही थी। 1971 के बाद पाकिस्तानियों का इस ओर आना बंद तो हो गया लेकिन ‘परंपराएं' जीवित रहीं।

सीमा पार से इस दरगाह पर चढ़ाने के लिए आने वाली ‘पवित्र चादरों’ को आज भी पाक सैनिक लाए थे। साथ में थे श्रद्धा के फूल, पाकिस्तानी रुपए तथा प्रसाद। इन्हें भारतीय सैनिकों ने बकायदा इज्जत के साथ लेकर दरगाह पर चढ़ाया था और बदले में दिया था प्यार और श्रद्धा से लिपटा हुआ प्रसाद।

इस प्रक्रिया के बाद इससे भी अद्‍भु नजारा वह था जब पाकिस्तानी ट्रैक्टर भारतीय ट्रॉलियों तथा टैंकरों को खींचकर अपने क्षेत्र में ले जा रहे थे हैं जिनमें भरा था ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’। इस मिट्टी तथा पानी, जिसे शक्कर तथा शर्बत का नाम दिया गया है, का पाकिस्तानी जनता बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थी।

पाकिस्तान के चिनाब रेंजर के कमांडर ने सेक्टर कमांडर सीमा सुरक्षा बल के डीआईजी से गले मिलने के बाद इन रस्मों को पूरा किया। उसके तुरंत बाद ‘शक्कर’ और ‘शर्बत’ का आदान- प्रदान आरंभ हो गया। हालांकि उससे पहले भारतीय जवानों ने सीमा पार से भिजवाई गई ‘पवित्र चादर’ को बावा की दरगाह पर चढ़ाया था।

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