नई दिल्ली (वेबदुनिया/एजेंसी) , बुधवार, 9 जुलाई 2008 (00:20 IST)
भारत-अमेरिकी करार पर लंबे समय से जारी तू-तू-मैं-मैं और राजनीतिक जोड़तोड़ के बीच अन्तत: आज संप्रग और वाम का गठजोड़ टूट ही गया। बुधवार को वामपंथी दलों द्वारा राष्ट्रपति को समर्थन वापसी का पत्र सौंपे जाने के बाद इस पर आधिकारिक रूप से मोहर भी लग जाएगी।
इस पूरे मामले में सबसे रोचक तथ्य यह है कि कल तक साथ चलने वाले राजनीतिक दल वाम और कांग्रेस अब एक-दूसरे को देखकर आँखें तरेर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर एक-दूसरे को फूटी आँख भी न सुहाने वाले दल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी गलबहियाँ डाले साथ-साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। शायद यही भारतीय राजनीति का असली चेहरा भी है।
परमाणु मुद्दे पर सरकार से समर्थन वापस लेने के संबंध में जारी उहापोह को समाप्त करते हुए वाम दलों ने केंद्र में संप्रग सरकार से भारत-अमेरिका असैनिक परमाणु करार पर समर्थन वापस लेने का फैसला किया, जबकि कांग्रेस ने कहा है कि सरकार को इससे कोई खतरा नहीं है।
करार को अमलीजामा पहनाने की दिशा में सरकार के जल्द ही आईएईए से सम्पर्क करने संबंधी प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की घोषणा के एक दिन बाद अभी तक 'हापोह का सामना कर रहे वाम दलों ने कहा कि समर्थन वापस लेने का समय आ गया है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद इस मामले पर आगे बातचीत निरर्थक हो गई है।
इस बीच चारों वाम दलों माकपा, भाकपा, फॉरवर्ड ब्लॉक और आरएसपी ने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से समय माँगा है ताकि वह सरकार से समर्थन वापसी का पत्र उन्हें सौंप सकें और यह माँग करें कि सरकार सदन के पटल पर अपना बहुमत सिद्ध करे। संभवत: बुधवार को 12 बजे वामदल समर्थन वापसी का पत्र राष्ट्रपति को सौंपेंगे।
माकपा महासचिव करात ने चारों वाम दलों की एक घंटे तक चली बैठक के बाद इस बारे में बताया। चारों वाम दलों की एक घंटे तक चली बैठक में यह फैसला किया गया कि यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेकर साढ़े चार साल पुराने रिश्ते का अंत कर दिया जाए।
इस बीच लोकसभा में बहुमत के लिए जरूरी 272 सदस्यों के आँकड़े को हासिल करने के बारे में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) आश्वस्त है। उन्हें उम्मीद है कि समाजवादी पार्टी के 39 सदस्यों तथा अजितसिंह एवं एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाले दलों के सहयोग से वह वाम दलों के 59 सदस्यों के अलगाव की काफी हद तक भरपाई कर पाएगी।
इस मामले पर यूपीए-वाम समिति की एक और बैठक के विदेशमंत्री प्रणब मुखर्जी के सुझाव को खारिज करते हुए वाम दलों के नेताओं ने कहा कि 10 जुलाई की प्रस्तावित बैठक प्रधानमंत्री के इस ऐलान के बाद बेमानी हो गई है कि सरकार जल्द आईएईए के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के समक्ष जाएगी।
माकपा के महासचिव प्रकाश कारत ने कहा कि जैसा कि आप जानते हैं वामपंथी दलों ने फैसला किया था कि अगर सरकार आईएईए के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के समक्ष जाती है तो वह सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेंगे। प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद वह समय आ गया है।