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हिन्दी-यूएसए : एक समर्पित संस्था

विदेशों में भाषा के प्रति स्नेह जगाती संस्था

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हमें फॉलो करें हिन्दी-यूएसए : एक समर्पित संस्था
कृष्ण कुमार भारती
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संस्कृति की धमनियों में प्रवाहित रक्त को गतिशील बनाए रखने का कार्य भाषा करती है। भाषा की मृत्यु का अभिप्राय है, सभ्यता और संस्कृति की मृत्यु और किसी राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति की मृत्यु उस राष्ट्र की मृत्यु होती है। अतः हमें न केवल अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए अपितु उसके संरक्षण-संवर्द्धन के लिए भी संकल्पबद्ध होना चाहिए। इसी उद्देश्य को पूरा करने में जुटी संस्था का नाम है हिन्दी-यूएसए।

जो अमेरिका व कनाड़ा में बसे भारतीयों को अपने देश व संस्कृति से जोड़े रखने व उनके बच्चों को भारतीय संस्कृति से परिचित कराने हेतु सतत प्रयत्नशील है।

यह संस्था पिछले आठ वर्षों से अमेरिका में लगभग 28 हिन्दी विद्यालयों का संचालन कर रही है। जिनमें संस्था के 125 कार्यकर्त्ता लगभग 3000 विद्यार्थियों को हिन्दी पढ़ाते हैं। आरंभ में हिन्दी की कक्षाएँ कार्यकर्त्ताओं के घर पर या मंदिर में चलती थीं। धीरे-धीरे हिंदी पढ़ाने के कार्य का विस्तार हुआ व कक्षाएँ नगर के विद्यालयों में चलने लगीं।

हिंदी-यूएसए की प्रथम पाठशाला 'चैरीहिल पाठशाला' थी, जो सन्‌ 2001 में शुरु की गई थी। सबसे बड़ी पाठशाला 'एडिसन हिन्दी पाठशाला' है जो वर्ष 2006 में स्थापित हुई। इस पाठशाला में विभिन्न आयु वर्ग (4-40 वर्ष) के लगभग 360 विद्यार्थी हिन्दी पढ़ रहे हैं।

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इस संस्था की स्थापना सन्‌ 2001 में न्यूजर्सी (अमेरिका) में हुई। संस्था के संस्थापक श्री देवेन्द्र सिंह व उनकी पत्नी रचिता सिंह का सपना अमेरिका में बसे भारतीयों के मध्य संवाद की भाषा के रूप में हिन्दी को प्रतिष्ठित करना है। हिन्दी-यूएसए के मुख्य उद्देश्य अमेरिका के स्कूलों में हिन्दी को एक ऐच्छिक भाषा के रूप में मान्यता दिलवाना, अमेरिका के स्कूलों में हिन्दी अध्यापन के लिए अध्यापकों का प्रशिक्षण व अमेरिका में जन्में भारतीय मूल के बच्चों को हिन्दी का बुनियादी ज्ञान कराना है।

उन्हें अपने पैतृक देश व संस्कृति से जोड़े रखना हैं। अमेरिका में स्थित भारतीय बाजारों में ुकानों के साईन बोर्ड हिन्दी में लिखवा कर भारतीयों में भाषा के प्रति गर्व की भावना बढ़ाने का कार्य भी संस्था के उद्देश्यों में शामिल है।

यह संस्था प्रतिवर्ष हिन्दी महोत्सव का आयोजन करती है जिसमें लगभग 500 बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं। संस्था द्वारा हिन्दी भाषा को व्यवहार में लाए जाने के लिए लिखित व मौखिक वर्ग की हिन्दी प्रतियोगिताएँ करवाई जाती हैं। दीपावली समारोह व कविता पाठ प्रतियोगिताएँ इन पाठशालाओं के वार्षिक कार्यक्रमों में शामिल हैं। भारतीय साहित्य के प्रोत्साहन में भी संस्था अग्रणी है। समय -समय पर हिन्दी साहित्य की श्रेष्ठ पुस्तकों की प्रदर्शनियों का आयोजन संस्था द्वारा किया जाता है।

इस संस्था द्वारा प्रतिवर्ष हिन्दी दिवस को कवि सम्मेलन के रूप में मनाया जाता है। कवि-सम्मेलन में भारत से कवियों को आमंत्रित कर किया जाता है। अमेरिका में बसे भारतीय मूल के लोगों में यह कार्यक्रम काफी लोकप्रिय है। भारत से आमंत्रित कवियों में महेन्द्र अजनबी, राजेश चेतन, सुनील जोगी तथा गजेन्द्र सोलंकी आदि मुख्य हैं।

वर्च्च 2008 से संस्था द्वारा हिन्दी-यूएसए की पाठशालाओं में पढ़ रहे बच्चों को 'भारत को जानों' नामक कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत-भ्रमण को प्रारंभ किया गया है। इस यात्रा का मुख्य प्रयोजन बच्चों को भारत की सभ्यता व संस्कृति से अवगत करवाना है। वर्ष 2008 में भारत भ्रमण पर आए 12 बच्चों ने इस कार्यक्रम में न केवल खूब मनोरंजन किया अपितु सांस्कृतिक दृष्टि से भारतीय ऐतिहासिक-स्थानों के बारे में जानकारी भी प्राप्त की।

इस कार्यक्रम में संस्था को भारत विकास परिषद का विशेष सहयोग प्राप्त हुआ। भारत भ्रमण का यह कार्यक्रम अमेरिका में बसे भारतीय मूल के बच्चों में खासा लोकप्रिय हुआ। भारत यात्रा पर आए इन बच्चों द्वारा भोजन ग्रहण करने से पहले भोजन मंत्र का उच्चारण सबको चौंका देने वाला था और इस संस्था की सफलता के प्रति आशान्वित करने वाला भी।

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भारतीय संस्कारों का रोपण, भारतीयता की भावना का संचार तथा अपने देश व संस्कृति के प्रति जुड़ाव, प्रवासी भारतीय बच्चों में पुष्पित-पल्लवित करने का कार्य निःसंदेह संस्था की एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। संस्था को राजू श्रीवास्तव, सुश्री किरण बेदी, बाबा रामदेव,नीतीश भारद्वाज, अशोक चक्रधर आदि का मार्गदर्शन इस संस्था को मिलता रहता है।

संस्था द्वारा अमेरिका में चल रही हिन्दी प्रचार-प्रसार की गतिविधियों व अमेरिका में हिन्दी साहित्य लेखन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मार्च 2008 में 'कर्मभूमि' नामक ई-पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया गया। इस प्रकार संस्था प्रवासी भारतीयों में भाषा व संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखने व उन्हें अपनी माटी से जोड़े रखने का महत्वपूर्ण कार्य कर रही है।

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