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चंदन पानी
हम चंदन पानी न हो पाए
- दिव्या माथुर
हम चंदन पानी न हो पाए कोल्हू के बैल से घूमे गए गले में रस्सी लटकाए दिन-रात पसीना बहाकर भी एक बूंद तेल की न पाए तैरा किए सतहों पर ही चंदन पानी न हो पाए। पहल करे कब कैसे कौनतोड़ न पाए कभी मौन साथ न बैठे न सपने सजाए नियति के भरोसे पछताए दिन और रात रहे उम्र भर चंदन पानी न हो पाए। चुरा ली नजर झट कभी जो मिली उंगलियां हमारी न उलझीं कभी गलबहियों की तो खूब कही मुंह बाएं गए रस्में निभाए दिन की थाह बिना पाए चंदन पानी न हो पाए। सरकारी चक्की में पिसे अफसर बनने की चाह लिए बच्चों का अपने पेट काट घूस में लाखों रुपए दिए आंखों से अपनी अलग गिरे चंदन पानी न हो पाए। बढ़ा पिता का रक्तचाप मां के गठिए का दर्द बढ़ा मनमानी बच्चों की बढ़ी फासला हमारे बीच बढ़ा बसे रहे दूरियां तय करते चंदन पानी न हो पाए। समय कतर कैंची से हम अब जीवन फिर से शुरू करें थाम लो पतवार तुम्हीं अपने रंग में रंग डालो मुझे पानी और तेल नहीं रहें हम चंदन पानी हो जाए।