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पिता का पत्र नन्हे के नाम...!

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हमें फॉलो करें पिता पत्र नन्हे
तुम रात को मेरे पास भागकर आए और मेरे गले में बाँहे डालकर मुझे चूमा और 'गुड नाइट' करके चले गए। तुम्हारी नन्ही बाँहों की जक ड़न बता रही थी कि तुम्हारे दिल में ईश्वर ने प्रेम का ऐसा फूल खिलाया था, जो इतनी उपेक्षा के बाद भी नहीं मुरझाया।

(डब्ल्यू लिविगस्टन लारनेड)

सुनो बेटे। मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ। तुम गहरी नींद में सो रहे हो। तुम्हारा नन्हा-सा हाथ तुम्हारे नाजुक गाल के नीचे दबा है। मैं तुम्हारे कमरे में चुपके से दाखिल हुआ हूँ, अकेला। अभी कुछ मिनट पहले जब मैं लाइब्रेरी में अखबार पढ़ रहा था, तो मुझे बहुत पश्चाताप हुआ। इसीलिए तो आधी रात को मैं तुम्हारे पास खड़ा हूँ, किसी अपराधी की तरह।

मैं आज तुम पर बहुत नाराज हुआ। जब तुम स्कूल जाने के लिए तैयार हो रहे थे तब मैंने तुम्हें खूब डाँटा... तुम्हारे टॉवेल के बजाय पर्दे से हाथ पोंछने के कारण। तुम्हारे जूते गंदे थे, इस बात पर भी मैंने तुम्हें कोसा। तुमने फर्श पर इधर-उधर चीजें फेंक रखी थीं, इस पर मैंने तुम्हें भला-बुरा कहा।

नाश्ता करते वक्त भी मैं तुम्हारी एक के बाद एक गलतियाँ निकालता रहा। तुमने डाइनिंग टेबल पर खाना बिखेर दिया था। खाते समय तुम्हारे मुँह से चपर-चपर की आवाज आ रही थी। मेज पर तुमने कोहनियाँ भी टिका रखी थीं। तुमने ब्रेड पर बहुत सारा मक्खन भी चुपड़ लिया था। यही नहीं, जब मैं ऑफिस जा रहा था और तुम खेलने जा रहे थे और तुमने मुड़कर हाथ हिलाकर 'बाय-बाय डैडी' कहा था तब भी मैंने भृकुटि तानकर टोका था- 'अपनी कॉलर ठीक करो।'

शाम को भी मैंने यही सब किया। ऑफिस से लौटकर मैंने देखा कि तुम दोस्तों के साथ मिट्टी में खेल रहे थे। तुम्हारे कपड़े गंदे थे। तुम्हारे मोजों में छेद हो गए थे। मैं तुम्हें पकड़कर ले गया और तुम्हारे दोस्तों के सामने तुम्हें अपमानित किया, कहा- 'मोजे महँगे हैं, जब तुम्हें खरीदना पड़ेंगे तब तुम्हें इनकी कीमत समझ में आएगी।' जरा सोचो तो सही, एक पिता अपने बेटे का इससे ज्यादा दिल किस तरह दुःखा सकता है? इतना सब होने के बावजूद तुम रात को मेरे पास भागकर आए और मेरे गले में बाँहे डालकर मुझे चूमा और 'गुड नाइट' करके चले गए। तुम्हारी नन्ही बाँहों की जक ड़न बता रही थी कि तुम्हारे दिल में ईश्वर ने प्रेम का ऐसा फूल खिलाया था, जो इतनी उपेक्षा के बाद भी नहीं मुरझाया।

तो बेटे, इस घटना के कुछ ही देर बाद मेरे हाथों से अखबार छूट गया और मुझे बहुत ग्लानि हुई। मुझे लगा कि अपने बच्चे के बचपन का मैं यह पुरस्कार दे रहा हूँ क्या? ऐसा नहीं है, बेटे कि मैं तुम्हें प्यार नहीं करता पर मैं एक बच्चे से जरूरत से ज्यादा उम्मीदें लगा बैठाथा। मैं तुम्हारे व्यवहार को अपनी उम्र की तराजू पर तौल रहा था।

मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हें बच्चा नहीं, बड़ा मान लिया था। परंतु आज जब मैं तुम्हें गुड़ी-मुड़ी और थका-थका पलंग पर सोया देख रहा हूँ, बेटे, तो मुझे एहसास होता है कि तुम अभी बच्चे ही तो हो। कल तक तुम अपनी माँ की बाँहों में थे, उसके काँधे पर सिर रखे। मैंने तुमसे कितनी ज्यादा उम्मीदें की थीं कितनी ज्यादा।

यह एक कमजोर पश्चाताप है। आगे से जब भी मैं तुम्हें डाँटने के लिए मुँह खोलूँगा तो इसके पहले अपनी जीभ को अपने दाँतों से दबा लूँगा। मैं बार-बार किसी मंत्र की तरह यह कहना सीखूँगा 'वह तो अभी बच्चा है... छोटा सा बच्चा।'

- प्रस्तुति : प्रो. केडी सोमानी

संदर्भ : लोक व्यवहार-डेल कारनेगी

हिन्दी अनुवाद : डॉ. सुधीर दीक्षित (प्रकाशक : मंजुल पब्लिशिंग हाउस)

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