Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

पुराणों में रक्षाबंधन का महत्व

Advertiesment
हमें फॉलो करें पुराणों में रक्षाबंधन का महत्व
SubratoND
रक्षाबंधन और श्रावण पूर्णिमा ये दो अलग-अलग पर्व हैं जो उपासना और संकल्प का अद्भुत समन्वय है। और एक ही दिन मनाए जाते हैं। पुरातन व महाभारत युग के धर्म ग्रंथों में इन पर्वों का उल्लेख पाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि देवासुर संग्राम के युग में देवताओं की विजय से रक्षाबंधन का त्योहार शुरू हुआ।

इसी संबंध में एक और किंवदंती प्रसिद्ध है कि देवताओं और असुरों के युद्ध में देवताओं की विजय को लेकर कुछ संदेह होने लगा। तब देवराज इंद्र ने इस युद्ध में प्रमुखता से भाग लिया था। देवराज इंद्र की पत्नी इंद्राणी श्रावण पूर्णिमा के दिन गुरु बृहस्पति के पास गई थी तब उन्होंने विजय के लिए रक्षाबंधन बाँधने का सुझाव दिया था। जब देवराज इंद्र राक्षसों से युद्ध करने चले तब उनकी पत्नी इंद्राणी ने इंद्र के हाथ में रक्षाबंधन बाँधा था, जिससे इंद्र विजयी हुए थे।

अनेक पुराणों में श्रावणी पूर्णिमा को पुरोहितों द्वारा किया जाने वाला आशीर्वाद कर्म भी माना जाता है। ये ब्राह्मणों द्वारा यजमान के दाहिने हाथ में बाँधा जाता है।

मध्ययुगीन भारत में हमलावरों की वजह से महिलाओं की रक्षा हेतु भी रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता था। यह एक धर्म-बंधन था। तभी से महिलाएँ सगे भाइयों या मुँहबोले भाइयों को रक्षासूत्र बाँधने लगीं। महाराष्ट्र राज्य के अनेक भागों में श्रावणी-पूर्णिमा के दिन जलदेवता वरुण की आराधना की जाती है। इस दिन बहन तिलक-अक्षत लगाकर भाई की कलाई पर राखी बाँधती है और फल-मिठाई खिलाती है। भाई भी श्रद्धा से अपने सामर्थ्य के अनुसार बहन को वस्त्र, आभूषण, द्रव्य और अन्य वस्तुएँ भेंट करता है।

जहाँ तक श्रावणी के दिन रक्षाबंधन पर्व का सवाल है, यह श्रावणी को होने वाला एक पर्व है। रक्षाबंधन को सलोनो नाम से भी पुकारा जाता है। यह भी कहा जाता है कि श्रावणी के दिन पवित्र सरोवर या नदी में स्नान करने के पश्चात सूर्यदेव को अर्घ्य देना इस विधान का आवश्यक अंग है। गाँवों के आसपास नदी ना होने की स्थिति में इस दिन कुएँ-बावड़ी पर भी इसकी आराधना की जाती है। इस दिन पंडित लोग पुराने जनेऊ का त्याग कर नया जनेऊ धारण करते थे।

इस संबंध में ऐसी भी मान्यता है कि 'श्रवण' नक्षत्र की वजह से आदिकाल में श्रावणी पूर्णिमा का नामकरण संस्कार हुआ। अश्विनी से रेवती तक ज्योतिष के 27 नक्षत्रों में 'श्रवण' नक्षत्र 22वाँ है, जिसका स्वामी चंद्रमा है। ऐसा कहा जाता है कि श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन श्रवण नक्षत्र हो तो उसे अत्यंत सुखद व फलदायी माना गया है। इसलिए श्रावण मास की अंतिम तिथि वाली श्रवण नक्षत्रयुक्त पूर्णिमा को श्रावणी कहते हैं। और इस दिन रक्षाबंधन का पर्व मनाया जाता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi