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महालक्ष्मी पर्व : घर-घर में हुई अगवानी

महाराष्ट्रीयन परिवारों में मनेगा तीन दिवसीय पर्व

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मां महालक्ष्मी का तीन दिवसीय पर्व महाराष्ट्रीयन परिवारों में 21 सितंबर से मनाया जा रहा है। माता लक्ष्मी अपने परिवार के साथ हमारे घर आएं, हमारे घर में सुख, संपन्नता, सदैव लक्ष्मी का वास हो ऐसी मनोकामना के साथ इस तीन दिवसीय महालक्ष्मी उत्सव का आयोजन किया जाता हैं। महाराष्ट्रीयन समाज में यह परंपरा कई पीढि़यों से चली आ रही है।

इस पर्व के तहत महाराष्ट्रीयन परिवार में 'महालक्ष्मी आली घरात सोन्याच्या पायानी, भर भराटी घेऊन आली, सर्वसमृद्घि घेऊन आली' ऐसी पंक्तियों के साथ महालक्ष्मी की अगवानी हर घर में की जाती है। महालक्ष्मी के दिनों में घर को बहुत ही अच्छे ढंग से सजाया-संवारा जाता है तथा विविध आयोजन किए जाते हैं।

भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी से महालक्ष्मी उत्सव का शुभारंभ होता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार महालक्ष्मी के दिनों में माता लक्ष्मी के जिस रूप की पूजा की जाती है वह जेठानी-देवरानी हैं और अपने दो बच्चों के साथ वे इन दिनों मायके आती हैं। इसलिए मायके में आने पर तीन दिनों तक उनका भव्य स्वागत किया जाता है।

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जिसमें पहले दिन महालक्ष्मी की स्थापना, दूसरे दिन उनका भोग और तीसरे दिन हल्दी-कुंमकुंम के साथ माता की विदाई की जाती है। साथ ही कई महाराष्ट्रीयन परिवारों में छह दिवसीय गणपति उत्सव की समाप्ति भी इसी के साथ हो जाती है।

दूसरी ओर गौरी को ही महालक्ष्मी या रिद्घी सिद्घी भी कहा जाता हैं। माना जाता है कि श्रीगणेश के वरद प्रसाद से ही ब्रह्मदेव को सृष्टि रचना का सामर्थ्य प्राप्त हुआ था और ब्रह्मदेव ने गणेशजी का पूजन करके अपनी रिद्घी सिद्घी नामक मानस पुत्रियां श्रीगणेश को अर्पित की थी, जो उनके दोनों ओर हाथ में चंवर लिए विराजमान हैं।

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