समस्त दोषों का नाश करने वाला ऋषि पंचमी का व्रत 20 सितंबर को महिलाओं व युवतियों द्वारा पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ रखा जाएगा। इस व्रत में देवी-देवताओं की जगह ऋषियों का पूजन करने का विधान है। महिलाओं द्वारा पूर्ण विधि-विधान के साथ पूरे दिन व्रत रखकर सप्त ऋषियों की पूजा की जाएगी। साथ ही कथा का श्रवण कर भोग प्रसादी बांटी जाएगी।
व्रत की पूजन विधि :- यह व्रत संपूर्ण पापों का नाश करने वाला है, जिसे भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं सुबह से स्नान करके पटिए पर चंदन व अक्षतों से सात ऋषियों को बनाती हैं। तत्पश्चात जल, रोली, चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि पंचोपचार विधि से सप्तऋषियों की एवं अरूंधति की पूजा की जाती है। ऋषियों की कथा सुन कर आरती की जाती है व भोग-प्रसादी चढ़ाई जाती है, साथ ही महिलाएं दो समय फलाहार कर व्रत को खोलती हैं।
ऋषि पंचमी व्रत की कथा :- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विदर्भ देश में एक उतंक नामक ब्राह्मण था, जिसकी कन्या विवाह के एक माह पश्चात विधवा हो गई। वह ससुराल को छोड़कर अपने माता-पिता के पास आकर रहने लगी।
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एक दिन वह एक शिला पर लेट गई तो उसके शरीर में कीड़े पड़ गए। उसकी माता ने कन्या की इस हालत को देखकर पति से पूछा तो उन्होंने बताया कि रजस्वला होने पर उसने घड़े व बर्तन आदि को छुआ है व व्रत का तिरस्कार किया है, जिसके चलते शरीर में कीड़े पड़ गए हैं।
पापनाशक है ऋषि पंचमी व्रत : एक और कथा के अनुसार गणेश चतुर्थी के अगले दिन ऋषि पंचमी पर महिलाएं पति की लंबी आयु और ऋतु कार्य में लगने वाले दोष के निवारण के लिए कुशा अथवा वस्त्र पर सप्तऋषि बना कर उनकी पूजा-अर्चना करती हैं।
व्रत धारण करने से पूर्व अपामार्ग की 108 दातून के बाद स्नान करने के साथ व्रत की शुरुआत की जाती है। इस दिन महिलाएं केवल पसाई धान के चावल का ही सेवन करती है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन महिलाएं हल से जुता अन्न नहीं खाती हैं।