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नेपाल नरेश करेंगे जगन्नाथ की पूजा

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भुवनेश्वर (भाषा) , बुधवार, 7 मई 2008 (20:32 IST)
नेपाल में भले ही 239 साल पुरानी राजशाही हटाई जा रही हो, लेकिन 12वीं शताब्दी में निर्मित पुरी के जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में नेपाल नरेश के हाथों विशेष पूजा कराने की परंपरा कायम रहेगी।

जगन्नाथ मंदिर के मुख्य प्रशासक सुरेशचंद्र महापात्र ने बताया कि हम चाहेंगे कि मंदिर की परंपरा न टूटे। इस बात से हमारा कोई सरोकार नहीं है कि नेपाल में राजशाही है या नहीं।

उन्होंने कहा कि मंदिर में नरेश ज्ञानेंद्र को वही दर्जा दिया जाएगा, जो उनके पूर्वजों को दिया गया था। उन्होंने कहा कि सदियों पुराने इस मंदिर में नेपाल के शाही परिवार का विशेष अधिकार है।

परंपरा के अनुसार नेपाल के शाही परिवार के सदस्य जब इस मंदिर में आते हैं तो उन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। नेपाल नरेश और महारानी को मंदिर में स्थापित भगवान बलभद्र, भगवान जगन्नाथ और देवी सुभद्रा की पूजा रत्न वेदी (बलि स्थल) पर करने की अनुमति दी जाती है। पूजा में उनकी मदद मंदिर के विशेष पुजारी जैसे पुरी के गजपति महाराज करते हैं।

मंदिर के रिकॉर्ड में कहा गया है कि सैकड़ों साल पहले नेपाल नरेश भगवान के सेवक के तौर पर उनकी पूजा करते थे।

नेपाल नरेश की यात्रा के दौरान केवल कुछ ही पुजारियों को मंदिर के अंदर आने की अनुमति होती है। जगन्नाथ संप्रदाय के एक शोधार्थी भास्कर मिश्र ने बताया परंपरा के अनुसार मंदिर खाली करा लिया जाता है ताकि नरेश और उनके परिजन शांतिपूर्वक दर्शन कर सकें।

मंदिर के शाही पुजारी लालमोहरिया महापात्र ने बताया हमें इससे कोई मतलब नहीं है कि नेपाल की सत्ता पर कौन हैं। जगन्नाथ मंदिर नेपाल नरेश को उनका विशेष दर्जा देता रहेगा।

उन्होंने बताया कि नरेश ज्ञानेंद्र और उनकी महारानी अंतिम बार 29 मार्च 2003 में मंदिर आए थे। महापात्र ने कहा कि पुरी के गजपति महाराज की तरह ही नेपाल नरेश के लिए भी कुछ दिशा-निर्देश हैं। वे पुरी के राजा की तरह दक्षिणी द्वार से ही प्रवेश कर सकते हैं।

मंदिर सूत्रों के मुताबिक नेपाल नरेश हर साल नव कलेवर उत्सव के दौरान और सालाना कार सेवा पर देवताओं को सजाने के लिए मुखौटे भेजते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में वहाँ से कोई मुखौटा नहीं भेजा गया है।

नव कलेवर का आयोजन 12 साल के अंतराल में होता है। इसमें तीनों भगवानों की नई प्रतिमाएँ स्थापित की जाती हैं।

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