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महिला काजी ने कराया निकाह

लखनऊ में बदली वक्त ने करवट

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लखनऊ अरविन्द शुक्ला , बुधवार, 13 अगस्त 2008 (23:43 IST)
शहर ने बदलते समाज की नई तस्वीर उस वक्त उभरते देखी, जब योजना आयोग की सदस्य और इस्लामी विद्वान डॉक्टर सईदा हमीद ने मंगलवार रात हजरतगंज में निकाह पढ़वाया। यह वाकया अपने आप में इसलिए तारीखी हो गया, क्योंकि यहाँ निकाह पढ़वाने वाली एक महिला थी। पाँच में से चार गवाह भी महिलाएँ ही बनीं।

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रात 9 बजे जैसे ही डॉक्टर सईदा ने मजलिस के सामने नाईस हसन और इमरान अली से निकाह की रस्म अदा कराते हुए कुरआन की आयतें पढ़ीं, सारा मंजर इतिहास में दर्ज हो गया।

चेक से अदा किया मेहर : निकाह की खास बात यह थी कि मेहर की रकम 51 हजार रुपए तय हुई, जिसे इमरान ने चेक के जरिए तुरंत अदा कर दिया। निकाह भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन द्वारा तैयार किए गए एक निकाहनामे के तहत पढ़ाया गया।

केंद्रीय योजना आयोग की सदस्य डॉक्टर सईदा शिया समुदाय से ताल्लुक रखने वाली महिला हैं, वहीं दूल्हा और दुल्हन सुन्नी संप्रदाय के हैं।

नाईश लखनऊ की रहने वाली हैं और आन्दोलन की संस्थापक सदस्य हैं और दूल्हा बने इमरान इस वक्त गुजरात में सामाजिक कार्यों से जुड़े हैं। इस मौके की गवाह बनने के लिए शहर और बाहर के समाजिक कार्यकर्ता भी जुटे थे।

रूढ़िवादिता के खिलाफ कदम : नाईश का कहना है कि उन्होंने यह निकाह रूढ़ीवादी परंपरा को तोड़ने के लिए किया है, वहीं इमरान अली ने कहा उन्हें इस तरह निकाह कर खुशी हो रही है। वे हमेशा से महिला अधिकारों के पक्षधर रहे हैं और निकाह इसे साबित करता है।

उन्होंने कहा हमने इस तरह एक प्रगतिशील कदम की बुनियाद रखने की कोशिश की है। गुजरात की जकिया जौहर ने कहा यह निकाहनामा पूरी तरह कुरआन पर आधारित है और इसे इस्लाम के विद्वानों से सलाह-मशविरा करने के बाद तैयार किया गया है।

जबानी तलाक की गुंजाइश नहीं : उन्होंने कहा कि इस निकाहनामे की रूह यह है कि औरत भी बराबरी की पार्टनर है। इसमें जोर इस बात पर है कि दोनों मर्द और औरत में किसी के साथ भी नाइंसाफी न हो। विवाद की सूरत में किसी को एकतरफा शादी तोड़ने का हक नहीं है। विवाद सुलझाने को मध्यस्थता जरूरी है और जबानी तीन तलाक की गुंजाइश नहीं है।

शिया और सुन्नी उलेमाओं में एक राय नहीं : अपनी तरह की इस अनोखी रस्म अदायगी को लेकर शिया और सुन्नी दोनों उलेमाओं में मतभेद हैं। शिया उलमा मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा निकाह औरत या मर्द कोई भी अदा करा सकता है। ऐसी कोई बंदिश नहीं है कि मर्द ही निकाह को अंजाम दे।

ईदगाह नायब इमाम मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महिली ने औरत के निकाह अदा कराने को गलत करार देते हुए कहा कि निकाह शरियत के मुताबिक मर्द द्वारा ही अदा किया जाना चाहिए। हाँ अगर मर्द मौजूद नहीं है तो औरत भी पढ़ा सकती है। निकाह जायज होगा, मगर मर्द का गवाह होना जरूरी है।

वैधता पर सवाल : फर्रुखाबाद इदगाह कमेटी के अध्यक्ष और इस्लाम के विद्वान रियाज अहमद ने ऐसे निकाह की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा है कि महिला काजी की क्या स्थिति मानी जाए?, क्या उन्हें सरकार से अनुमोदन प्राप्त है? और यदि नहीं हैं तो इस शादी की कानूनी वैधता क्या होगी?, इसके जवाब मिलने चाहिए तभी ऐसे निकाह के बारे में कुछ कहा जा सकता है।

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