sawan somwar

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

मुनव्वर राना ने क्यों दिया उर्दू अकादमी से इस्तीफा...

Advertiesment
हमें फॉलो करें मुनव्वर राना

अरविन्द शुक्ला

लखनऊ। ख्यातिप्राप्त शायर मुनव्वर राना ने पिछले दिनों उत्तरप्रदेश उर्दू अकादमी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। उनका कहना है कि देशभर की उर्दू अकादमी को बंद कर देना चाहिए क्योंकि यह लालबत्ती और अय्याशी के अड्डे हैं।

FILE

वे महज साढ़े तीन महीने पहले ही उप्र उर्दू अकादमी के अध्यक्ष बनाए गए थे। इस्तीफे का कारण उन्होंने अकादमी में घोर भ्रष्टाचार बताया है। इस्तीफे के पीछे कैबिनेट मंत्री आजम खां की दखलंदाजी और अकादमी मे अंदरुनी खींचतान भी उन्होंने स्वीकार की है।

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को भेजे अपने इस्तीफे में मुनव्वर राना ने लिखा है कि मुझे अत्यंत दुःख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि साढ़े तीन माह के कार्यकाल में मुझे एकबार भी ऐसा आभास नही हुआ कि मैं अकादमी का अध्यक्ष हूं।

मेरे आदेशों की अवहेलना की गई, मेरे अथक प्रयास एवं रुचि के पश्चात भी अकादमी की एक भी योजना का भलीभांति संचालन नही किया गया। कार्यकारिणी समिति के निर्णयों का क्रियान्वयन नहीं किया गया।

आचार संहिता का बहाना लेकर रूटीन कार्य भी नही किए गए जो अकादमी उद्देश्यों के विपरीत हैं। अकादमी के शेष दो पदाधिकारियों चेयरमैन व सचिव द्वारा सांठगांठ कर केवल स्वयं के हित को ध्यान में रखकर कार्य किया जा रहा है। इन लोगों द्वारा भ्रष्टाचार को खुलकर हवा दी जा रही है। मेरे सामने अकादमी का अहित हो रहा है।

मेरे द्वारा उर्दू भाषा की उन्नति एवं विकास के लिए पूर्व में ठोस कदम उठाए गए थे। इस संबध में कुछ महत्वपूर्ण घोषणांए भी की गईं थीं। कार्यकारिणी से प्रस्ताव भी पारित कराए गए थे। इसके अतिरिक्त मुलायम सिंह से भेंट कर पूर्ण औचित्य के साथ उर्दू अकादमी का बजट 4.70 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 10 करोड़ रुपए किए जाने हेतु प्रस्ताव प्रस्तुत किया था।

मैंने कभी स्वयं के लिए गाड़ी, बंगला, वेतन आदि की लिखित या मौखिक मांग नही की। मैं उर्दू के एक सिपाही एक खादिम की हैसियत से काम करना चाहता था, किंतु मेरे प्रयास मेरी भावनाओं, मेरी आशाओं का उक्त पदाधिकारियों द्वारा अनादर किया गया। मुझे कमतर व नीचा दिखाने का प्रयास किया गया। मुझे सहयोग प्रदान नहीं किया गया।

उक्त स्थिति में मुझे इस पद पर कार्य करने में अत्यधिक असुविधा, कठिनाई व घुटन महसूस हो रही है। इस पद की गरिमा को बनाए रखे जाने हेतु मेरा इस पद से त्यागपत्र देना अतिआवश्यक हो गया है। अतः मैं उत्तरप्रदेश उर्दू अकादमी के पद से अपना त्यागपत्र देता हूं। कृपया इसे स्वीकार करने का कष्ट करें।

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने इसी साल पांच फरवरी को उर्दू अकादमी का गठन किया था। इसमें मुनव्वर राना को अध्यक्ष व नवाज देवबंदी को चेयरमैन नियुक्त किया गया था। राना ने अकादमी के कामकाज को रफ्तार देने का प्रयास किया, हालांकि इसमे वे सफल न हो सके, क्योंकि राज्य के प्रभावशाली मंत्री आजम खां के अप्रत्यक्ष दखल से अध्यक्ष व चेयरमैन में खींचतान शुरू हुई।

बताया गया कि चेयरमैन ने अध्यक्ष के फैसलों में फेरबदल करना शुरू कर दिया, जिससे तल्खियां और बढ़ गईं। चेयरमैन को मंत्री आजम खां का वरदहस्त हासिल है। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को इस्तीफा भेजने के बाद बातचीत में मुनव्वर राना ने कहा कि अकादमी में चारों और भ्रष्टाचार है।

अगले पन्ने पर, करना चाहते थे शायरों की मदद, लेकिन


कुछ लोग शायरों, लेखकों की मदद और योजनाओं में भी पार्टी फंड के नाम पर वसूली कर रहे हैं। इस वजह से शायरों और लेखकों को मिलने वाला पुरस्कार पिछले चार सालों से नहीं बंटा है।

शायरों की विधवाओं को पेंशन जैसी संवेंदनशील योजना पर अड़ंगेबाजी की जा रही है। मुनव्वर राना ने बताया कि वे बीमार शायर कमाल जायसी को अर्थिक मदद देना चाहते थे जो कि मुंबई में अस्पताल मे भर्ती हैं और उनको डायलिसिस होनी थी किंतु वे मजबूर थे।

उन्होंने बताया कि अकादमी हर माह दस हजार रुपए से अधिक की धनराशि का खर्च कार्यकारिणी से पास कराने को कहती है अर्थात अध्यक्ष को दस हजार रुपए से अधिक धनराशि खर्च करने का अधिकार नही है, वहीं प्रमुख सचिव भाषा की टैक्सी पर इससे अधिक प्रतिमाह अकादम खर्च करती है। अकादमी में कर्मचारियों की संख्या पहले ही कम है।

अकादमी के गठन के समय 80 कर्मचारी कार्यरत थे, वर्तमान में 34 कर्मचारी कार्यरत हैं। इनमें संविदा पर काम कर रहे 14 कर्मचारियों में से ज्यादातर एक-दूसरे के रिश्तेदार हैं। ऊपर से दो कर्मचारी प्रमुख सचिव भाषा के घर पर तैनात हैं। इनके वेतन रोकने के उन्होने आदेश दे दिए थे।

राना की कोशिश थी कि असहाय हो गए उर्दू विद्वानों, पत्रकारों, शायरों को मिलने वाली 1200 प्रतिमाह की मदद को 2500 रुपए किया जाए, किंतु वे असहाय रहे। उनका प्रयास था कि दयनीय आर्थिक स्थिति वाले उर्दू विद्वानों, शायरों, लेखकों, हाकरों की मदद के लिए अकादमी के खर्च पर बीमा योजना चलाई जाए।

बीमार उर्दू विद्वानों, कलाकारों, शायरों की बेटियों के विवाह के लिए दी जाने वाली अनुदान राशि 10 हजार से बढ़ाकर 50 हजार रुपए की जाए। मुस्लिम बहुल शहरों, कस्बों में उर्दू की कोचिंग शुरू की जाए। उर्दू अकादमी का नियमित बजट 4.50 करोड़ से बढ़ाकर 10 करोड़ रुपए किया जाए, किंतु ये सब उनके लिए मुमकिन न हो सका।

मुनव्वर राना का यह भी कहना है कि उन्हें जो पद दिया गया था, वह उनके कद के हिसाब से छोटा था। उर्दू की सेवा के लिए उन्होंने यह पद स्वीकार किया था। अपने छोटे से कार्यकाल में उन्होंने कभी भी अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठकर काम नहीं किया। न ही अकादमी से कोई सुविधा ली थी। चूंकि उर्दू की तरक्की में जुटे लोगों के हित के लिए फैसला लेने की स्थिति नहीं थी, इसलिए उन्होंने इस्तीफा देना बेहतर समझा। चलते-चलते उन्होने एक शेर सुनाया-
जुबाने भी तिजारत का जरिया बन गई राना,
हमारे मुल्क में उर्दू का कारोबार होता है।

हमारे साथ WhatsApp पर जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें
Share this Story:

वेबदुनिया पर पढ़ें

समाचार बॉलीवुड ज्योतिष लाइफ स्‍टाइल धर्म-संसार महाभारत के किस्से रामायण की कहानियां रोचक और रोमांचक

Follow Webdunia Hindi