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अशोक स्तंभ : नष्ट होने की कगार पर

सम्राट अशोक की ऐतिहासिक धरोहर

हमें फॉलो करें अशोक स्तंभ : नष्ट होने की कगार पर
- लक्ष्मी नारायण

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जिस महान सम्राट अशोक ने विश्व के इतिहास में भारत का परचम लहराकर पूरी दुनिया को मानवता का संदेश दिया था, आज उनकी बची-खुची निशानी भी नष्ट होने की कगार पर पहुँच गई है । सम्राट अशोक ने अपने विशाल साम्राज्य में कई शिलालेख और स्तंभ लगवाए थे। इन स्तंभों पर अशोक ने विभिन्न धर्मों के बीच सामंजस्य स्थापित करने और मानव मूल्यों में उच्च नैतिकता को बरकरार रखने के लिए अपने संदेश अंकित किए थे।

जहाँ एक ओर इन स्तंभों पर लिखे गए अभिलेखों से अशोक के साम्राज्य की सीमा के निर्धारण में इतिहासकारों को मदद मिली वहीं दूसरी ओर इन अभिलेखों में अशोक की धर्म और प्रशासन संबंधी अनेक महत्वपूर्ण बातों की जानकारी मिलती है। इतिहासकारों का मानना है कि आजादी के बाद से अब तक अशोक के लगभग 40 से अधिक अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं।

इनमें फिरोजशाह तुगलक द्वारा पंजाब और मेरठ से 1351 से 1366 के बीच दिल्ली लाए गए दो स्तंभ भी शामिल हैं। इन स्तंभों का महत्व न सिर्फ ऐतिहासिक है बल्कि बहुलतावादी संस्कृति और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी ये महत्वपूर्ण हैं पर देश की राजधानी में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की नाक के नीचे अशोक के ये दोनों स्तंभ खुले आकाश में अपना वजूद खोने को विवश हैं।

इन स्तंभों का हाल यह है कि इन पर उकेरे गए मानवता के संदेश मिट रहे हैं और इसकी जगह कुछ स्वघोषित लैला-मजनूँ अपने-अपने नाम कुरेद कर स्तंभ गंदा कर रहे हैं। और तो और, इन स्तंभों के आसपास के लोगों को भी पता नहीं है कि यह क्या चीज है और इनका ऐतिहासिक महत्व क्या है! पुरातत्व विभाग द्वारा इन अशोक स्तंभों के स्थायी संरक्षण को लेकर कभी कोई काम नहीं हुआ है। इतना ही नहीं, स्तंभ के संरक्षण के लिए विभाग ने कोई प्रारूप भी तैयार नहीं करवाया है जिससे सरकारी तौर पर कुछ किया जा सके।

उल्लेखनीय है कि दोनों स्तंभ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन हैं यानी रखरखाव और संरक्षण की जिम्मेदारी उसी पर है। बारिश और धूप के कारण दोनों स्तंभों का हाल बदतर है। इन स्तंभों पर ब्राह्मी लिपि में उकेरे गए अशोक के संदेश को अब पढ़ना नामुमकिन हैं। धूप और बारिश से बचने के लिए इन स्तंभों के ऊपर छत जैसी कोई व्यवस्था नहीं है। बाड़ा हिन्दू राव अस्पताल के ठीक सामने जो अशोक स्तंभ है वहाँ तो कोई सुरक्षा गार्ड तक नहीं है। वहाँ धूल-मिट्टी और पास के जंगलों से निकाला गया कचरा पड़ा रहता है।

दूसरा स्तंभ फिरोजशाह कोटला किले में है। अशोक के स्तंभों में इसका ऐतिहासिक महत्व सबसे ज्यादा है क्योंकि इस पर अशोक के सातों अभिलेख अंकित हैं। किले के अंदर यह एक गुंबदनुमा तीन मंजिली इमारत के ऊपर लगा हुआ है। इमारत की हालत जर्जर है। अगर इसकी हालत में सुधार के लिए जल्दी ही कुछ नहीं किया गया तो इस स्तंभ का ऊपर टिका रहना मुश्किल है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में दिल्ली मंडल के पुरातत्वविद् के.के. मोहम्मद ने बताया कि जब से भारतीय पुरातत्व अस्तित्व में आया है तब से देश के करीब 10 अशोक स्तंभ विभाग के अधीन हैं। इनमें से दो दिल्ली में स्थित हैं।

उन्होंने कहा कि यह सच्चाई है कि इन ऐतिहासिक महत्व के स्तंभों के संरक्षण के लिए विभाग को जितना कुछ करना चाहिए उतना नहीं हुआ है। प्रसिद्ध इतिहासकार प्रो. उमा चक्रवर्ती का कहते हैं, 'अशोक स्तंभ ही नहीं देश की अनेक ऐतिहासिक धरोहरों की हालत खराब है। अनेक खुले में पड़े हैं, वहाँ एक सुरक्षाकर्मी तक नहीं है। जबकि धरोहरों पर उसके ऐतिहासिक महत्व को दर्शाने वाली जानकारी तो जरूर होनी चाहिए। प्रो. चक्रवर्ती ने कहा कि आज सिर उठाती सांप्रदायिक शक्तियों के मद्देनजर अशोक स्तंभ पर अंकित अभिलेखों के संदेश और भी प्रासंगिक हो गए हैं।'

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