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पं. रविशंकर शर्मा
यहाँ सर्वप्रथम पूजन-संबंधी कुछ ज्ञातव्य बातों का निर्देश किया जा रहा है।
पंचदेव
आदित्यं गणनाथं च देवी रुद्रं च केशवम्।
पंच दैवत्यामि त्युक्तं सर्वकर्मसु पूजयेत॥
अर्थ : सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव, विष्णु ये पंचदेव कहे गए हैं। इनकी पूजा सभी कार्यों में करना चाहिए।
एका मूर्तिर्न सम्पूज्या गृहिणा स्केटमिच्छता।
अनेक मुर्ति संपन्नाः सर्वान् कामानवाप्नुयात॥
अर्थ : कल्याण चाहने वाले गृहस्थ एक मूर्ति की पूजा न करें, किंतु अनेक देवमूर्ति की पूजा करे, इससे कामना पूरी होती है किंतु
गृहे लिंगद्वयं नाच्यं गणेशत्रितयं तथा।
शंख द्वयं तथा सूर्यो नार्च्यो शक्तित्रयं तथा॥
द्वे चक्रे द्वारकायास्तु शालग्राम शिलाद्वयम्।
तेषां तु पुजनेनैव उद्वेगं प्राप्नुयाद् गृही॥
अर्थ : घर में दो शिवलिंग, तीन गणेश, दो शंख, दो सूर्य, तीन दुर्गा मूर्ति, दो गोमति चक्र और दो शालग्राम की पूजा करने से गृहस्थ मनुष्य को अशांति होती है।
प्राण-प्रतिष्ठा
(1) शालग्राम शिलायास्तु प्रतिष्ठा नैव विद्यते।
अर्थ : शालग्राम की प्राण-प्रतिष्ठा नहीं होती।
(2) शैलीं दारुमयीं हैमीं धात्वाद्याकार संभवाम्।
प्रतिष्ठां वै प्रकुर्वीत प्रसादे वा गृहे नृप॥
अर्थ : पत्थर, काष्ठ, सोना या अन्य धातुओं की मूर्तियों की प्रतिष्ठा घर या मंदिर में करनी चाहिए।
(3) गृहे चलार्चा विज्ञेया प्रसादे स्थिर संज्ञिका।
इत्येत कथिता मार्गा मुनिभिः कुर्मवादिभिः॥
अर्थ : घर में चल प्रतिष्ठा और मंदिर में अचल प्रतिष्ठा करना चाहिए। यह कर्म-ज्ञानी मुनियों का मत है।
'गंगाजी में, शालग्राम शिला में तथा शिवलिंग में सभी देवताओं का पूजन बिना आह्वान-विसर्जन किया जा सकता है।'
पूजन के उपचार
(1) पाँच उपचार, (2) दस उपचार, (3) सोलह उपचार।
(1) पाँच उपचार : गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
(2) दस उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र निवेदन, गंध, पुष्प, धूप, दीप और नेवैद्य।
(3) सोलह उपचार : पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, आभूषण, गंध, पुष्प, धूप, दीप, नेवैद्य, आचमन, ताम्बुल, स्तवपाठ, तर्पण और नमस्कार। पूजन के अंत में सांगता सिद्धि के लिए दक्षिणा भी चढ़ाना चाहिए।