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दुर्लभ प्राचीन मूर्तियों का संग्रहालय

पुरातात्विक धरोहर का खजाना

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- विनोद बंध
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गुदड़ी में लाल! बिहार के संदर्भ में यह बात सार्थक होती है। वर्तमान में फटेहाल बिहार के पास ऐतिहासिक-पुरातात्विक और धार्मिक धरोहरों का खजाना है। पिछले दो दशक के लिए भले ही बिहार के नवादा जिले की पहचान दो बाहुबली सरगनाओं के वर्चस्व की लड़ाई में नरसंहारों से बन गई थी लेकिन सच तो यह है कि यहाँ की मिट्टी में न केवल कई कालों के समृद्ध इतिहास के पुख्ता प्रमाण दफन हैं, बल्कि बिहार और बंगाल में छठी से दसवीं सदी के बीच पनपी और समृद्ध हुई मगध-बंग यानी पाल-सेन कला की धरोहर है।

जिले के सोनूबिगहा, मड़रा, मरुई, समाय, सिसवाँ, कोशला, पटवासराय, महरावाँ, बेरमी, नरहट और मकनपुर में जमीन से निकली मूतियाँ, जो आज नवादा स्थित नारद संग्रहालय की शोभा बढ़ा रही हैं, न केवल अति प्राचीन हैं बल्कि कला की अद्भुत बानगी पेश करती हैं। इसी कारण मगध-बंग अथवा पाल-सेन कला शैली के अवशेषों के संग्रह और शोध का इसे प्रमुख केंद्र माना जा रहा है। कला की इसी शैली को बाद में चलकर पूर्वी कला शैली (ईस्टर्न स्कूल ऑफ आर्ट) का नाम मिला।

पटना से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर नवादा शहर के नवादा चौक स्थित नारद संग्रहालय आज दुर्लभ प्राचीन मूर्तियों, पांडुलिपियों, अस्त्र-शस्त्र, कलाकृतियों, सिक्कों के बेमिसाल संग्रह के कारण देश-दुनिया के शोधकर्ताओं और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। देर से ही सही, भारत सरकार की नजर इस संग्रहालय पर पड़ी है। इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एँड कल्चर हेरिटेज के लखनऊ स्थित कलाकृति संस्कृति अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों को यहां संग्रहीत पुरातात्विक महत्व के अवशेषों और पांडुलिपियों को सहेजने की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

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जल्दी ही वैज्ञानिकों का दल यहाँ आकर अपना काम प्रारंभ करेगा। संग्रहालय के अध्यक्ष डॉ. अवध किशोर प्रसाद सिंह ने बताया कि नरसिंह अवतार, नटराज, बोधित्सव, वासुकी की प्रतिमाएँ मूर्ति कला विज्ञान की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण हैं। बोधिसत्व की मूर्ति पर शोध की योजना बनाई गई है। गया जिले के वजीरगंज के हराही से प्राप्त हिंदू देवी कंकाली की प्रतिमा, कुर्कीहार से मिली पद्मपाणि अवलोकीतेश्वर, धुरियावां से बरामद बौद्ध देवी हरीति और हिंदू मंजुश्री की प्रतिमा अद्भुत हैं।

डॉ. सिंह ने बताया कि ईस्टर्न स्कूल ऑफ आर्ट के स्वतंत्र अस्तित्व का उल्लेख तारानाथ में मिलता है। तारानाथ में कहा गया है कि देवपाल और धर्मपाल पालवंशीय शासकों के समय धीमान और उनके पुत्र वितपाल ने अनेक मूतियाँ बनाई थीं। सलीमपुर अभिलेख में मगध के एक प्रसिद्ध शिल्पी सोमेश्वर की चर्चा है । जाहिर है कि मगध में मूर्ति कला बहुत समृद्ध थी।

नवादा जिले के बेरमी में मिली सूर्य की प्रतिमा पुरातत्व की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इस सूर्य प्रतिमा के पैर में जूते हैं। मान्यता है कि सूर्य का पैर देखने से अनिष्ट होता है इसलिए पैर में जूता पहनाया गया है। बिहार मगही मंडल के अध्यक्ष राम रतन प्रसाद रत्नाकर कहते हैं कि ईस्टर्न स्कूल ऑफ आर्ट पर की गई अबतक की शोध अधूरी है, जब तक कि नारद संग्रहालय की मूर्तियों का अध्ययन पूरा नहीं हो जाता है । इन्हीं कारणों से नवादा शहर के मध्य स्थित नारद संग्रहालय को मगध-बंग शैली का प्रतिनिधि संग्रहालय कहा जाता है।

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व निदेशक डॉ. अमरेंद्र नाथ के नेतृत्व में दो दर्जन शोधकर्ताओं ने मूर्तिकला विज्ञान पर यहां शोध किया है। उन्होंने कहा कि यह बिहार ही नहीं, भारत के प्रमुख संग्रहालयों में एक है । यह संग्रहालय क्रमिक विकास के अध्ययन का अवसर देता है। उनके साथ आए राज्य सरकार के पुरातत्व विभाग के पटना अंचल के अधिकारी डॉ. जलज कुमार तिवारी का कहना था कि यह प्राचीन भारतीय मूर्तिकला का प्रतिनिधित्व करता है।

अपनी इन्हीं खूबियों के कारण देश के ही नहीं, अनेक देशों के शोधकर्ताओं का नारद संग्रहालय तीर्थ बनता जा रहा है। कुछ समय पूर्व जर्मनी और आस्ट्रेलिया के दो शोधकर्ताओं ने यहाँ का दौरा किया। उन्होंने यहाँ का संग्रह देखकर कहा कि यह भारत का प्रमुख संग्रहालय है और इसे विकसित करने की जरूरत है।

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इसके पहले भी कई विदेशी शोधकर्ताओं ने इस संग्रहालय के महत्व को स्वीकारा है। जापान के कोजी आमदा के अनुसार, 'बौद्ध कला पर शोध के लिए यह बेहतर स्थान है।'जापान के ही नागोया यूनिवर्सिटी के कला इतिहास के प्रो. अकीरा मियाजी ने कहा कि शोध के लिए यहाँ की बौद्ध और हिंदू धर्म से जुड़ी मूतियाँ अवसर उपलब्ध कराती हैं।

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रो. दिलीप कुमार चक्रवर्ती ने इस संग्रहालय का जायजा लेने के बाद वहाँ रखी अतिथि पंजी में अपनी टिप्पणी इस तरह लिखी है- मैंने बिहार के कई संग्रहालय देखे हैं, उनमें यह सबसे बेहतर लगा। कोरिया के नामडोंग सिन, यूएसए के बियान किस्टसर समेत दर्जनों विदेशी शोधकर्ताओं ने भी पाषाणकालीन मूर्तियों के संरक्षण के लिए इसे महत्वपूर्ण केंद्र करार दिया है।

बिहार शरीफ स्थित नालंदा कॉलेज के इतिहास के शिक्षक डॉ. राजीव रंजन कहते हैं कि पाल काल गया, नवादा और नालंदा का मूर्ति कला के विकास का स्वर्णिम काल था । कुर्कीहार और आसपास शिल्पकार बड़ी संख्या में मूर्तियों का निर्माण करते थे। यही वजह है कि इस इलाके में वैष्णव, शैव, बौद्ध, जैन और हिंदू धर्म से जुड़ी मूतियाँ मिलती रही हैं।

भले ही नारद संग्रहालय अति प्राचीन कलाकृति, सिक्के, पांडुलिपि और अस्त्र-शस्त्र के संग्रह के लिए जाना जाता है लेकिन खुद यह अभी जवान है। इसकी स्थापना 1973 में यहाँ के जिलाधिकारी नरेंद्र पाल सिंह ने एक टिन शेड में की थी। उन्होंने नवादा और आसपास बिखरी प्राचीन मूर्तियों एवं अन्य वस्तुओं का यहाँ संग्रह किया। उनके इस प्रयास को जन सहयोग ने चार चाँद लगा दिया। नरेंद्र पाल सिंह ने उसी वर्ष इसे बिहार पुरातत्व एवं संग्रहालय निदेशालय को सौंप दिया और 2 मई, 1974 को इसका विधिवत उद्घाटन राज्यपाल आर.डी. भंडारी ने किया।

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