॥ ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा।
स्वस्ति न-ह ताक्षर्यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु॥
अर्थात : महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है ऐसे गरूड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो।
स्वस्तिक का आविष्कार आर्यों ने किया और पूरे विश्व में यह फैल गया। आज स्वस्तिक का प्रत्येक धर्म और संस्कृति में अलग-अलग रूप में इस्तेमाल किया गया है। कुछ धर्म, संगठन और समाज ने स्वस्तिक को गलत अर्थ में लेकर उसका गलत जगहों पर इस्तेमाल किया है तो कुछ ने उसके सकारात्मक पहलू को समझा।
स्वस्तिक को भारत में ही नहीं, अपितु विश्व के अन्य कई देशों में विभिन्न स्वरूपों में मान्यता प्राप्त है। जर्मनी, यूनान, फ्रांस, रोम, मिस्र, ब्रिटेन, अमेरिका, स्कैण्डिनेविया, सिसली, स्पेन, सीरिया, तिब्बत, चीन, साइप्रस और जापान आदि देशों में भी स्वस्तिक का प्रचलन किसी न किसी रूप में मिलता है।
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