मंदिर से लगभग तीन किलोमीटर की दूरी पर गब्बर नामक पहाड़ है। इस पहाड़ पर भी देवी माँ का प्राचीन मंदिर स्थापित है। माना जाता है यहाँ एक पत्थर पर माँ के पदचिह्न बने हैं। पदचिह्नों के साथ-साथ माँ के रथचिह्न भी बने हैं। अम्बाजी के दर्शन के उपरान्त श्रद्धालु गब्बर जरूर जाते हैं।अम्बाजी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहाँ पर भगवान श्रीकृष्ण का मुंडन संस्कार संपन्न हुआ था। वहीं भगवान राम भी शक्ति की उपासना के लिए यहाँ आ चुके हैं। हर साल भाद्रपदी पूर्णिमा के मौके पर यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु जमा होते हैं।
विशेष आकर्षण- नौ दिनों तक चलने वाले नवरात्र पर्व में श्रद्धालु बड़ी संख्या में यहाँ माता के दर्शन के लिए आते हैं। इस समय मंदिर प्रांगण में गरबा करके शक्ति की आराधना की जाती है। समूचे गुजरात से कृषक अपने परिवार के सदस्यों के साथ माँ के दर्शन के लिए एकत्रित होते हैं।
व्यापक स्तर पर मनाए जाने वाले इस समारोह में ‘भवई’ और ‘गरबा’ जैसे नृत्यों का प्रबंध किया जाता है। साथ ही यहाँ पर ‘सप्तशती’ (माँ की सात सौ स्तुतियाँ) का पाठ भी आयोजित किया जाता है। भाद्रपदी पूर्णिमा को इस मंदिर में एकत्रित होने वाले श्रद्धालु पास में ही स्थित गब्बरगढ़ नामक पर्वत श्रृंखला पर भी जाते हैं, जो इस मंदिर से दो मील दूर पश्चिम की दिशा में स्थित है। प्रत्येक माह पूर्णिमा और अष्टमी तिथि पर यहाँ माँ की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।
कैसे पहुँचें- अम्बाजी मंदिर गुजरात और राजस्थान की सीमा से लगा हुआ है। आप यहाँ राजस्थान या गुजरात जिस भी रास्ते से चाहें पहुँच सकते हैं। यहाँ से सबसे नजदीक स्टेशन माउंटआबू का पड़ता है। आप अहमदाबाद से हवाई सफर भी कर सकते हैं। अम्बाजी मंदिर अहमदाबाद से 180 किलोमीटर और माउंटआबू से 45 किलोमीटर दूरी पर स्थित है।