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माँ मनुदेवी का मंदिर

खानदेश की कुलदेवी 'मनुदेवी'

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-संदीप पारोलेकर
धर्म यात्रा की इस बार की कड़ी मेहम आपको ले चलते हैं खानदेशवासियों की श्रीक्षेत्र कुलदेवी मनुदेवी के मंदिर जो महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश इन दोनों राज्यों को अलग करने वाला सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं की ‍वादियों में बसा हुआ है।

वीडियो देखने के लिए फोटो पर क्लिक करें और फोटो गैलरी देखने के लिए क्लिक करें-

महाराष्ट्र के यावल-चोपड़ा मार्ग पर उत्तर सीमा में कासारखेड़-आड़गाँव ग्राम से लगभग 8 किमी दूरी पर मनुदेवी का अतिप्राचीन हेमाड़पंती मंदिर है। मंदिर चारों ओर से पर्वतों एवं हरियाली से घिरा हुआ है। आस-पास के लोग यहाँ पैदल व निजी वाहन से मन्नत माँगने देवी के द्वार आते हैं।

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ईसा पूर्व सन 1200 में सतपुड़ा के पर्वतीय इलाके में 'गवलीवाडा' नामक नगर पर ईश्वर सेन नाम का गवली राजा राज्य करता था। उसके पास बहुत सारी गाएँ थी। उनमें से कुछ तो महाराष्ट्र स्थित ताप्ति नदी पर तो कुछ मध्यप्रदेश स्थित नर्मदा नदी पर पानी पीने जाती थी। उस समय सतपुडा में 'मानमोडी' नाम की भयंकर महामारी फैली थी। महामारी के कारण सारा खानदेश उसकी चपेट आ गया था।

इस महामारी ने सतपुडा एवं खानदेश में पूरी तरह से तबाही मचा दी, ‍जिसके कारण हजारों लोग एवं जानवरों की मौत हो गई थी। इस महामारी से छुटकारा पाने के लिए राजा ईश्वर सेन ने 'गवलीवाडा' से 3 किमी की दूरी पर जंगल में ईसा पूर्व 1250 में मनुदेवी माता की मूर्ति की विधी‍‍‍-‍विधान से स्थापना की थी।

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मनुदेवी के मंदिर से गवलीवाडा के बीच लगभग 13 फीट चौड़ी दीवार आज भी इस बात की गवाही देती है। 'मानमोडी' एवं राक्षसों से भगवान की रक्षा करने के लिए मनुदेवी की स्थापना की गई थी, ऐसा उल्लेख देवी भागवत पुराण में मिलता है। किंवदंति है कि भक्तों की मनोकामना पूरी करने वाली मनुदेवी सतपुड़ा जंगलो में वास करेगी, ऐसा स्वयं भगवान श्री‍कृष्ण ने मथुरा जाते समय कहा था।

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मंदिर परिसर में सात से आठ कुएँ नजर आते हैं। मंदिर में रखी हुई मनुदेवी की काले पाषाष से बनी सिंदूर लगी हुई मूर्ति, गणेशजी, शिवलिंग, अन्नपूर्णा माता की मूर्ति मंदिर बनाते समय यहाँ मिली थी। मंदिर के चारों ओर ऊँची-ऊँची चट्टाने हैं, तो मंदिर के सामने लगभग 400 फिट की ऊँचाई से गिरने वाला 'कवठाल' नदी का मनमोहक जलप्रताप भक्तों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

मनुदेवी की यात्रा साल में चार बार की जाती है। चैत्र-माघ महिने के शुद्ध अष्ठमी को नवचंडी देवी के महायज्ञ का आयोजन किया जाता है। नवरात्रि के पूरे दस दिन यहाँ यात्रा रहती है। संपूर्ण देश से आने वाले लाखों भक्त माता का श्रद्धापूर्वक नमन करके मन्नत मागते हैं।

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महाराष्ट्र में ऐसी मान्यता है की, नवद‍म्पति माता के दर्शन के पश्चात सुखी संसार का प्रारंभ करते हैं। पहले मनुदेवी के दर्शन के लिए भक्तों को सतपुडा जंगल से गुजर कर जाना पड़ता था। अब महाराष्ट्र सरकार एवं सतपुडा निवासिनी मनुदेवी सेवा प्रतिष्ठान के सहयोग से माता के मंदिर की ओर जाने के लिए पक्की सड़क का निर्माण किया गया है।

कैसे पहुँचे:-
वायु मार्ग : यहाँ जाने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा औरंगाबाद है। यहाँ से मनुदेवी माता का मंदिर लगभग 175 किमी की दूरी पर है।
रेल मार्ग : भुसावल रेल्वे स्टेशन सभी प्रमुख रेल मार्ग से जुड़ा हुआ है। भुसावल से यावल और यावल से आड़गाँव जाने के लिए बस सेवा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग : भुसावल से यावल 20 किमी की दूरी पर है, और यहाँ से आड़गाव (मनुदेवी) जाने के लिए बस एवं टैक्सी सेवा उपलब्ध है।

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