इनमें शंकरजी का त्रिशूल, विष्णु का चक्र, वरुण का शंख, अग्नि का दाहकत्व, वायु का धनुष-बाण, इंद्र का वज्र व घंटा, यम का दंड, दक्ष प्रजापति की स्फटिकमाला, ब्रह्मदेव का कमंडल, सूर्य की किरणें, कालस्वरूपी देवी की तलवार, क्षीरसागर का हार, कुंडल व कड़ा, विश्वकर्मा का तीक्ष्ण परशु व कवच, समुद्र का कमलाहार, हिमालय का सिंहवाहन व रत्न शामिल हैं। प्रतिमा सिंदुरी होने के साथ ही रक्तवर्ण है जिसकी आँखें तेजस्वी हैं।मुख्य मंदिर तक जाने के लिए करीब 472 सीढि़याँ चढ़ना पड़ती हैं। चैत्र और अश्विन नवरात्र में यहाँ उत्सव होते हैं। कहते हैं कि चैत्र में देवी का रूप हँसते हुए तो नवरात्र में गंभीर नजर आता है। इस पर्वत पर पानी के 108 कुंड हैं, जो इस स्थान की सुंदरता को कई गुना बड़ा देते हैं।
कैसे पहुँचें:-
वायु मार्ग: सप्तश्रृंगी देवी के दर्शन हेतु जाने के लिए सबसे नजदीक मुंबई या पुणे का विमानतल है जहाँ से बस या निजी वाहन से नासिक पहुँचा जा सकता है।
रेल मार्ग: सभी मुख्य शहरों से नासिक के लिए आसानी से रेल उपलब्ध है।
सड़क मार्ग: सप्तश्रृंगी पर्वत नासिक से 65 किमी की दूरी पर स्थित है जहाँ पहुँचने के लिए महाराष्ट्र परिवहन निगम के साथ निजी वाहन भी आसानी से उपलब्ध हैं।