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जारी रहेगी गर्मियों में चारधाम यात्रा करने की परंपरा

फ्लॉप हो गई शीतकालीन चारधाम यात्रा

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- महेश पाण्डे/प्रवीन कुमार भट्
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उत्तराखंड राज्य में शीतकालीन पर्यटन एवं धर्माटन को बढ़ाने के उद्देश्य से भाजपा सरकार द्वारा दो साल पहले ही जोर-शोर से शुरू की गई शीतकालीन चारधाम यात्रा अपने बाल्यकाल में ही दम तोड़ गई। 2010 में बड़े प्रचार-प्रसार के साथ भाजपा सरकार ने इस योजना को शुरू किया था।

बताया गया था कि शीतकाल में चारधाम यात्रा को जारी रखने से न सिर्फ प्रदेश में वर्षभर पर्यटन और तीर्थाटन को बढ़ावा मिलेगा बल्कि विश्व भर के लोग इस यात्रा के प्रति आकर्षित होंगे। जिन लोगों को गर्मी के मौसम में चारधाम यात्रा करने का मौका नहीं मिल पाता है वे सर्दी में कर पाएंगे। इसके पीछे सरकार का एक तर्क यह भी था कि इससे चारधाम यात्रा के जरिए रोजगार करने वाले लोगों को भी साल भर रोजगार मिल जाएगा।

हालांकि योजना शुरू करते समय चारधामों के पंडा व पुरोहित समाज ने शीतकालीन चारधाम यात्रा शुरू करने को धर्मविरुद्ध करार दिया था। इस विरोध को अनसुना करते हुए तब सरकार ने इस योजना को शुरू कर ऋषिकेश से शीतकालीन चारधाम यात्रा के वाहनों को रवाना किया था।

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परंपरा के मुताबिक गंगोत्री स्थित मंदिर को शीतकाल के लिए नवंबर से अप्रैल तक बंद कर दिया जाता है। इसी तरह यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ के मंदिर भी शीतकाल में करीब छह माह तक बंद रहते हैं। इस दौरान गंगा की डोली उत्तरकाशी के मुखबा गांव में शीतकालीन प्रवास करती है। जबकि यमुना की डोली को खरसाली, केदारनाथ को उखीमठ तथा बदरीनाथ की डोली को जोशीमठ लाया जाता है।

बदरीनाथ के सहयोगी माने जाने वाले भगवान उद्धव तथा कुबेर की डोलियां शीतकालीन प्रवास पर पांडुकेश्वर में रखी जाती हैं। जोशीमठ में ही इस दौरान आदि गुरु शंकराचार्य की गद्दी को भी शीतकालीन प्रवास पर रखा जाता है।

सरकार की योजना यह थी कि शीतकालीन चारधाम यात्रा के दौरान गंगोत्री की जगह गंगा का दर्शन श्रद्धालुओं को मुखबा में गंगा के मायके में कराया जाएगा। इसी तरह शीतकाल में यमुनोत्री की ख्वाहिश रखने वाले यात्री खरसाली तक जाते। केदारनाथ की इच्छा रखने वाले यात्रियों को सरकार उखीमठ तक भेजती जबकि भगवान बदरीनाथ के दर्शन यात्री उखीमठ में करते।

परंपरा के अनुसार चारों ही देव शीतकाल में अपने शीतकालीन प्रवासों में आराम करते हुए विराजमान होते हैं। इस दौरान परंपरा के अनुसार स्थानीय लोग जिन्हें इन देवताओं के नजदीक का माना जाता है इनकी पूरी सेवा में जुटे रहते हैं। लेकिन यात्रा या दर्शन का कार्यक्रम इस दौरान स्थगित रहता है लेकिन चारों धामों की पूजा नियमित रूप से शीतकालीन प्रवास स्थलों पर होती है।

सरकार द्वारा 2010 में शुरू की गई इस योजना को तत्कालीन पर्यटन मंत्री मदन कौशिक ने ऋषिकेश से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। सरकार यह मानकर चल रही थी कि इस यात्रा में देश-प्रदेश के लोग जुटेंगे लेकिन ऐसा हो नहीं पाया। किसी तरह इस यात्रा के लिए पहले साल में केवल 4-5 गाड़ियों को ही रवाना किया जा सका जबकि दूसरा साल आते-आते यह योजना केवल औपचारिकता बनकर रह गई। 2011 में तो इस यात्रा का सरकार ने उद्घाटन तक नहीं किया। यात्रा 2011 के नवंबर दिसंबर से शुरू होकर अप्रैल 2012 तक चलती लेकिन इस बार एक भी गाड़ी शीतकालीन चारधाम यात्रा के नाम से रवाना नहीं हुई।

सैकड़ों वर्षों से चारधाम यात्रा को लेकर यही परंपरा रही है कि जाड़ों में मंदिरों के कपाट बंद रहेंगे और गर्मियों में जब पहाड़ों का मौसम यात्रा के अनुकूल होता है तब यात्रा की जाएगी। हालांकि इसके उलट सरकार वर्ष भर इस यात्रा को शुरू कर नई इबारत लिखना चाहती थी लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। न तो सरकार देश की जनता में शीतकालीन चारधाम यात्रा के प्रति कोई रुचि जगा पाई और न जिन लोगों तक शीतकालीन चारधाम यात्रा की जानकारी पहुंची उन्होंने ही परंपरा के इतर जाड़ों में चारधाम यात्रा पर निकलने में कोई रुचि दिखाई। जानकार यह भी मान रहे थे कि अगर मुखबा, खरसाली, उखीमठ और जोशीमठ तक यह यात्रा कराई भी जाती है तो यह आधी-अधूरी चारधाम यात्रा होगी। चाहकर भी यात्री गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ व बदरीनाथ तक नहीं पहुंच पाएंगे।

राज्य सरकार इस यात्रा के प्रति लोगों को आकर्षित करने में एक तरह से नाकाम रही। चारधाम विकास परिषद के उपाध्यक्ष सूरत राम नौटियाल का कहना है कि सरकार को इस योजना को और वर्कआउट करने के बाद लागू करना चाहिए था। शीतकालीन चारधाम यात्रा के विचार को लेकर किसी को कोई संशय नहीं है लेकिन जनता के मन में जो भ्रम की स्थिति है उसे भी दूर करना होगा। साथ ही, यह भी सच है कि शीतकाल में यात्री चारधामों की पूरी यात्रा नहीं कर सकते। हालांकि सरकार इस योजना का ठीक से प्रचार करे तो इसे पर्यटन और तीर्थाटन से जोड़कर बढ़ावा दिया जा सकता है। प्रदेश सरकार के पर्यटन सलाहकार प्रकाश सुमन ध्यानी का कहना है कि शीतकालीन पर्यटन का विचार नया नहीं है।

भाजपा सरकार ने इसे लागू भी किया है और भविष्य में इस बात की पूरी संभावना है कि लोग वर्ष भर जब भी उन्हें मौका लगेगा तभी वे यात्रा पर आएंगे। जाड़ों में पहाड़ों की यात्रा का शौक जिस तरह से बढ़ रहा है, पूरे आसार हैं कि भविष्य में शीतकालीन पर्यटन भी बढ़ेगा। सरकार भविष्य में इस ओर विशेष ध्यान देगी। वहीं राज्य पर्यटन विकास परिषद के संयुक्त निदेशक ए.के. द्विवेदी का कहना है कि भविष्य में इस योजना को अधिक आकर्षक तरीके से पेश किया जाएगा। अगर इस योजना का व्यापक प्रचार-प्रसार हो तो यह योजना बड़े पैमाने पर रोजगार का साधन बन सकती है।

चारधाम यात्रा गर्मियों में करने की परंपरा रही है। भाजपा सरकार वर्ष भर इस यात्रा को शुरू कर नई इबारत लिखना चाहती थी लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो पाई। सरकार भले ही आगे इस योजना को और बेहतर बनाने की बात फिलहाल कर रही हो लेकिन इस सचाई से नहीं भाग सकते कि इस साल एक भी गाड़ी शीतकालीन चारधाम यात्रा के नाम से रवाना नहीं हो पाई। साफ है कि केवल गर्मियों में चारधाम यात्रा में जाने की एक प्राचीन और स्थापित परंपरा है जिसे सरकार तोड़ नहीं पाई।

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