श्रावण मास व अधिक मास में कर्कोटेश्वर महादेव की पूजा का विशेष महत्व है। साथ ही तीन यात्राओं का फल भी मिलता है। धार्मिक नगरी उज्जैन की चौरासी महादेव यात्रा में श्री कर्कोटेश्वर महादेव दसवें क्रम पर आते हैं। हरसिद्घि मंदिर प्रांगण में स्थित कर्कोटेश्वर महादेव के दर्शन-पूजन से श्रद्घालु को सर्प का भय नहीं रहता है। दरिद्रता का नाश होता है।
पुराणों के अनुसार श्री कर्कोटेश्वर महादेव यहां कर्कोट नाग के स्वरूप में हैं। यहां नागपंचमी पर कालसर्प दोष निवारण पूजन करवाने से कालसर्प दोष से मुक्ति मिलती है।
प्राचीन मान्यता के अनुसार कर्कोटेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से विष बाधा दूर हो जाती है। ऐसा कहा जाता है कि माता उमा ने सर्पों को श्राप दिया कि मेरा वचन पूरा नहीं करने से तुम जन्मेजय के यज्ञ में अग्नि में जल जाओगे। श्राप सुनकर सर्प भयभीत होकर भागने लगे।
ND
नागेन्द्र एलापत्रक नामक सर्प ब्रह्माजी के पास गया और सारा वृत्तांत सुनाया। ब्रह्मा ने उन्हें महाकाल वन जाने को कहा। उन्होंने कहा कि वहां जाकर महामाया के समीप महादेव की आराधना करो। यह सुनकर कर्कोटक नाम का सर्प स्वेच्छा से महामाया के सामने बैठकर महादेव की अर्चना करने लगा।
तब महादेव ने प्रसन्न होकर वरदान दिया कि जो सर्प विष उगलने वाला क्रूर होगा उसका नाश होगा किंतु धर्माचरण करने वाले सांपों का नाश नहीं होगा। तभी से यह शिवलिंग कर्कोटेश्वर महादेव के नाम से विख्यात हो गया। इनके दर्शन से कभी भी सर्प पीड़ा नहीं होती है। और कालसर्प दोष का संपूर्ण निवारण भी हो जाता है।