- जितेंद्र चौहान
तुम्हारी यादें
मुझे छोड़ती नहीं
जैसे मछली नहीं छोड़ती पानी
तुम्हारी यादें
बस गई हैं मेरी रग-रग में
बसती हैं मिट्टी में
अपनी पूरी नमी के साथ
शाम होते ही
जैसे पंछी लौटते हैं पेड़ों पर
रात बीतते-बीतते
मैं लौटता हूँ
तुम्हारी यादों के बसेरे में।