Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

ब्रह्मवादिनी वेदज्ञ ऋषि गार्गी

हिंदू धर्म की महान महिलाएं-1

हमें फॉलो करें ब्रह्मवादिनी वेदज्ञ ऋषि गार्गी
FILE
भारत में पुरुषों के साथ ही भारतीय महिला दार्शनिकों तथा साध्वियों की लम्बी परंपरा रही है। वेदों की ऋचाओं को गढ़ने में भारत की बहुत-सी स्त्रियों का योगदान रहा है उनमें से ही एक है गर्गवंश में वचक्नु नामक महर्षि की पुत्री 'वाचकन्वी गार्गी'।

माना जाता है कि राजा जनक प्रतिवर्ष अपने यहां शास्त्रार्थ करवाते थे। एक बार जनक ने श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी की परीक्षा लेने के लिए एक शास्त्रार्थ सभा का आयोजन किया।

उन्होंने शास्त्रार्थ विजेता के लिए सोने की मुहरें जड़ित 1000 गायों को दान में देने की घोषणा कर रखी थी। उन्होंने कहा था कि शास्त्रार्थ के लिए जो भी पथारे हैं उनमें से जो भी श्रेष्ठ ज्ञानी विजेता बनेगा वह इन गायों को ले जा सकता है। निर्णय लेना अति दुविधाजनक था, क्योंकि अगर कोई ज्ञानी अपने को सबसे बड़ा ज्ञानी माने तो वह ज्ञानी कैसे कहलाएं?

ऐसी स्थिति में ऋषि याज्ञवल्क्य ने अति आत्मविश्वास से भरकर अपने शिष्यों से कहा, 'हे शिष्यो! इन गायों को हमारे आश्रम की और हांक ले चलो।' इतना सुनते ही सब ऋषि याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने लगे। याज्ञवल्क्य ने सबके प्रश्नों का यथाविधि उत्तर दिया।

उस सभा में वेदज्ञ स्त्री गार्गी भी उपस्थित थी। याज्ञवल्क्य से शास्त्रार्थ करने के लिए गार्गी उठीं और पूछा कि हे ऋषिवर! क्या आप अपने को सबसे बड़ा ज्ञानी मानते हैं, जो आपने गायों को हांकने के लिए अपने शिष्यों को आदेश दे दिया?

याज्ञवल्क्य ने कहा कि मां! मैं स्वयं को ज्ञानी नहीं मानता परन्तु इन गायों को देख मेरे मन में मोह उत्पन्न हो गया है।

गार्गी ने कहा कि आपको मोह हुआ, लेकिन यह इनाम प्राप्त करने के लिए योग्य कारण नहीं है। अगर सभी सभासदों की आज्ञा हो तो में आपसे कुछ प्रश्न पूछना चाहूंगी। अगर आप इनके संतोषजनक जवाब दे पाएं तो आप इन गायों को निश्चित ही ले जाएं।'

सभी ने गार्गी को आज्ञा दे दी। गार्गी का प्रश्न था, 'हे ऋषिवर! जल के बारे में कहा जाता है कि हर पदार्थ इसमें घुलमिल जाता है तो यह जल किसमें जाकर मिल जाता है?'

गार्गी का यह पहला प्रश्न बहुत ही सरल था, लेकिन याज्ञवल्क्य प्रश्न में उलझकर क्रोधित हो गए। बाद में उन्होंने आराम से और ठीक ही कह दिया कि जल अन्तत: वायु में ओतप्रोत हो जाता है। फिर गार्गी ने पूछ लिया कि वायु किसमें जाकर मिल जाती है और याज्ञवल्क्य का उत्तर था कि अंतरिक्ष लोक में।

पर गार्गी याज्ञवल्क्य के हर उत्तर को प्रश्न में बदलती गई और इस तरह गंधर्व लोक, आदित्य लोक, चन्द्रलोक, नक्षत्र लोक, देवलोक, इन्द्रलोक, प्रजापति लोक और ब्रह्मलोक तक जा पहुंची और अन्त में गार्गी ने फिर वही प्रश्न पूछ लिया कि यह ब्रह्मलोक किसमें जाकर मिल जाता है?

इस पर गार्गी पर क्रोधित होकर याज्ञवक्ल्य ने कहा, 'गार्गी, माति प्राक्षीर्मा ते मूर्धा व्यापप्त्त्’। अर्थात गार्गी, इतने प्रश्न मत करो, कहीं ऐसा न हो कि इससे तुम्हारा मस्तक फट जाए।

अच्छा वक्ता वही होता है जिसे पता होता है कि कब बोलना और कब चुप रहना है और गार्गी अच्छी वक्ता थी इसीलिए क्रोधित याज्ञवल्क्य की फटकार चुपचाप सुनती रही।

दूसरे प्रश्न में गार्गी ने अपनी जीत की कील ठोंक दी। उन्होंने अपने प्रतिद्वन्द्वी यानी याज्ञवल्क्य से दो प्रश्न पूछने थे तो उन्होंने बड़ी ही लाजवाब भूमिका बांधी।

गार्गी ने पूछा, 'ऋषिवर सुनो। जिस प्रकार काशी या अयोध्या का राजा अपने एक साथ दो अचूक बाणों को धनुष पर चढ़ाकर अपने दुश्मन पर लक्ष्य साधता है, वैसे ही मैं आपसे दो प्रश्न पूछती हूं।' गार्गी बड़े ही आक्रामक मूड में आ गई।

याज्ञवल्क्य ने कहा- हे गार्गी, पूछो।

गार्गी ने पूछा, 'स्वर्गलोक से ऊपर जो कुछ भी है और पृथ्वी से नीचे जो कुछ भी है और इन दोनों के मध्य जो कुछ भी है, और जो हो चुका है और जो अभी होना है, ये दोनों किसमें ओतप्रोत हैं?'

गार्गी का पहला प्रश्न 'स्पेस' और दूसरा 'टाइम' के बारे था। स्पेस और टाइम के बाहर भी कुछ है क्या? नहीं है, इसलिए गार्गी ने बाण की तरह पैने इन दो प्रश्नों के जरिए यह पूछ लिया कि सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन है?

याज्ञवल्क्य ने कहा- एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गी।’ यानी कोई अक्षर, अविनाशी तत्व है जिसके प्रशासन में, अनुशासन में सभी कुछ ओतप्रोत है। गार्गी ने पूछा कि यह सारा ब्रह्माण्ड किसके अधीन है तो याज्ञवल्क्य का उत्तर था- अक्षरतत्व के! इस बार याज्ञवल्क्य ने अक्षरतत्व के बारे में विस्तार से समझाया।

इस बार गार्गी अपने प्रश्नों के जवाब से इतनी प्रभावित हुई कि जनक की राजसभा में उसने याज्ञवल्क्य को परम ब्रह्मिष्ठ मान लिया। इसके बाद गार्गी ने याज्ञवल्क्य की प्रशंसा कर अपनी बात खत्म की तो सभी ने माना कि गार्गी में जरा भी अहंकार नहीं है। गार्गी ने याज्ञवल्क्य को प्रणाम किया और सभा से विदा ली। गार्गी का उद्‍येश्य ऋषि याज्ञवल्क्य को हराना नहीं था।

जैसे कि पहले ही कहा गया है कि गार्गी वेदज्ञ और ब्रह्माज्ञानी थी तो वे सभी प्रश्नों के जवाब जानती थी। यहां इस कहानी को बताने का तात्पर्य यह है कि अर्जुन की ही तरह गार्गी के प्रश्नों के कारण 'बृहदारण्यक उपनिषद्' की ऋचाओं का निर्माण हुआ। यह उपनिषद वेदों का एक हिस्सा है।

- (वेबदुनिया डेस्क)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi