पितरों की संतुष्टि हेतु विभिन्न पित्र-कर्म का विधान है। पुराणोक्त पद्धति से निम्नांकित कर्म किए जाते हैं :-
एकोदिष्ट श्राद्ध, पार्वण श्राद्ध नाग बलि कर्म नारायण बलि कर्म त्रिपिण्डी श्राद्ध महालय श्राद्ध पक्ष में श्राद्ध कर्म
इसके अलावा प्रत्येक मांगलिक प्रसंग में भी पितरों की प्रसन्नता हेतु 'नांदी-श्राद्ध' कर्म किया जाता है। दैनंदिनी जीवन, देव-ऋषि-पित्र तर्पण किया जाता है।
उपरोक्त कर्मों हेतु विभिन्न संप्रदायों में विभिन्न प्रचलित परिपाटियाँ चली आ रही हैं। अपनी कुल-परंपरा के अनुसार पितरों की तृप्ति हेतु श्राद्ध कर्म अवश्य करना चाहिए।
कैसे करें घर पर श्राद्ध कर्म :-
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महालय श्राद्ध पक्ष में पितरों के निमित्त घर में क्या कर्म करना चाहिए। यह जिज्ञासा सहजतावश अनेक व्यक्तियों में रहती है। यदि हम किसी भी तीर्थ स्थान, किसी भी पवित्र नदी, किसी भी पवित्र संगम पर नहीं जा पा रहे हैं तो निम्नांकित सरल एवं संक्षिप्त कर्म घर पर ही अवश्य कर लें :-
* प्रतिदिन खीर (अर्थात् दूध में पकाए हुए चावल में शकर एवं सुगंधित द्रव्य जैसे इलायची केशर मिलाकर तैयार की गई सामग्री को खीर कहते हैं) बनाकर तैयार कर लें। * गाय के गोबर के कंडे को जलाकर पूर्ण प्रज्वलित कर लें। * उक्त प्रज्वलित कंडे को शुद्ध स्थान में किसी बर्तन में रखकर, खीर से तीन आहुति दे दें। * इसके नजदीक (पास में ही) जल का भरा हुआ एक गिलास रख दें अथवा लोटा रख दें। * इस द्रव्य को अगले दिन किसी वृक्ष की जड़ में डाल दें। * भोजन में से सर्वप्रथम गाय, काले कुत्ते और कौए के लिए ग्रास अलग से निकालकर उन्हें खिला दें। * इसके पश्चात ब्राह्मण को भोजन कराएँ फिर स्वयं भोजन ग्रहण करें। * पश्चात ब्राह्मणों को यथायोग्य दक्षिणा दें। श्राद्ध कब और कौन करे माता-पिता की मरणतिथि के मध्याह्न काल में पुत्र को श्राद्ध करना चाहिए। जिस स्त्री के कोई पुत्र न हो, वह स्वयं ही अपने पति का श्राद्ध कर सकती है।