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ऑस्ट्रेलिया बना विश्व हॉक‍ी चैंपियन

जर्मनी का खिताबी हैट्रिक का सपना टूटा

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नई दिल्ली , शनिवार, 13 मार्च 2010 (20:32 IST)
PTI
ऑस्ट्रेलिया ने दमदार और आक्रामक हॉकी का बेहतरीन नमूना पेश करते हुए गत दो बार के चैंपियन जर्मनी को शनिवार रात यहाँ मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम में रोमांचक संघर्ष में 2-1 से पराजित कर हीरो होंडा एफआईएच हॉकी विश्वकप खिताब जीत लिया।

ऑस्ट्रेलिया की 1986 के बाद यह दूसरी खिताबी जीत है। इस शानदार जीत के साथ उसने जर्मनी का विश्वकप की खिताबी हैटट्रिक बनाने का सपना तोड़ दिया। ऑस्ट्रेलिया ने पिछले दो विश्वकप के फाइनल में जर्मनी के हाथों मिली पराजय का एक साथ बदला चुकाते हुए 24 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद विश्व खिताब अपने नाम कर लिया।

ऑस्ट्रेलिया ने बेहतरीन खेल का प्रदर्शन करते हुए जैसे ही यह खिताबी मुकाबला जीता उसके कुछ खिलाड़ियों ने खुशी में नेशनल स्टेडियम के टर्फ को चूम लिया वहीं जर्मनी के कुछ खिलाड़ी निराशा में औंधे मुँह लेट गए।

विश्व चैंपियन बनने के बाद ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों ने पूरे मैदान का चक्कर लगाते हुए स्टेडियम में मौजूद 15000 दर्शकों का अभिवादन स्वीकार किया।

जर्मन खिलाड़ी हालाँकि अपनी हार से मायूस थे लेकिन उन्होंने अपने हाथों में एक लंबा बैनर लिया हुआ था, जिस पर भारत और जर्मनी के झंडे बने थे और उस पर लिखा हुआ था आप सभी दर्शकों का जोरदार समर्थन के लिए शुक्रिया। जर्मन टीम की यह खेलभावना दर्शकों को दिलों के अंदर तक छू गई।

विजेता टीम पहले हाफ में 1-0 से आगे थी। ऑस्ट्रेलिया के लिए पहला गोल एडवर्ड ओकेनडेन ने छठे मिनट में किया जबकि जर्मनी का बराबरी करने वाला गोल मोरित्ज फरस्ते ने 46वें मिनट में दूसरे पेनल्टी कॉर्नर पर किया।

ऑस्ट्रेलिया के लिए विजयी गोल उसने पेनल्टी कॉर्नर विशेषज्ञ ल्यूक डोएरनर ने 59वें मिनट में तीसरे पेनल्टी कार्नर पर किया। डोएरनर का टूर्नामेंट का यह आठवाँ गोल था और इसके साथ ही वह हॉलैंड के ताइके ताइकामा के साथ शीर्ष स्कोरर रहे।

ऑस्ट्रेलिया को 2002 में कुआलालंपुर में जर्मनी के हाथों 1-2 से और 2006 में मोंचेनग्लाडबाख में 3-4 से पराजय झेलनी पड़ी थी। लेकिन इस बार ऑस्ट्रेलिया ने 2-1 से जीत हासिल कर जर्मनी को खिताबी हैटट्रिक बनाने वाला पहला देश बनने से रोक दिया।

ऑस्ट्रेलिया ने गत दिसंबर में चैंपियंस ट्रॉफी के फाइनल में भी जर्मनी को मात दी थी और उसी शानदार प्रदर्शन के सिलसिले को उसने दिल्ली में भी बरकरार रखा। दिल्ली का नेशनल स्टेडियम ऑस्ट्रेलिया के लिए भाग्यशाली साबित हुआ।

बेहद तेज गति से खेले गए फाइनल में दोनों की टीमों ने उच्च स्तरीय आक्रामक हॉकी का शानदार प्रदर्शन किया। यह एक ऐसा प्रदर्शन था जो लंबे समय तक हॉकीप्रेमियों को याद रहेगा।

दोनों की टीमें एक-दूसरे के गोल पर ऐसे हमले करती थी मानो समुद्र की एक बड़ी लहर झूमती हुई किनारे की तरफ जा रही हो। एक टीम एक तरफ से हमला करती थी तो दूसरी टीम जवाबी हमले में उसे झकझोर देती थी।

ऑस्ट्रेलिया ने टूर्नामेंट की शुरुआत इंग्लैंड के हाथों हार के साथ की थी लेकिन इसका समापन उसने खिताबी जीत के साथ किया।(वार्ता)

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