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संकट में है एशिया का 'वाटर टावर'

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- जम्मू कश्मीर से सुरेश एस डुग्गर

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कोपेनहेगन में ग्लोबल वार्मिंग पर हुए सम्मेलन की पूर्व संध्या पर कश्मीर के विश्वप्रसिद्ध स्की रिसॉर्ट में अमेरीकी रॉक स्टार टेरा नयोमी ने जब अपना प्रसिद्ध गीत 'से इट पॉसिबल...' गाकर कश्मीर में तेजी से पिघल रहे ग्लेशियरों की ओर इशारा किया। वह कश्मीर की खूबसूरती की कहानियाँ सुनकर कश्मीर आई थीं और ग्लेशियरों की दशा देख-जान कर उन्हें बहुत दुख पहुँचा है।

वह कश्मीर की ओर दुनिया का ध्यान आकर्षित करने की मुहिम छेड़ चुकी हैं। क्योंकि कश्मीर को, जिसे एशिया का 'वाटर टावर' कहा जाता है, बचाना उनकी नजर में अब दुनिया की जिम्मेदारी है। नयोमी के प्रयास कहाँ तक कामयाब होंगे यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना जरूर है कि कश्मीर के तेजी से बदलते मौसम और पिघलते ग्लेशियरों को बचाने का प्रयास अभी तक सामने नहीं आया है।

प्रमुख ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। कश्मीर में पानी का मुख्य स्रोत और सबसे बड़ा ग्लेशियर कोल्हाई पिछले 30 सालों में 18 प्रतिशत तक पिघल चुका है तो दुनिया का सबसे ऊँचा युद्धस्थल - सियाचिन ग्लेशियर भी अगले कुछ वर्षों में अंतिम साँसें लेना आरंभ कर दे, क्या पता?

कश्मीरी क्षेत्र में पानी का प्रमुख स्रोत होने के कारण कोल्हाई के पिघलने की रफ्तार नहीं थामी तो साफ पानी के लिए भारत-पाक के बीच एक और युद्ध को टाला नहीं जा सकता क्योंकि पाकिस्तानियों का जीवन भी इसी ग्लेशियर से जुड़ा हुआ है। कश्मीर में सबसे अधिक ग्लेशियर पहलगाम के आगे लिद्दर घाटी में हैं।

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लिद्दर घाटी में छोटे-बड़े 48 ग्लेशियर तकरीबन 40 वर्गकिलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं पर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। कोल्हाई ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार को देखकर प्रोफेसर सईद इकबाल हसनैन ने चेतावनी दी थी कि अगर इस रफ्तार को थामा नहीं गया तो कश्मीर रेगिस्तान में बदल जाएगा। उनके सुझावों पर सरकार ने गौर नहीं किया है।

हैदराबाद के राष्ट्रीय भू-भौतिकी अनुसंधान संस्थान के मुताबिक दस सालों में यह 2.11 वर्गकिलोमीटर सिकुड़ा है। कोल्हाई ग्लेशियर पर किए गए सर्वेक्षण में आस-पास के कई ग्लेशियरों का पूरी तरह खत्म हो जाना चौंकाता है। इनके नाम अब कथाओं में ही रह गए हैं।

कश्मीर में सीमेंट प्लांट, अमरनाथ यात्रा की भीड़ और फौजी काफिले ग्लेशियरों के लिए मौत ही लेकर आ रहे हैं। कश्मीर के भू-वैज्ञानिक प्रोफेसर मुहम्मद इस्माइल कहते हैं कि मौसम की गड़बड़ियों के लिए बढ़ती जनसंख्या जिम्मेदार है। बेतरतीब निर्माण और पहाड़ों का खनन भी इसके लिए जिम्मेदार हैं।

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कश्मीर के रिसर्च स्कॉलर अर्जिमंद तालिब हुसैन द्वारा बनाई गई रिपोर्ट पर अगर विश्वास करें तो आने वाले दिनों में मौसम इस कदर बिगड़ जाएगा कि कश्मीर बर्फ के लिए तरस उठेगा। कश्मीर में लगातार कम होती बर्फबारी तथा साल में नौ महीने बंद रहने वाले जोजिला दर्रे का दिसंबर के पिछले दिनों तक खुला रहना इस चेतावनी की पूर्व चेतावनी ही तो है।

हमेशा 20 फुट बर्फ से ढँके जोजिला दर्रे का साल के दौरान खुले रहने का लगातार बढ़ता समय खतरनाक संकेत हैं। पिछली बार तो इसे पूरी तरह बंद इसलिए नहीं किया जा सका कि भारी बर्फबारी ही नहीं हुई थी।

ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर झेल रहा कश्मीर सिर्फ बर्फ से वंचित ही नहीं हो रहा बल्कि मौसम की अनजानी करवटों से यहाँ कुछ सालों बाद खाद्य सामग्री की भी किल्लत हो सकती है।

'इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज' के अनुसार, वर्ष 2035 तक हिमालय के ग्लेशियर 1,93,051 वर्ग मील से सिकुड़कर 38 हजार वर्ग मील रह जाएंगें जिसमें धरती का तीसरा पोल कहा जाने वाला सियाचिन ग्लेशियर भी शामिल है। वर्ष 1984 तक शीत और शांति का अकेला गवाह सियाचिन ग्लेशियर भारत-पाक सैनिकों द्वारा फैलाई जा रही गंदगी, उनके केरोसिन की तपिश और चीता हेलीकॉप्टरों की गड़गड़ाहट के बीच कराह रहा है।

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